-
○ बाजार से सामान लेने जाएं, तो कपड़े का थैला साथ लाएं
○ Rose Sardana All Set to Dazzle in Bhool Bhulaiyaa 3: A Laughter Riot Awaits
○ Ekta Tiwari Pays Tribute to Ratan Tata: A Legacy of Humanity, Vision, and Humility
○ Aalekh Foundation as His YISFF Award-Winning Hit 'Thi Thi Thara' Captivates Global Audiences
○ She's still taking revenge for that: Vivian Dsena on wife Nouran Aly
नमस्कार हमारे न्यूज पोर्टल – मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेशा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर ओर विज्ञापन के लिए संपर्क करे +91 7078277779 / +91 9927127779 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें
Health
दिल्ली एम्स में अब कैश का काम खत्म, हर जगह सिर्फ ऑनलाइन पेमेंट
नई दिल्ली, 10 मई 2024 (यूटीएन)। एम्स के कैफेटेरिया में अब लेन-देन के लिए कैश सिस्टम को खत्म कर दिया गया है। यहां पूरी तरीके से डिजिटल पेमेंट की व्यवस्था लागू कर दी गई है। दावा है कि इसके लागू होने से लेन-देन में पारदर्शिता रहेगी। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि इस व्यवस्था से ग्रामीण इलाकों से आने वाले मरीजों और उनके तीमारदारों को थोड़ी दिक्कत झेलनी पड़ सकती है। *एम्स ने कहा- इससे आएगी पारदर्शिता* जानकारी के मुताबिक, एम्स में ओपीडी से लेकर अन्य जांच काउंटर समेत सभी जगहों पर डिजिटल पेमेंट की सुविधा लागू कर दी गई थी। साथ ही अब कैफेटेरिया में भी इस व्यवस्था लागू करने के आदेश एम्स के डायरेक्टर डॉ एम श्रीनिवास ने दिया है। उनके मुताबिक, एम्स में 100 प्रतिशत डिजिटल पेमेंट की व्यवस्था लागू होने से लेनदेन में पारदर्शिता आएगी और लोगों को कैश लेकर चलने से राहत मिलेगी। एम्स में अब केवल स्मार्ट कार्ड, यूपीआई, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिए ही डिजिटल पेमेंट किया जाएगा। *गांव से आने वाला मरीज क्या करेगा* एम्स के ओपीडी, जांच काउंटर और कैफेटेरिया को फुली डिजिटल करने से गांव के आने वाले लोगों के लिए खासा दिक्कत होगी। असल में गांव से आने वाले लोग और अधिकतर लोग कैश में ही लेनदेन करने में विश्वास रखते हैं। यूपीआई पेमेंट उनके लिए थोड़ा कठिन पड़ता है। देश में अभी भी लोग कैश साथ लेकर ही यात्रा करते हैं, यही उनके लिए आसान भी है। यह भी सत्य है कि दिल्ली एम्स में इलाज के लिए आने वाले मरीज यूपी, बिहार और फिर बाकी राज्यों के होते हैं। विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
admin
May 10, 2024
शिविर लगाकर हज यात्रियों के 146 स्वास्थ्य की जांच , बीमारियों से बचाव के लिए किया टीकाकरण
बागपत,05 मई 2024 (यूटीएन)। हज यात्रियों के लिए लगाया गया स्वास्थ्य शिविर। जांच और खानपान के लिए जरूरी हिदायतों के साथ ही बीमारी से रोक टीके भी लगाए गए । नगर के नवाब शौकत हमीद पब्लिक स्कूल में हज यात्रियों के लिये स्वास्थ्य जांच शिविर लगाया गया , जिसमें 146 हज यात्रियों का रजिस्ट्रेशन कर स्वास्थ्य विभाग द्वारा खून, ब्लड प्रेशर , शुगर आदि की जांच की गई तथा पोलियो एवं अन्य बीमारियों का टीकाकरण भी किया गया। शिविर में हज यात्रियों को कई महत्वपूर्ण जानकारियों भी दी गई और उन्हें बीमारियों से बचाव के जरूरी टिप्स भी दिए गए। हज यात्रियों को बताया गया कि ,इस समय गर्मी काफी पड़ रही है, इसलिए वह अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें। खाने में दूध, दही, हरी सब्जियां तथा मौसमी फलों का प्रयोग जरूर करें। बीच-बीच में पानी पीते रहें और धूप में निकलने से बचें। नींबू पानी भी स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा है, इसलिए इसका भी सेवन करते रहें। स्वास्थ्य शिविर में कोर एडरा के बीएमसी मुजीबुर्रहमान एवं मंजू शर्मा का विशेष योगदान रहा। स्टेट ब्यूरो,( डॉ योगेश कौशिक ) |
admin
May 5, 2024
पहल: फेफड़ों के कैंसर का सटीक इलाज ढूंढ़ेंगे देश के 100 चिकित्सक
नई दिल्ली, 04 मई 2024 (यूटीएन)। वायु प्रदूषण और कैंसर का बोझ झेल रहे फेफड़ों के इलाज को लेकर डॉक्टर एक मत नहीं है। इसका उपचार भी समान नही है। इसकी वजह से यह भयावह रूप ले रहा है। सरकार ने अब सख्त रुख अपनाते हुए वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित गाइडलाइन तैयार करने का निर्णय लिया है। सरकार ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है, जिसने देश के 100 विशेषज्ञ चिकित्सकों का चयन कर 15 टीमें गठित की है। ये टीमें धूम्रपान-तंबाकू, वायु प्रदूषण, कम खुराक वाली कंप्यूटेड टोमोग्राफी, चेस्ट रेडियोग्राफ, कीमो, इम्यूनो और रेडियोथेरेपी के अलावा सर्जरी को लेकर वैज्ञानिक साक्ष्यों को एकत्रित करेंगे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, भारत में सभी तरह के कैंसर में 5.9% योगदान फेफड़े के कैंसर का है। इसके अलावा हर साल कैंसर से मरने वालों में 8.1% हिस्सेदारी भी है। द लांसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित वैश्विक रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में फेफड़ों के कैंसर की आयु-मानकीकृत घटना दर (एएसआईआर) 1990 में 6.62 प्रति एक लाख से बढ़कर 2019 में 7.7 तक पहुंची है। *इसलिए जरूरी राष्ट्रीय गाइडलाइन* आईसीएमआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फेफड़ों के कैंसर के इलाज को लेकर मौजूदा समय में देश में राष्ट्रीय स्तर पर गाइडलाइन लागू नहीं है। अगर एक मरीज दिल्ली में किसी डॉक्टर से इलाज करा रहा है तो उसके तौर तरीके कर्नाटक या फिर तमिलनाडु में इलाज करने वाले डॉक्टर से भिन्न हो सकते हैं। इसके फायदे और नुकसान दोनों है। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर गाइडलाइन की आवश्यकता है। *15 में से चार टीमें यूपी की* गाइडलाइन बनाने वाली 15 में से चार टीमें उत्तर प्रदेश से हैं। इनमें गोरखपुर एम्स, नोएडा स्थित आईसीएमआर का एनआईसीपीआर और लखनऊ के केजीएमयू व कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी कैंसर इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ शामिल हैं। वहीं हरियाणा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से एक एक संस्थान के डॉक्टरों को लिया है। पंजाब और चंडीगढ़ से दो-दो टीमें तैनात की हैं। *इसी साल पूरा होगा काम* टीम में शामिल डॉ. आयुष लोहिया ने बताया कि गाइडलाइन में सर्जरी को लेकर उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई है। उनकी टीम इस पर काफी समय से काम कर रही है और अगले कुछ समय में वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर जानकारी उपलब्ध कराएगी। उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा कि इसी साल में गाइडलाइन तैयार होने के बाद लागू हो जानी चाहिए। डॉ. लोहिया का मानना है कि विविधता युक्त इस देश में उपचार के तौर तरीके एक जैसा होना बहुत जरूरी है। इससे न सिर्फ मरीज का जीवन बचाया जा सकता है बल्कि समय रहते निदान के लक्ष्य को भी पूरा कर सकते हैं। विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
Ujjwal Times News
May 4, 2024