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○ पीएम मोदी ने जनजातीय संस्कृति से दुनिया को कराया रूबरू
○ आदिवासी समुदायों की प्रगति राष्ट्रीय प्राथमिकता: राष्ट्रपति
○ पर्यावरण प्रदूषण के कारण लगे प्रतिबंधों का कोई असर नहीं, वाहनों व उद्योगों में काम भवननिर्माण भी पूर्ववत्
○ धर्मावलंबियों ने देव दीपावली पर जलाए दीये, देवी- देवताओं की गई पूजा -अर्चना
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National
भारतीय मक्का क्षेत्र - सतत विकास के लिए रुझान, चुनौतियाँ और अनिवार्यताएँ
नई दिल्ली, 25 सितंबर 2024 (यूटीएन)। मक्का एक बहुआयामी फसल है जिसका उपयोग कई तरह से किया जाता है, जिसमें भोजन, चारा, औद्योगिक अनुप्रयोग, ऊर्जा और फार्मास्यूटिकल्स शामिल हैं। खाद्य स्रोत के रूप में, मक्का का सेवन विभिन्न रूपों जैसे कॉर्नमील, आटा और स्वीट कॉर्न में किया जाता है। अपने खाद्य मूल्य के अलावा, मक्का पशु आहार में एक आवश्यक घटक है, विशेष रूप से मुर्गी और पशुधन के लिए। इसके औद्योगिक अनुप्रयोग विविध हैं, मक्का स्टार्च, तेल और अन्य डेरिवेटिव का उपयोग भोजन, बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक, कपड़ा, कागज और फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में किया जाता है। मक्का का उपयोग इथेनॉल बनाने के लिए भी किया जाता है, जो एक जैव ईंधन है जिसे पेट्रोल के साथ मिलाया जाता है। 2022 में, लगभग 1.17 बिलियन मीट्रिक टन (MT) मक्का का उत्पादन किया गया, जो गेहूं (0.81 बिलियन मीट्रिक टन) की तुलना में 30.9% अधिक और चावल (0.78 बिलियन मीट्रिक टन) की तुलना में 33.8% अधिक था। वैश्विक मक्का उत्पादन 2012 में 0.89 बिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 2022 में 1.17 बिलियन मीट्रिक टन हो गया है, जो 2.9% की दशकीय सीएजीआर से बढ़ रहा है। 2022 में, संयुक्त राज्य अमेरिका मक्का का सबसे बड़ा उत्पादक था, जिसने वैश्विक उत्पादन में लगभग 30% का योगदान दिया, उसके बाद चीन (24%) और ब्राजील (9%) का स्थान रहा। मक्का की वैश्विक खपत 10 वर्षों की अवधि में 2.3% की सीएजीआर से बढ़ी है, जो 2013 में 988.6 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 2023 में 1236.8 मिलियन मीट्रिक टन हो गई है। वैश्विक निर्यात 5.1% की दशकीय सीएजीआर (2013-2023) से बढ़ा है, जो 2013 में 122.8 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 2023 में 202.1 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है। 2023 में, मक्का की कीमतें 2021 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर 223 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन पर पहुंच गईं। ब्राजील से पर्याप्त आपूर्ति और निर्यातकों के बीच प्रतिस्पर्धा ने गिरावट की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया। 2022 में, भारत वैश्विक मक्का रकबे में 4वें और वैश्विक उत्पादन में 5वें स्थान पर रहा, जो क्रमशः लगभग 4.9% रकबे और 2.9% उत्पादन में योगदान देता है। भारत में, लगभग 22% मक्का सीधे भोजन के रूप में खाया जाता है। जबकि उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा मुख्य रूप से पशु चारा और स्टार्च के लिए औद्योगिक उपयोग के लिए खपत किया जाता है। भारत में मक्का की उत्पादकता 2.6 मीट्रिक टन/हेक्टेयर से बढ़कर 3.5 मीट्रिक टन/हेक्टेयर हो गई है, जो 3.3% (2012-13 से 2022-23) की दशकीय सीएजीआर की दर से बढ़ रही है। मक्का मुख्य रूप से दो मौसमों में उगाया जाता है: खरीफ (75% क्षेत्र) और रबी (20% क्षेत्र), खरीफ मक्का की औसत उत्पादकता 2.94 मीट्रिक टन/हेक्टेयर और रबी मक्का की 5.36 मीट्रिक टन/हेक्टेयर है। भारत का मक्का निर्यात पिछले कुछ वर्षों में स्थिर नहीं रहा है, जो बदलते उत्पादन पैटर्न और उच्च घरेलू कीमतों के कारण 2013 में 4.75 मिलियन मीट्रिक टन से 2023 में 2.31 मिलियन मीट्रिक टन के बीच उतार-चढ़ाव करता रहा है। भारत ने 2023 में 8.0 मिलियन अमरीकी डॉलर का मक्का आयात किया, मुख्य रूप से दक्षिण अफ्रीका (74%), संयुक्त राज्य अमेरिका (15%) और अर्जेंटीना (6%) से। मक्का पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख कारकों में पोल्ट्री और पशुधन क्षेत्रों से बढ़ती मांग के साथ-साथ इथेनॉल उत्पादन जैसे बढ़ते औद्योगिक उपयोग शामिल हैं। खेत स्तर पर चुनौतियों में हाइब्रिड बीजों को कम अपनाना शामिल है, जिसमें केवल 30% खेती योग्य क्षेत्र सिंगल क्रॉस हाइब्रिड के अंतर्गत है। कटाई के बाद की चुनौतियों में खराब गुणवत्ता प्रबंधन शामिल है, जिससे नमी की मात्रा 18% तक बढ़ जाती है, जिससे उपज फंगल संक्रमण और उच्च एफ़्लैटॉक्सिन स्तरों के प्रति संवेदनशील हो जाती है। मक्का प्रसंस्करण उद्योग में चुनौतियों में मूल्य में उतार-चढ़ाव, किस्मों और गुणवत्ता में अंतर और जीएम विनियमों के कारण मक्का के आयात पर प्रतिबंध के कारण कच्चे माल की उच्च लागत शामिल है। रिपोर्ट में पहचाने गए मक्का क्षेत्र के विकास को बनाए रखने के लिए मुख्य अनिवार्यताएँ नीचे सूचीबद्ध हैं मक्का उत्पादन और रकबे को बढ़ाने के लिए एक रोडमैप विकसित करें। नई प्रौद्योगिकियों को तेजी से और व्यापक रूप से अपनाना सुनिश्चित करें। अच्छी कृषि पद्धतियों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी विस्तार कार्यक्रम तैयार करें। एक मजबूत मक्का आपूर्ति श्रृंखला के निर्माण के लिए कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे को मजबूत करें। विविध उद्योग के लिए मक्का आपूर्ति सुरक्षा की सुविधा प्रदान करें। विभिन्न प्रोत्साहनों और योजनाओं के माध्यम से मक्का मूल्य श्रृंखला में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा दें। विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
admin
Sep 25, 2024
राज्य सरकार किसानों के कल्याण के लिए आगे आने वाले उद्योग को समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध है
नई दिल्ली, 25 सितंबर 2024 (यूटीएन)। मंगल पांडे, कृषि एवं स्वास्थ्य मंत्री, कृषि विभाग, बिहार सरकार ने कहा कि राज्य सरकार किसानों और कृषि क्षेत्र के कल्याण के लिए आगे आने वाले उद्योग को समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध है। फिक्की द्वारा आयोजित ‘भारत मक्का शिखर सम्मेलन 2024’ के 10वें संस्करण को संबोधित करते हुए पांडे ने खाद्य, चारा और औद्योगिक उपयोगों में मक्का की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, निजी क्षेत्र को बिहार में निवेश करने और कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई विभिन्न सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए आगे आने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने कहा, “बिहार सरकार ने चालू वर्ष में मक्का की खेती के तहत क्षेत्र को लगभग 10 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है।” पांडे ने आगे कहा कि बिहार में वर्तमान में मक्का के लिए 5 लाख मीट्रिक टन भंडारण क्षमता है और सरकार भविष्य की मांग को पूरा करने के लिए क्षमता बढ़ाने के लिए काम कर रही है। मंत्री ने अच्छी गुणवत्ता वाले मक्का बीज की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला और बीज उद्योग से किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले मक्का संकर बीज उपलब्ध कराने के लिए बिहार में परिचालन स्थापित करने का आह्वान किया। भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण विभाग के सचिव डॉ देवेश चतुर्वेदी ने अगले 10 वर्षों के लिए एक विजन दस्तावेज बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जिसमें अगले दशक के लिए मक्का की क्षेत्रवार मांग के साथ-साथ मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक हस्तक्षेपों को दर्शाया गया हो। उन्होंने कहा, “हमें ग्रीष्मकालीन मक्का की फसल के तहत क्षेत्र विस्तार को बढ़ावा देने की जरूरत है, जिससे मक्का उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ चावल जैसी पारंपरिक फसलों से विविधता लाने में मदद मिलेगी।” बिहार सरकार के कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि राज्य सरकार ने मक्का की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई पहलों को लागू किया है। उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) और राज्य योजना के तहत हमने सब्सिडी वाले बीजों के वितरण की सुविधा प्रदान की है, किसानों के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण प्रदान किया है, और उन्नत कृषि तकनीकों का प्रदर्शन किया है। मक्का उत्पादों में विविधता लाने और बाजार के अवसरों को बढ़ाने के लिए बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएं भी शुरू की जा रही हैं।" श्री अग्रवाल ने आगे कहा कि राज्य सरकार बिहार में बीजों के इन-हाउस उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना बना रही है और इस संबंध में नीतिगत रूपरेखा पर काम कर रही है। कॉर्टेवा एग्रीसाइंस के दक्षिण एशिया के अध्यक्ष सुब्रतो गीद ने कहा। "भारत का मक्का क्षेत्र एक क्रांति के लिए तैयार है, जिसमें उत्पादकता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने और फ़ीड, चारा, ईंधन और अन्य औद्योगिक अनुप्रयोगों में बढ़ती आवश्यकता का समर्थन करने की क्षमता है।" उन्होंने कहा कि मक्का फसल विविधीकरण के लिए भी एक मजबूत उम्मीदवार है क्योंकि टिकाऊ कृषि पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। फिक्की राष्ट्रीय कृषि समिति के सह-अध्यक्ष कौशल जायसवाल ने उल्लेख किया कि मक्का शिखर सम्मेलन मक्का के वैश्विक और घरेलू परिदृश्य और मक्का आपूर्ति श्रृंखला का सामना करने वाले मुद्दों को सामने लाने का एक प्रयास है। यस बैंक के राष्ट्रीय प्रमुख-खाद्य और कृषि व्यवसाय रणनीतिक सलाह और अनुसंधान संजय वुप्पुलुरी ने फिक्की-यस बैंक ज्ञान रिपोर्ट पर अंतर्दृष्टि साझा की। सत्र के दौरान फिक्की-यस बैंक ज्ञान रिपोर्ट - 'भारतीय मक्का क्षेत्र - रुझान, चुनौतियां और सतत विकास के लिए अनिवार्यताएं' जारी की गईं। विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
admin
Sep 25, 2024
अवैध व्यापार करने वालों के मन में कठोर दंड का भय पैदा करने की आवश्यकता
नई दिल्ली, 25 सितंबर 2024 (यूटीएन)। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने अवैध व्यापार और गतिविधियों में लगे लोगों के गठजोड़ पर कठोर दंड और कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया। फिक्की-कैस्केड के 10वें संस्करण - 'मैस्क्रेड 2024' को संबोधित करते हुए बिट्टू ने जोर देकर कहा कि विभिन्न प्रवर्तन एजेंसियों के बीच समन्वय हमारे आर्थिक विकास को बर्बाद करने वाले नापाक तत्वों के खिलाफ लड़ाई पर काबू पाने की कुंजी है। उन्होंने कहा, "हम एक साथ मिलकर लचीली अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करते हैं, मजबूत पहलों के साथ इन खतरों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देते हैं। आइए हम सब मिलकर भारत के भविष्य की रक्षा करें।" उन्होंने आगे कहा कि फिक्की कैस्केड की रिपोर्ट की राय और विचार सरकार को अवैध व्यापार गतिविधियों पर कड़ी कार्रवाई करने में मदद करेंगे। बिट्टू ने कहा, "दंड आवश्यक है, और अपराधियों के मन में यह डर पैदा करना महत्वपूर्ण है कि यदि वे अवैध व्यापार गतिविधियों में शामिल होते हैं तो उन्हें कठोर दंड दिया जाएगा।" भारत सरकार के विशेष सचिव और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड के सदस्य (अनुपालन प्रबंधन) राजीव तलवार ने कहा, "सीबीआईसी नकली सामान और तस्करी के खिलाफ आंदोलन में आधार के रूप में काम कर रहा है। हमने बहुत व्यापक क्षमताओं के साथ एक प्रौद्योगिकी-संचालित जोखिम प्रबंधन पोर्टल बनाया है जो हमें संभावित तस्करी संचालन की भविष्यवाणी करने में मदद करता है। सीबीआईसी के फील्ड अधिकारी इस पोर्टल की मदद से औसतन प्रतिदिन 60 जांच कर रहे हैं।"तलवार ने कहा कि पिछले 15 महीनों में 3,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 40 करोड़ रुपये के विदेशी उत्पाद जब्त किए गए हैं। फिक्की कैस्केड के अध्यक्ष अनिल राजपूत ने कहा, कानूनी और अवैध दोनों ही तरह के कारोबारियों के लिए उपभोक्ता मुख्य फोकस समूह रहे हैं। और आगे भी बने रहेंगे के प्रौद्योगिकी-प्रधान परिदृश्य में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने बहुत महत्व प्राप्त कर लिया है और वर्तमान में हम अपने व्यवसायों और समाज पर इस तकनीक के सकारात्मक प्रभाव को देख रहे हैं। हालाँकि, वह समय दूर नहीं है जब हम देखेंगे कि दुष्ट तत्व मैदान में उतर आएंगे और ऐसी चुनौती पैदा करेंगे जो उद्योग और समाज दोनों के लिए एक बड़ी आपदा बन सकती है। मेरा मानना है कि 'सिक्योर' फ्रेमवर्क का मंत्र जिसका अर्थ है निगरानी, प्रवर्तन, क्षमता निर्माण, अवैध व्यापार के खिलाफ संयुक्त मोर्चा, कठोर दंड, सादगी पर आधारित संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र - जब समग्रता में देखा जाता है, तो यह अवैध व्यापार के जटिल मुद्दे का 360-डिग्री समाधान प्रदान करेगा। विश्व सीमा शुल्क संगठन के अनुपालन एवं सुविधा निदेशालय के निदेशक प्रणब कुमार दास ने कहा, "वैध अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास को प्रोत्साहित करने में विश्व सीमा शुल्क संगठन द्वारा निभाई गई। महत्वपूर्ण भूमिका के अलावा, धोखाधड़ी गतिविधियों से निपटने के इसके प्रयासों को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है, खासकर तस्करी और जालसाजी के खिलाफ। अवैध व्यापार के खिलाफ प्रवर्तन सीमा शुल्क के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है, क्योंकि यह आपराधिक नेटवर्क को बाधित करने के लिए समाधान और उचित प्रतिक्रिया प्रदान करता है।" भारतीय मध्यस्थता परिषद के महानिदेशक और फिक्की के पूर्व महानिदेशक के थिंक टैंक सदस्य अरुण चावला ने कहा, "लचीली अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करने के लिए, निवारक और सक्रिय दोनों उपायों को अपनाना आवश्यक है जो अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, तकनीकी प्रगति और कड़े कानूनी ढांचे को एकीकृत करते हैं। इन अवैध गतिविधियों से निपटने के लिए सीमा पार साझेदारी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि आर्थिक विकास निरंतर बना रहे और साथ ही वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की अखंडता को सुरक्षित रखा जाए।" कार्यक्रम के दौरान, फिक्की कैस्केड ने थॉट आर्बिट्रेज रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर एक रिपोर्ट ‘अवैध उपभोग: उपभोग के बदलते कारक 5 प्रमुख उद्योगों में अवैध बाजारों को कैसे प्रभावित करते हैं’ लॉन्च की, जिसमें भारत में अवैध बाजार का आकार 2022-23 में 7,97,726 करोड़ रुपये आंका गया है। 5 प्रमुख उद्योगों-पैकेज्ड गुड्स, पर्सनल और हाउसहोल्ड केयर, शराब, तंबाकू और कपड़ा और परिधान- पर विचार करते हुए, जहाँ अवैध व्यापार वैध व्यवसायों को कमजोर कर रहा है, प्रतिस्पर्धा को विकृत कर रहा है और सरकारी कर राजस्व को काफी हद तक खा रहा है, रिपोर्ट अवैध बाजार के बढ़ते आकार को उच्च मूल्य वाले ब्रांडेड, लक्जरी, हाई-एंड, कर योग्य वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती खपत को जिम्मेदार ठहराती है, खासकर ग्रामीण और शहरी भारत दोनों में बढ़ते आकांक्षी मध्यम वर्ग के बीच। इन पाँच श्रेणियों में अवैध बाजार ग्रामीण भारत में तेजी से फैला है, खासकर मध्यम और निम्न आय वर्ग के बढ़ते वर्गों के बीच। संक्षेप में, जालसाजी और अवैध व्यापार की समस्या ने नई राह पकड़ी है, क्योंकि पहले यह उच्च आय वर्ग की घटना थी, जो देश के शहरी इलाकों में अधिक स्पष्ट थी। इसलिए, खर्च करने के बदलते पैटर्न-बढ़ती डिस्पोजेबल आय के साथ-साथ उपभोक्ताओं द्वारा ऐसे उत्पादों को चुनना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है, जिन पर अधिक कर लगाया जाता है, जैसे कि सौंदर्य और कॉस्मेटिक उत्पादों के मामले में 28 प्रतिशत की कर दर वाले उत्पाद और रेडीमेड परिधान जिन पर 12-18 प्रतिशत कर लगाया जाता है, जो अवैध खिलाड़ियों को आर्थिक लाभ के लिए मध्यस्थता का उपयोग करने का अवसर देता है। विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
admin
Sep 25, 2024
विहिप ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने का अभियान छेड़ा
नई दिल्ली, 25 सितंबर 2024 (यूटीएन)। हिंदू मन्दिरों का पूर्ण नियंत्रण हिन्दू समुदाय के हाथों में सौंपने के लिए विश्व हिन्दू परिषद एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाएगी। इस अभियान के अंतर्गत विहिप के सभी राज्य इकाई अपने यहां जनजागरण अभियान चलाएंगे। वे मुख्यमंत्री और राज्यपालों से मिलकर मन्दिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए ज्ञापन देंगे। विहिप का कहना है कि मन्दिरों को सरकार के नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए धरना-प्रदर्शन और सामाजिक जनजागरण किया जाएगा। यह भी आरोप है कि तिरुपति मंदिर के चढ़ावे से धर्मांतरण कराने वाली संस्थाओं को राशि दी गई है। विश्व हिंदू परिषद ने देशभर में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का संकल्प लिया। साथ ही कहा कि वह इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जल्द एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करेगी। विहिप के संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि अगर राज्य सरकारें मंदिरों को हिंदू समाज को नहीं सौंपती हैं, तो संगठन अदालत का भी दरवाजा खटखटाएगा। मंदिरों के प्रबंधन में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए विहिप ने कहा है कि सरकार द्वारा मंदिरों को अपने नियंत्रण में लेना मुस्लिम आक्रमणकारियों और अंग्रेजों की मानसिकता को दर्शाता है। विहिप ने यह भी कहा है कि अब मंदिरों का सरकारीकरण नहीं समाजीकरण होना चाहिए।उन्होंने कहा, हमारा संकल्प है कि देशभर में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर समाज को सौंप दिया जाएगा। इसके लिए पहले हर राज्य में प्रदर्शन और आंदोलन किए जाएंगे और संबंधित मुख्यमंत्रियों के माध्यम से राज्यपालों को अपना ज्ञापन सौंपा जाएगा।' *'कानूनी सहारा भी लिया जाएगा'* उन्होंने कहा कि न्याय पाने के लिए जहां भी जरूरत होगी, कानूनी सहारा भी लिया जाएगा। जैन ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी, तो भविष्य में आंदोलन भी शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों द्वारा मंदिरों को अपने नियंत्रण में रखना संविधान का उल्लंघन है और अदालतें 'बार-बार कह रही हैं कि मंदिरों को चलाना सरकारों का काम नहीं है।' *देश का सियासी पारा चढ़ा* उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश का तिरुपति मंदिर ही एकमात्र ऐसा मंदिर नहीं है, जहां से प्रसादम बनाने में जानवरों की चर्बी के इस्तेमाल की खबरें आई हैं। उन्होंने दावा किया, 'इससे पहले केरल के सबरीमला मंदिर से भी शिकायत आई थी। वहां भी पायसम (पवित्र भोजन) में इसी तरह की अपवित्र चीजें मिलाई गई थीं।' उन्होंने कहा कि देश भर में राज्य सरकारों के नियंत्रण में मंदिरों की संपत्तियों के 'वित्तीय अनियमितताओं और दुरुपयोग' की भी खबरें आई हैं। जैन ने कहा कि इन सभी मामलों में देखा गया है कि ये वे मंदिर हैं, जिन्हें संबंधित राज्य सरकारों ने अपने नियंत्रण में ले लिया है। *'नौकरशाही और नेता दोनों ही लूट में शामिल'* उन्होंने आरोप लगाया, 'नौकरशाही और नेता दोनों ही लूट में लिप्त हैं और हिंदुओं की भावनाओं से खेल रहे हैं।' जैन ने कहा कि अकेले तमिलनाडु में 400 से अधिक मंदिर सरकार के नियंत्रण में हैं। उन्होंने कहा कि एक एनजीओ द्वारा किए गए सर्वेक्षण में पाया गया था कि ये 400 मंदिर प्रति वर्ष 6000 करोड़ रुपये का राजस्व पैदा करते हैं, लेकिन वे केवल 200 करोड़ रुपये की आय और 270 करोड़ रुपये का व्यय दिखाते हैं। *तिरुपति लड्डू विवाद में न्यायिक जांच की मांग* तिरुपति लड्डू विवाद पर विहिप पदाधिकारी ने मांग की कि मामले की न्यायिक जांच की जाए और प्रसाद को अपवित्र करने में शामिल लोगों को कड़ी सजा दी जाए। जैन ने कहा कि मंदिरों पर राज्य सरकारों का नियंत्रण औपनिवेशिक मानसिकता और गुलामी का प्रतीक है। उन्होंने तर्क दिया, 'जब अल्पसंख्यक अपने संस्थान चला सकते हैं, तो हिंदू क्यों नहीं।' संगठन द्वारा तिरुपति में संतों का एक सम्मेलन आयोजित करने और मंदिर बोर्ड द्वारा प्रसाद की पवित्रता को बहाल करने के लिए "शुद्धिकरण अनुष्ठान" किए जाने के एक दिन बाद विहिप ने यह घोषणा की है विहिप के संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने कहा, "सरकारें मंदिरों का इस्तेमाल उनकी संपत्ति लूटने और उन राजनेताओं को जगह देने के लिए कर रही हैं जिन्हें सरकार में जगह नहीं मिल पाई।" सुरेंद्र जैन ने कहा कि प्रसाद में जानवर की चर्बी के साथ मिलावट ने पूरे हिंदू समाज को नाराज कर दिया है। *'संतों के मार्गदर्शन में मंदिरों का प्रबंधन करेगा समाज'* इस मौके पर विहिप ने दावा किया कि केरल के सबरीमाला जैसे कई अन्य मंदिरों से भी इस तरह की मिलावट की खबरें आ रही हैं। उन्होंने इसे हिंदू समाज की भावनाओं के साथ खिलवाड़ बताया। सुरेंद्र जैन ने कहा, "इन सभी घटनाओं के बीच एक आम कड़ी यह है कि ये सभी मंदिर सरकारों के नियंत्रण में हैं। समस्या का एकमात्र स्थायी समाधान मंदिरों को सरकारों के नियंत्रण से मुक्त करना और उन्हें समाज को सौंपना है। संतों के मार्गदर्शन में समाज मंदिरों का प्रबंधन करेगा।" *अल्पसंख्यक अपने संस्थान चला सकते हैं तो हिंदू क्यों नहीं* सुरेंद्र जैन ने मंदिरों को सरकारों द्वारा चलाने को असंवैधानिक करार देते हुए कहा, "अनुच्छेद 12 कहता है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है। फिर उन्हें मंदिर चलाने का अधिकार किसने दिया? अनुच्छेद 25 और 26 हमें अपने संस्थान चलाने का अधिकार देते हैं। अगर अल्पसंख्यक अपने संस्थान चला सकते हैं तो हिंदू क्यों नहीं। ऐसा लगता है कि एक पैटर्न है। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिरों को नष्ट कर दिया और उन्हें लूट लिया। अंग्रेज चालाक थे और उन्होंने मंदिरों पर नियंत्रण कर लिया। इस तरह उन्होंने मंदिरों को लूटने के लिए एक संस्थागत व्यवस्था स्थापित की। दुर्भाग्य से आजादी के बावजूद हमारे राजनेता खुद को इस औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त नहीं कर पाए। मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण उसी मानसिकता को दर्शाता है। यह लूट अब बंद होनी चाहिए।” *सभी राज्यों में रैलियां आयोजित करेगी विहिप* भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए सुरेंद्र जैन ने कहा कि अकेले तमिलनाडु सरकार के अधीन 400 से अधिक मंदिर हैं और आरोप लगाया कि पिछले 10 सालों में राज्य ने इन मंदिरों में 50,000 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया है। विहिप के मुताबिक अभियान के पहले चरण में संगठन सभी राज्यों की राजधानियों में विरोध में रैलियां आयोजित करेगी और मुख्यमंत्रियों को मांगों का ज्ञापन देगी। उन्होंने कहा, "अगर जरूरत पड़ी तो उसके बाद कानूनी कदम भी उठाए जाएंगे। और अगर यह पर्याप्त नहीं है तो हम भविष्य में और आंदोलन भी शुरू कर सकते हैं।" डॉ सुरेंद्र जैन ने कहा कि न्यायालयों ने अपने कई निर्णयों में यह स्पष्ट कहा है कि मंदिरों का प्रशासन चलाना सरकार का काम नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से तिरुपति विवाद सामने आए हैं, उससे यह साफ हो जाता है कि अब हिन्दू मंदिरों का प्रशासन हिन्दू समाज को सौंप देनी चाहिए। विहिप के अनुसार हिन्दू मंदिरों का धन हिन्दू समाज के गरीब लोगों के हितों के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। इसे देखते हुए संगठन 'हिन्दू समाज का धन हिंदुओं के लिए' नाम से अभियान चलाएगी। इसकी शुरुआत आंध्रप्रदेश में तिरुपति मन्दिर से शुरू हो चुकी है। विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
admin
Sep 25, 2024
केंद्र की गाइड लाइन: कचरे से बनेंगे राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्यों की सड़कें
नई दिल्ली, 25 सितंबर 2024 (यूटीएन)। शहरों के लिए समस्या का पहाड़ बन चुके कूड़े के निस्तारण के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण की प्रक्रिया को स्वच्छ भारत मिशन-2.0 से जोड़ते हुए कई माह से मंत्रालय इस व्यवस्था को बनाने के लिए काम कर रहा था कि शहरी ठोस अपशिष्ट का प्रयोग सड़कों के निर्माण में किया जाए। अब सरकार ने पूरी गाइडलाइन बना ली है। इंडस्ट्री वेस्ट का प्रयोग सड़कों के निर्माण में किया जाएगा। कूड़े में से बड़ी मात्रा में निकलने वाली मिट्टी का प्रयोग राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में करने के साथ ही राज्यों से भी कहा है कि वह भी सड़कों के निर्माण में इसका प्रयोग कर सकते हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण से जुड़ी सभी संस्थाओं के साथ ही केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने सभी राज्यों को भी गाइडलाइन जारी कर दी है। इसमें बताया गया है कि पर्यावरण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सरकार ऐसी नीति बनाने पर काम कर रही है कि प्रोसेस्ड सालिड वेस्ट, प्लास्टिक वेस्ट, स्टील स्लैग (स्टील निर्माण के दौरान निकले वाला अपशिष्ट) और इंडस्ट्री वेस्ट का प्रयोग सड़कों के निर्माण में किया जाए। *सड़क निर्माण में प्रयोग के लिए गाइडलाइन बना ली गई है* इसी के तहत फिलहाल शहरों से निकलने वाले ठोस अपशिष्ट के सड़क निर्माण में प्रयोग के लिए गाइडलाइन बना ली गई है। सरकार का आकलन है कि वर्तमान में लगभग 1700 लाख टन कूड़ा 2304 लैंडफिल साइटों पर इकट्ठा है। इसकी वजह से करीब 10 हजार हेक्टेयर जमीन घिरी हुई है। इसे देखते हुए ही गति शक्ति अभियान के तहत हाईवे निर्माण को स्वच्छ भारत मिशन 2.0 से जोड़ा गया है। हाईवे निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर खेतों से मिट्टी लेनी पड़ती है। ठोस अपशिष्ट का इस्तेमाल कर इससे काफी हद तक बचा जा सकता है। मंत्रालय ने बताया है कि ठोस अपशिष्ट की प्रोसे¨सग से निकलने वाली मिट्टी से हाईवे निर्माण के दो पायलट प्रोजेक्ट सफल हो चुके हैं। अब इस प्रक्रिया को अन्य हाईवे के निर्माण में अपनाया जाएगा और राज्य भी राज्यों की सड़कें बनाने के लिए इसका प्रयोग कर सकते हैं। *नोडल अधिकारी नियुक्त* गाइडलाइन में इस प्रक्रिया को भी स्पष्ट कर दिया गया है कि डीपीआर के स्तर के प्रोजेक्ट, निर्माणाधीन प्रोजेक्ट और आगामी परियोजनाओं के लिए ठेकेदार, संबंधी प्राधिकरण और निकाय किस तरह से काम कर सकते हैं। सभी प्रकरणों में त्रिपक्षीय करार करने होंगे, ताकि ठोस अपशिष्ट से निकलने वाली मिट्टी की आपूर्ति निर्माण के लिए सुनिश्चित हो सके। राज्यों से इस व्यवस्था को अमल में लाने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करने के लिए भी कहा गया है। विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
admin
Sep 25, 2024
दुखद: सड़क हादसों में रोजाना मर रहे 461 लोग पूर्व राष्ट्रपति-केंद्रीय मंत्री भी हुए शिकार
नई दिल्ली, 25 सितंबर 2024 (यूटीएन)। देश में सड़क हादसे थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। वजह, ओवर स्पीड हो या रोड इंजीनियरिंग का फॉल्ट, सड़क हादसों में रोजाना औसतन 461 व्यक्ति मारे जा रहे हैं। दो दिन पहले ही वैशाली से लोजपा (आर) की सांसद वीणा देवी के बेटे की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। यह पहला मामला नहीं है, जब किसी सियासतदान के परिवार का कोई व्यक्ति सड़क हादसे मारा गया है। यह फेहरिस्त बहुत लंबी है। इसमें पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, कद्दावर नेता, सांसद पुत्र और कई दूसरी नामचीन हस्तियां शामिल हैं। सड़क हादसों में मारे जाने वाले लोगों की संख्या के मामले में भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, चीन, जर्मनी और जापान सहित कई देशों को पीछे छोड़ दिया है। भारत में हर रोज औसतन 1263 सड़क हादसे हो रहे हैं। प्रतिवर्ष होने वाले सड़क हादसों की बात करें तो यह संख्या चार लाख के पार चली जाती है। 75 सौ रुपये के बॉन्ड व निबंध की सजा पिछले दिनों महाराष्ट्र में पुणे के कल्याणीनगर में हुई सड़क दुर्घटना के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का जबरदस्त गुस्सा देखने को मिला था। ढाई करोड़ रुपये की महंगी कार से हुए सड़क हादसे में दो लोगों की मौत हो गई थी। कार को एक नाबालिग चला रहा था। उस वक्त आम लोगों का गुस्सा फूट पड़ा, जब जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने आरोपी को 75 सौ रुपये के बॉन्ड और सड़क सुरक्षा पर एक निबंध लिखने की सजा देते हुए जमानत दे दी थी। जब यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो आरोपी और उसके पिता पर कार्रवाई की गई। देश में नया मोटर वाहन अधिनियम लागू होने के बाद यह उम्मीद बंधी थी कि अब सड़क हादसों में कमी आएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। दूसरी तरफ अमेरिका में 365 दिन में 19 लाख सड़क हादसे हो जाते हैं, लेकिन उनमें मारे जाने वाले लोगों की संख्या 36560 रहती है। *विकसित देशों में भारत के मुकाबले कठोर कानून* पांच साल पहले लागू हुए नए मोटर वाहन अधिनियम के तहत चालान राशि में कई गुना बढ़ोतरी की गई थी। मकसद था, सड़क हादसों में कमी लाना। देश में प्रतिवर्ष 4 लाख से ज्यादा सड़क हादसे हो रहे हैं। सड़क हादसों में मारे जाने वाले लोगों की संख्या के मामले में भारत ने कई विकसित देशों को पीछे छोड़ दिया है। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, चीन, जर्मनी और जापान सहित 19 देश शामिल हैं। सड़क हादसों को लेकर विकसित देशों में भारत के मुकाबले कानून कठोर हैं। साथ ही इन देशों में वाहन से लेकर रोड इंजीनियरिंग तक, इन सभी बातों पर गहराई से काम होता है। 2022 में मारे गए 1,68,491 लोग सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की 'भारत में सड़क दुर्घटनाएं-2022' शीर्षक से जारी वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में 4,61,312 सड़क हादसे हुए थे। इन हादसों में 1,68,491 लोगों की जान गई थी, जबकि 4,43,366 लोग घायल हुए थे। पिछले वर्ष की तुलना में सड़क हादसों में 11.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इन हादसों में होने वाली मौतों में 9.4 प्रतिशत और घायलों की संख्या में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एक्सप्रेस वे सहित राष्ट्रीय राजमार्गों पर 1,51,997 (32.9 प्रतिशत) सड़क हादसे हुए। राज्य मार्गों पर 1,06,682 (23.1 प्रतिशत) हादसे और अन्य मार्गों पर 2,02,633 (43.9 प्रतिशत) सड़क दुर्घटनाएं देखने को मिली। साल 2022 के दौरान सड़क हादसों के 66.5 प्रतिशत पीड़ितों की आयु 18 से 45 वर्ष के बीच थी। अधिकांश पीड़ित युवा थे। लगभग 68 प्रतिशत मौतें, ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में 32 प्रतिशत मौतें हुईं। उत्तर प्रदेश में मारे गए 22,595 लोग 2022 में राष्ट्रीय राजमार्गों पर सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं, तमिलनाडु में दर्ज की गई हैं। इस प्रदेश में 64,105 सड़क हादसे हुए थे। इसके बाद मध्य प्रदेश का नंबर आता है। यहां 54,432 सड़क दुर्घटनाएं हुई। अगर सड़क-उपयोगकर्ता श्रेणी की बात करें तो 2022 में हुई मौतों में दुपहिया सवार सबसे ज्यादा रहे। यह प्रतिशत 44.5प्रतिशत था। इसके बाद पैदल यात्रियों का नंबर आता है। यह प्रतिशत 19.5 रहा है। सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में रही है। इस राज्य में 22,595 लोगों की सड़क हादसों में मौत हो गई। तमिलनाडु में यह आंकड़ा 17,884 रहा है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2021 के दौरान हुए 412432 सड़क हादसों में 153972 लोग मारे गए थे। इसके अलावा 384448 लोग घायल हुए थे। *पूर्व राष्ट्रपति सहित इन नेताओं ने गंवाई जान ...* पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की सड़क हादसे में मौत हो गई थी। कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता राजेश पायलट और केंद्रीय मंत्री रहे गोपीनाथ मुंडे भी सड़क हादसे का शिकार हुए थे। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा भी सड़क हादसे में मारे गए थे। टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन सायरस मिस्त्री का निधन एक सड़क हादसे में हुआ। राजस्थान में बाड़मेर से पूर्व सांसद मानवेंद्र सिंह की पत्नी चित्रा सिंह की सड़क हादसे में मौत हो गई। हादसे में खुद मानवेंद्र सिंह, उनका बेटा और ड्राइवर घायल हो गया था। लोजपा के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद सूरज भान के बेटे की मौत भी रोड एक्सीडेंट में हुई। यूपी के इलाहाबाद में लोजपा के तत्कालीन सांसद और बाहुबली नेता राम किशोर उर्फ रामा सिंह के बेटे राजीव कुमार सिंह उर्फ राहुल की मौत रोड एक्सीडेंट में हो जाती है। *नए कानून लागू, मगर सड़क हादसों में कमी नहीं ...* देश में सितंबर 2019 से लागू हुए नए मोटर वाहन अधिनियम में चालान राशि में कई गुना इजाफा किया गया था। इसके बाद उम्मीद बंधी थी कि अब वाहन चालक संभल कर चलेंगे और सड़क हादसों में कमी आ जाएगी। हालांकि व्यवहार में ऐसा कुछ नहीं हो सका। सड़क सुरक्षा पर काम कर रहे 'सेव लाइफ फाउंडेशन' के अध्यक्ष पीयूष तिवारी कहते हैं, सड़क हादसे होने की कई वजह होती हैं। इसमें यह प्वाइंट भी बहुत अहम है कि देश में यातायात के नियमों को लेकर लोगों का व्यवहार क्या है। रिसर्च बताती है कि सड़क हादसे के लिए जिम्मेदार कारणों में 25 प्रतिशत हिस्सा, चालकों के यातायात व्यवहार से जुड़ा होता है। इसके बाद सड़क इंजीनियरिंग का नंबर आता है। *वाहन सेफ्टी भी एक अहम प्वाइंट* इस तरह के हादसों में रोड इंजीनियरिंग भी जिम्मेदार होती है। इसमें रोड की बनावट कैसी है, टर्न किस तरह बने हैं, सरफेस कैसा है, आदि बातें देखी जाती हैं। वाहन की सेफ्टी का स्टैंडर्ड क्या है, ये भी समझना जरुरी है। ओवरआल एनवायरनमेंट कैसा है, ये भी देखना है। जुर्माना राशि बढ़ने से भी हादसे नहीं थम रहे हैं अभी राज्यों में चालान का प्रतिशत 35 है। इसकी भी रिक्वरी नहीं हो पा रही। रिक्वरी का प्रतिशत बेहद कम है। ऐसे यातायात उल्लंघन, जिनमें उसी वक्त चालान इश्यू कर सकते हैं, उसका प्रावधान भी बहुत कम है। इस सिस्टम का वाहन और सारथी के साथ जुड़ाव नहीं हुआ है। ये तय है कि चालान राशि की रिक्वरी जैसे बढ़ेगी तो चालकों के व्यवहार में बदलाव आएगा। रोड इंजीनियरिंग की कमियां दूर करने के लिए जिला/राज्य स्तर पर एक स्टेंडिंग कमेटी गठित की जाए। वह लगातार इस काम पर नजर रखे। हर माह समीक्षा हो। *भारत में स्पीड बढ़ी तो हादसों की भयावहता भी बढ़ी* हमारे देश में वाहनों की रफ्तार बढ़ रही है। इसके साथ ही हादसों की भयावहता में भी वृद्धि हो रही है। देश में इमरजेंसी केयर जैसी सुविधाओं में सुधार की बहुत ज्यादा जरुरत है। पहले सड़क हादसों में चोट गंभीर नहीं होती थी, लेकिन अस्पताल तक पहुंचने में देरी की वजह से मौत हो जाती थी। अब चोट ज्यादा गंभीर हो गई है। ऐसे में जान बचाना एक बड़ी चुनौती है। अस्पतालों में जान बचाने की पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। सरकार को ट्रॉमा केयर पर फोकस करना होगा। सड़क हादसे तो हर देश में होते हैं, लेकिन मौते उतनी नहीं होती। अमेरिका में भारत से कई गुणा ज्यादा हादसे होते हैं, लेकिन मौत एक चौथाई भी नहीं होती। *यह है भारत सहित कई देशों में हादसों की स्थिति* भारत में 2020 के दौरान 432957 सड़क हादसे हुए थे। इनमें 151417 लोग मारे गए थे। चीन में 244937 हादसों में 63194 लोग मारे गए। रूसी फेडरेशन में 168099 सड़क हादसे हुए थे, जिनमें 18214 लोग मारे गए। दक्षिण अफ्रीका में 146773 सड़क हादसे हुए। इनमें 14500 लोगों की मौत हो गई। इरान में हुए 337891 सड़क हादसों में 16540 लोग मारे गए। तुर्की में 186532 सड़क हादसों में 6675 लोगों की मौत हुई। अमेरिका में 1927654 सड़क हादसे हुए थे, जिनमें 36560 लोगों की मौत हुई। जर्मनी में 308721 सड़क हादसे हुए। इनमें 3275 लोग मारे गए। जापान में 430601 सड़क हादसे हुए थे, जिनमें 4166 लोगों की जान चली गई। *इस वजह से बढ़ी सड़क हादसों की रफ्तार ...* साल 2021 के दौरान हुए सड़क हादसों में 133025 (86.4 प्रतिशत) पुरुष और 20947 (13.6 प्रतिशत) महिलाओं की जान गई है। दुपहिया वाहन पर बिना हेलमेट वाले 46593 (30.6 प्रतिशत) चालक सड़क हादसों का शिकार हुए हैं। ऐसे 16397 कार सवार, जिन्होंने सीट बेल्ट नहीं लगाई थी, सड़क हादसों में मारे गए। ओवरलोड वाहनों की वजह से जो हादसे हुए, उनमें 11011 लोग मारे गए। हिट एंड रन के 57415 केस हुए थे, जिनमें 25938 लोगों की मौत हो गई और 45355 लोग घायल हुए। कुल सड़क हादसों में से 13.7 प्रतिशत घटनाएं ऐसी थी, जिनमें वाहन चालक के पास वैद्य लाइसेंस नहीं था। कुछ चालक ऐसे भी थे, जिनके पास लर्नर लाइसेंस था। 2021 में सड़क पर बने गड्ढों के चलते 1481 हादसे हुए हैं। ऐसे वाहन जो दस साल पुराने हैं, उनका भी सड़क हादसों में 25.8 प्रतिशत हिस्सा रहा है।शहरी क्षेत्रों में हुए सड़क हादसों में 47235 लोग मारे गए, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 106737 लोगों की जान गई है। *नए एक्ट में था भारी जुर्माने का प्रावधान* संशोधित मोटर व्हीकल एक्ट में अगर शराब पीकर ड्राइविंग करने का मामला साबित होता है, तो चालक पर 10 हजार रुपये तक का जुर्माना लगता है। एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और पीसीआर का रास्ता रोकने पर भी 10 हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। बिना हेलमेट पकड़े जाने पर तीन माह के लिए लाइसेंस सस्पेंड होता है। ओवर स्पीड और बिना बीमा पॉलिसी के गाड़ी चलाने पर भी दो हजार रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है। नाबालिग, गाड़ी चलाता हुआ पकड़ा गया, तो वाहन मालिक और अभिभावक, दोनों को कसूरवार ठहराया जाता है। इसमें तीन साल की सजा और 25 हजार रुपये का जुर्माना देना पड़ सकता है। गाड़ी का रजिस्ट्रेशन रद्द होने का भी प्रावधान है। ट्रैफिक सिग्नल के उल्लंघन पर 500 रुपये जुर्माना होगा। दोबारा यह उल्लंघन होने पर जुर्माना राशि दो हजार रुपये तक पहुंच सकती है। हिट एंड रन केस में पीड़ित परिवारों को दो लाख रुपये तक की मदद देने का प्रावधान किया गया है। बिना सीट बेल्ट के वाहन चलाना, यह जुर्माना भी 100 रुपये से बढ़ा कर 1000 रुपये कर दिया गया है। ड्राइविंग के दौरान मोबाइल फोन पर बात करना, इस उल्लंघन पर 5000 रुपये जुर्माना देना पड़ता है। विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
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Sep 25, 2024
कार्यकर्ताओं की मेहनत बदलेगी कालका हल्के की तकदीर : गुरदेव चौधरी
रायपुररानी, 25 सितंबर 2024 (यूटीएन)। कालका हल्के की तकदीर अब वोट के रूप में जनता के हाथ में है। आने वाली 5 अक्तूबर को जब लोग ईवीएम मशीन पर हीरे के निशान के सामने वाला बटन दबायेंगे तो ही कालका हल्के की तकदीर बदलेगी। यह बात युवा समाजसेवी एवं गुर्जर नेता गुरदेव चौधरी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कही। गुरदेव चौधरी ने कहा के जिस तरह से आज़ाद प्रत्याशी गोपाल चौधरी के प्रचार के लिए गांव गांव में कार्यकर्ता जुटे हैं उससे गोपाल चौधरी की जीत तय है। कार्यकर्ताओं की मेहनत ओर कालका हल्के की प्रबुद्ध जनता का अपार समर्थन कालका हल्के की तकदीर को बदलेगा। उन्होंने कहा के भाजपा व कांग्रेस की जनविरोधी नीतियों व हल्के की अनदेखी के चलते आज कालका विधानसभा विकास के मामले में 20 साल पीछे हो चुका है। 10 साल हरियाणा में भाजपा की सरकार रही लेकिन सरकार ने कालका हल्के के जख्मों को भरना जरूरी नहीं समझा। गुर्जर नेता गुरदेव चौधरी ने कहा के आज कालका हल्के में बेरोजगार युवा रोजगार के लिए दर दर भटक रहे हैं। अगर हमारे पड़ोसी राज्य हिमाचल में बीबीएन बद्दी इंडस्ट्री एरिया नहीं होता तो युवा वर्ग व उनके परिवार भूखे मरते। कालका हल्के में सड़कों की जर्जर हालत किसी से छिपी नहीं है। सालों से कई सड़के अधूरी पड़ी हैं जिनका निर्माण करने की जहमत भाजपा सरकार ने नहीं उठाई। चौधरी ने कहा के आज आम वर्ग, मध्यम वर्ग मंहगाई के बोझ तले दबा है, लेकिन सरकारों को कोई फर्क नहीं पड़ा। गुरदेव चौधरी ने कहा के इस बार कालका हल्के की जनता के पास एक सुनहरी मौका है के वह भाजपा कांग्रेस को दरकिनार कर हल्के से आज़ाद प्रत्याशी गोपाल चौधरी को भारी वोटों से जिताकर विधानसभा भेजे। ताकि कालका हल्के का आपका अपना धरती पुत्र कालका हल्के के विकास ओर आम वर्ग की आवाज़ को विधानसभा में बुलंद कर सके। हरियाणा-स्टेट ब्यूरो, (सचिन बराड़)।
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Sep 25, 2024
हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बन रही का कालका का अब होगा विकास
कालका, 25 सितंबर 2024 (यूटीएन)। कालका विधानसभा से कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी प्रदीप चौधरी ने कालका और पिंजौर क्षेत्र में चुनाव प्रचार करते हुए वोट मांगें और कहा कि हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बन रही हैं। जिसके बाद अब कालका के रुके हुए विकास को किया जाएगा। उन्होंने कहा कि पिछले 10 साल में बीजेपी ने जानबुझ कर कालका के विकास को लटकाने का काम किया है। अब जनता के बीच जाकर विकास की बातें कर रहे हैं। इनकी बातों पर जनता को बिलकुल भी विश्वास नही है। एचएमटी इन्होंने बंद कर दी और धारा 7ए लगाकर लोगों को परेशान किया हैं। इसके साथ ही कालोनियों को नियमित नही किया गया और इन कालोनियों का विकास नही हो पा रहा है। लोगो को पीने का पानी नही मिल रहा है। लावारिस पशु लोगों की जान ले रहे है। साफ सफाई की व्यवस्था ठप्प पड़ी है। इसके अलावा सड़कों का बुरा हाल है। हरियाणा-स्टेट ब्यूरो, (सचिन बराड़)।
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Sep 25, 2024
महिलाओं की बेहतरी के लिए मातृत्व लाभ का भुगतान न किए जाने की समस्या का तुरंत समाधान किया जाना चाहिए
नई दिल्ली, 25 सितंबर 2024 (यूटीएन)। एसोचैम के 5वें विविधता और समावेश उत्कृष्टता पुरस्कार और सम्मेलन 2024 में मुख्य अतिथि सुश्री डेलिना खोंगडुप, सदस्य राष्ट्रीय महिला आयोग ने कार्यस्थल पर विविधता और समावेश की आवश्यकता पर बल देते हुए श्रोताओं को संबोधित किया। महिलाओं और सभी लिंगों के अधिकारों के लिए संगठनों में यह एक निरंतर अभ्यास होना चाहिए। समाज के सभी क्षेत्रों के लिए लैंगिक विविधता हासिल करना एक मानवीय और सामाजिक जिम्मेदारी है। भारत में विविधता बहुत अधिक है और सभी संभव स्थानों पर समावेश की भावना होनी चाहिए। निदेशक मंडल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए कंपनी अधिनियम में संशोधन किया गया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि भारतीय कार्यबल में सीईओ स्तर पर महिलाओं की संख्या 5% से भी कम है। कॉरपोरेट इंडिया को इस समावेश को पहचानना चाहिए और कार्यस्थलों पर लैंगिक संतुलन संबंध को पाटना चाहिए। कार्यस्थलों पर उत्पीड़न और मातृत्व लाभ का भुगतान न किए जाने की समस्या को बेहतर बनाने के लिए तत्काल संबोधित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें विकसित भारत @2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। एसोचैम नेशनल एम्पावरमेंट काउंसिल की अध्यक्ष श्रीमति शिवशंकर ने अपना स्वागत भाषण दिया और कहा कि यह एक निर्णायक क्षण है, जहां विविधता और समावेशन अब केवल चर्चा के शब्द नहीं रह गए हैं, बल्कि सतत विकास के आवश्यक स्तंभ बन गए हैं। हमें ऐसे भविष्य की दिशा में कार्रवाई और सहयोग को प्रेरित करने का लक्ष्य रखना चाहिए, जहां हर कोई, चाहे उसकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, फल-फूल सके। एसोचैम नेशनल सीएसआर एंड एम्पावरमेंट काउंसिल के सह-अध्यक्ष और दक्षिण एशिया में विदेश मामले और भागीदारी निदेशक रवि भटनागर ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में कार्यस्थलों पर कर्मचारियों की भलाई को मान्यता देने के महत्व पर प्रकाश डाला, ताकि लैंगिक विविधता को केंद्र में रखा जा सके। भारत का मिशन विविधता, समानता और समावेशन हासिल करना है, क्योंकि इस देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। समावेशी कार्यस्थल संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इस विविधता को अपनाना बहुत ज़रूरी है। एसोचैम नेशनल एम्पावरमेंट काउंसिल की सह-अध्यक्ष सुश्री ज्ञान शाह ने बताया कि विविधता में एकता की भारत की विरासत को हमारे कार्यस्थलों और समुदायों तक कैसे बढ़ाया जाना चाहिए, जिससे ऐसे माहौल का निर्माण हो सके जहाँ हर कोई मूल्यवान महसूस करे और योगदान करने के लिए सशक्त हो। समावेशी भारत ही समृद्ध भारत है। विकलांग व्यक्तियों के लिए प्रशिक्षण सत्रों में मदद करना समय की मांग है। भारत में सच्चे समावेश का मतलब है अंतर को पाटना - न केवल क्षेत्रों और भाषाओं में बल्कि लिंग, क्षमता और अवसर में भी गुरप्रीत अरोड़ा ने कहा भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में समावेश केवल एक विकल्प नहीं है; यह एक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को यह महसूस होना चाहिए कि वह किसी से जुड़ा हुआ है, चाहे उसकी पृष्ठभूमि या पहचान कुछ भी हो। 5वें विविधता और समावेश उत्कृष्टता पुरस्कार और कॉन्क्लेव 2024 में पुरस्कार समारोह आयोजित किया गया, जहां विभिन्न श्रेणियों के तहत संगठनों को मान्यता दी गई। विविधता और समावेश पर नीतियों के लिए सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता का पुरस्कार एडेलमेन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (छोटा), मिंत्रा डिजाइन प्राइवेट लिमिटेड (मध्यम), केपीएमजी इंडिया (बड़ा) ने जीता। विकलांग व्यक्तियों के लिए सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता का पुरस्कार बिज़सोलइंडिया सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (छोटा), सीएसजी सिस्टम्स इंटरनेशनल (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड (मध्यम), टीवीएस मोटर कंपनी (बड़ा), रिफ्लेक्शंस इन्फो सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड (छोटा), स्विस रे (मध्यम) ने जीता; महिलाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता की श्रेणी में केपीएमजी (बड़ा) ने जीता। विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
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Sep 25, 2024
एशिया पावर इंडेक्स:जापान को पछाड़कर तीसरा सबसे ताकतवर देश बना भारत
नई दिल्ली, 25 सितंबर 2024 (यूटीएन)। एशिया पावर इंडेक्स में जापान को पछाड़कर भारत तीसरा सबसे ताकतवर देश बन गया है। बुधवार को भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इसकी जानकारी दी। मंत्रालय ने बताया कि भारत के तेज आर्थिक विकास, युवा जनसंख्या, अर्थव्यवस्था का विस्तार की वजह से भारत की स्थिति बेहतर हुई है। साथ ही ये भारत की दुनिया में बढ़ती साख को भी दर्शाता है। *एशिया प्रशांत क्षेत्र के ताकतवर देशों की सूची दर्शाता है एशिया पावर इंडेक्स* मंत्रालय ने बयान में कहा कि 'एक बड़े बदलाव के तहत भारत ने जापान को पछाड़कर एशिया पावर इंडेक्स में तीसरे सबसे ताकतवर देश का दर्जा हासिल किया है। ये भारत की दुनियाभर में बढ़ रही साख को दर्शाता है।' एशिया पावर इंडेक्स की शुरुआत साल 2018 में लॉवी इंस्टीट्यूट द्वारा की गई थी। इसमें एशिया प्रशांत क्षेत्र में सालाना आधार पर ताकतवर देशों की एक सूची तैयार की जाती है। इसमें एशिया प्रशांत के 27 देशों की स्थिति का आकलन किया जाता है। *इन वजहों से बढ़ रही दुनिया में भारत की साख* मंत्रालय ने बताया कि एशिया पावर इंडेक्स में पता चला है कि क्षेत्रीय ताकतों की सूची में भी भारत की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है और भारत का प्रभाव भी बढ़ रहा है। भारत के उछाल में सबसे अहम फैक्टर इसका आर्थिक विकास है। मंत्रालय ने कहा कि भारत ने कोरोना महामारी के बाद जबरदस्त आर्थिक रिकवरी की, जिसकी वजह से भारत की आर्थिक क्षमताओं में 4.2 अंकों की बढ़ोतरी दर्ज की गई। देश के आर्थिक विकास में इसकी बड़ी जनसंख्या की अहम भूमिका है और मजबूत आर्थिक वृद्धि दर के चलते भारत दुनिया दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। *युवा जनसंख्या भारत की ताकत* भारत को अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंदियों चीन और जापान की तुलना में जनसांख्यिकी का भी फायदा मिला है। चीन और जापान जहां अपनी बुजुर्ग होती जनसंख्या से जूझ रहे हैं, वहीं भारत के पास विशाल युवा आबादी है, जो इसके आर्थिक विकास को आने वाले दशकों में मजबूती देती रहेगी। क्वाड और विभिन्न वैश्विक संगठनों में भारत की मौजूदगी से कूटनीति की दुनिया में भी भारत का प्रभाव बढ़ा है। एशिया पावर इंडेक्स में किसी भी देश की ताकत का आकलन उसकी आर्थिक क्षमता, सैन्य क्षमता, भविष्य के संसाधनों, आर्थिक साझेदारी, रक्षा नेटवर्क, कूटनीतिक प्रभाव और सांस्कृतिक प्रभाव के आधार पर किया जाता है। विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
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Sep 25, 2024