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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के सौ साल देश और दुनिया में चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा

नई दिल्ली, 13 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विजयादशमी उत्सव के साथ ही स्थापना दिवस भी मना रहा है. इसके साथ ही संघ अपने सौवें साल में प्रवेश कर चुका है. इस अवसर पर संघ मुख्‍यालय नागपुर में सरसंघचालक डॉक्टर मोहनराव भागवत का चर्चित विजयादशमी भाषण भी हुआ. आइए, देश और दुनिया भर का ध्यान खींचने वाले संघ के सौ साल के सफर के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1925 में विजयादशी के दिन पांच स्वंयसेवकों के साथ डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इसकी शुरुआत की थी। संघ के लाखों स्वयंसेवक हैं। संघ के मुताबिक ब्रिटेन, अमेरिका, फिनलैंड, मॉरीशस समेत 39 देशों में उसकी शाखा लगती है।इस सफर में तीन बार संघ पर बैन लगा। संघ प्रमुख को जेल तक जाना पड़ा।   साल 1919, पहले विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन ने ऑटोमन साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। अंग्रेजों ने तुर्की के खलीफा यानी मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक नेता को सत्ता से हटा दिया। इसका दुनियाभर के मुसलमानों ने विरोध किया। गुलाम भारत के मुसलमान भी अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर उतर गए। शौकत अली और मोहम्मद अली नाम के दो भाइयों ने लखनऊ में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसे नाम दिया गया खिलाफत आंदोलन। मकसद था- खलीफा को तुर्की के सिंहासन पर दोबारा बैठाना। जल्द ही देशभर के मुसलमान इस आंदोलन से जुड़ गए। ये वो दौर था जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हो चुका । पंजाब में मार्शल लॉ लगा हुआ था। देशभर में रौलेट एक्ट यानी बिना मुकदमा चलाए किसी को जेल में बंद करने की ब्रितानी हुकूमत की नीतियों का विरोध हो रहा था।   चार साल पहले साउथ अफ्रीका से लौटे महात्मा गांधी अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की तैयारी में जुटे थे। खिलाफत आंदोलन को उन्होंने एक मौके के रूप में देखा कि इसके जरिए हिंदुओं और मुसलमानों को एक मंच पर लाया जा सकता है। गांधी ने एक नारा दिया- ‘जिस तरह हिंदुओं के लिए गाय पूज्य है, उसी तरह मुसलमानों के लिए खलीफा।’ डॉक्टरी पढ़कर नए-नए कांग्रेसी बने नागपुर के केशव बलिराम हेडगेवार को गांधी का यह फैसला सही नहीं लगा। हेडगेवार की जीवनी लिखने वाले सीपी भिशीकर अपनी किताब 'केशव : संघ निर्माता' में लिखते हैं- 'हेडगेवार ने गांधी से कहा कि खलीफा का समर्थन करके मुसलमानों ने ये साबित कर दिया कि देश से पहले उनका धर्म है। कांग्रेस को इस आंदोलन का समर्थन नहीं करना चाहिए।' हालांकि गांधी ने हेडगेवार की बात नहीं मानी और खिलाफत आंदोलन के समर्थन की घोषणा कर दी।   न चाहते हुए भी हेडगेवार इस आंदोलन से जुड़े रहे और उग्र भाषण देने की वजह से अगस्त 1921 से जुलाई 1922 तक जेल में भी रहे। अगस्त 1921, खिलाफत आंदोलन केरल पहुंचा। यहां के मालाबार इलाके में मुसलमानों और हिंदू जमींदारों के बीच झड़प हो गई, जो जल्द ही एक बड़े दंगे में तब्दील हो गई। इस दंगे में 2 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इस दंगे का जिक्र करते हुए अपनी किताब 'थॉट्स ऑन पाकिस्तान' में लिखा- ‘इस विद्रोह का मकसद ब्रिटिश हुकूमत को खत्म कर इस्लाम राज की स्थापना करना था। तब जबरन धर्म परिवर्तन कराए गए, मंदिर ढहाए गए, महिलाओं के साथ बलात्कार हुए।’अंबेडकर ने खिलाफत आंदोलन पर सवाल उठाते हुए लिखा- ‘यही गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता कायम करने की कोशिश है। क्या फल मिला इस कोशिश का?’ कांग्रेस अध्यक्ष रहीं एनी बेसेंट, दंगों के बाद मालाबार गईं।    उसके बाद उन्होंने एक अखबार में आर्टिकल लिखा- 'अच्छा होता अगर महात्मा गांधी मालाबार जाते। वे अपनी आंखों से उस भयावहता को देख पाते, जो उनके प्रिय भाइयों मोहम्मद अली और शौकत अली ने खड़ी की है।' दो साल बाद यानी 1923 में नागपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ। कलेक्टर ने हिंदुओं की झांकियों पर रोक लगा दी। हेडगेवार को उम्मीद थी कि कांग्रेस इसके विरोध में आवाज उठाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। खिलाफत आंदोलन और मालाबार हिंसा से नाराज हेडगेवार के मन में अब हिंदुओं के लिए अलग संगठन तैयार करने का ख्याल आने लगा। तब देश में हिंदू महासभा का गठन हो चुका था। हेडगेवार के मेंटॉर रहे डॉ. बीएस मुंजे हिंदू महासभा के सचिव थे। कुछ समय के लिए हेडगेवार हिंदू महासभा से जुड़े भी, लेकिन उन्हें यह संगठन रास नहीं आया। हेडगेवार का मानना था कि हिंदू महासभा राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए हिंदू हितों से समझौता कर लेगी।   उन दिनों नागपुर सेंट्रल प्रोविंस की राजधानी हुआ करता था। अंग्रेजों ने भारत के दूसरे हिस्सों को नापने के लिए नागपुर को जीरो माइल पॉइंट बनाया था। आज भी जीरो माइल पर एक स्तंभ और चार घोड़ों की प्रतिमाएं हैं। तारीख 27 सितंबर 1925, उस दिन विजयादशमी थी। हेडगेवार ने पांच लोगों के साथ अपने घर शुक्रवारी में एक बैठक बुलाई और कहा कि आज से हम संघ शुरू कर रहे हैं। बैठक में हेडगेवार के साथ विनायक दामोदर सावरकर के भाई गणेश सावरकर, डॉ. बीएस मुंजे, एलवी परांजपे और बीबी थोलकर शामिल थे। 17 अप्रैल 1926 को हेडगेवार के संगठन का नामकरण हुआ- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। शुरुआत में संघ के सदस्यों को सभासद कहा जाता था। हफ्ते में दो दिन रविवार और गुरुवार को सभी सदस्य एक खास जगह इकट्ठा होते थे। रविवार को वे कसरत करते थे और गुरुवार को राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करते थे। इस कार्यक्रम को शाखा नाम दिया गया।   शाखा संघ की पहली और सबसे अहम ईकाई है। संघ की बैठकों में आने वाले युवा, हेडगेवार से पूछते थे कि अपने संघ का नाम क्या है? तब हेडगेवार को लगा कि संगठन का नामकरण करना चाहिए। उन्होंने सभी सदस्यों की एक बैठक बुलाई। बैठक में इसके लिए तीन नाम सुझाए गए- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्धारक मंडल। 25 में से 20 लोगों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को चुना। 17 अप्रैल 1926 को संघ का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर दिया गया। संघ के सदस्यों की पहचान स्वयंसेवक के रूप में होने लगी। इसी साल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने राम नवमी के दिन एक बड़ा कार्यक्रम किया। संघ के स्वयंसेवक खाकी शर्ट, खाकी पैंट, खाकी कैप और बूट में नजर आए। ये संघ की शुरुआती यूनिफॉर्म थी। जैसे-जैसे संघ में आने वाले स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ने लगी, हेडगेवार को लगने लगा कि हफ्ते में दो दिन की बजाय नियमित शाखा की शुरुआत होनी चाहिए। अब इसके लिए जगह की तलाश की जाने लगी। अंत में नागपुर के ‘मोहिते का बाड़ा’ मैदान को चुना गया। 18 मई 1926 से संघ की नियमित शाखा की शुरुआत हुई।   *संघ किसी आंदोलन में शामिल नहीं होगा, स्वयंसेवक चाहें तो भाग ले सकते हैं* 1930 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के नमक कानून के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। तब संघ के स्वयंसेवकों ने हेडगेवार से पूछा कि आंदोलन में शामिल होना चाहिए या नहीं। कुछ स्वयंसेवकों ने संघ की ड्रेस में भगवा ध्वज लेकर आंदोलन में शामिल होने की इच्छा जताई। हेडगेवार ने कहा- 'आंदोलन जिस बैनर तले हो रहा है, वह ठीक है। अगर संघ की ड्रेस में या भगवा ध्वज लेकर कोई शामिल होगा, तो विवाद होगा। अंग्रेज हमारे संगठन पर रोक लगा सकते हैं, इसलिए जिसे शामिल होना है, वह व्यक्तिगत रूप से आंदोलन में शामिल होगा।   बतौर संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस आंदोलन में भाग नहीं लेगा।' हेडगेवार इस आंदोलन में शामिल हुए और जेल भी गए। करीब 9 महीने वे जेल में रहे। तब एलवी परांजपे को सरसंघचालक की जिम्मेदारी दी गई थी। जंगल सत्याग्रह से सजा काटकर लौटने के बाद मोहिते का बाड़ा के मालिक साहूकार गुलाब ने संघ की शाखा लगाने से मना कर दिया। इसके बाद भोसले संस्थान के हाथीखाना में संघ की शाखा लगने लगी। बाद में यह जगह भी छोड़नी पड़ी और महाराज भोसले के तुलसीबाग में संघ की शाखा लगने लगी। इसी बीच 1941 में साहूकार गुलाबराव कर्ज में फंस गए। 30 जून 1941 को माधवराव सदाशिव गोलवलकर के नाम से पूरा मोहिते का बाड़ा खरीद लिया गया।   *संघ विस्तार की स्ट्रैटजी : बाहर पढ़ने जाओ और छात्रों को संघ से जोड़ो*  डॉ. हेडगेवार मैट्रिक परीक्षा पास करने वाले युवाओं को नागपुर से बाहर पढ़ने की सलाह देते थे। वे युवाओं से कहते थे कि अपने-अपने कॉलेजों में शाखा लगाइए, साथियों को संघ से जोड़िए। छुट्टियों में जब वे युवा नागपुर आते थे, तो हेडगेवार उनसे शाखा के बारे में फीडबैक लेते थे। महाराष्ट्र से बाहर संघ की पहली शाखा 1930 में वाराणसी में लगी। दूसरे संघ प्रमुख रहे गोलवलकर वाराणसी की इसी शाखा से संघ से जुड़े। डॉ. हेडगेवार की एक और रणनीति थी- शाखा में नियमित नहीं आने वाले लड़कों से मिलने के लिए वे उनके घर जाते थे। हेडगेवार की बातचीत से प्रभावित होकर कई परिवार खुद ही अपने बच्चों को शाखा में भेजने लगे। इससे दिन पर दिन संघ में आने वाले स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ने लगी।   *राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुरू करने वाले हेडगेवार की कहानी...*  1 अप्रैल 1889 को नागपुर के एक वैदिक ब्राह्मण परिवार में केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ। हेडगेवार 6 भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर थे। वे 14 साल के थे, तब प्लेग से उनके माता-पिता की मौत एक ही दिन हो गई। जिसके बाद बड़े भाई महादेव ने उनकी परवरिश की। महादेव को अखाड़ों का शौक था। वे हेडगेवार को अपने साथ नागपुर के शिवराम गुरु अखाड़े में लेकर जाते थे। हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे बीएस मुंजे भी उस अखाड़े में जाते थे। 1904-05 की बात है। एक दिन मुंजे की नजर हेडगेवार पर पड़ी। दोनों के बीच बातचीत हुई और फिर वे नियमित रूप से मिलने लगे। दिनों भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का राज था और देश में बंगाल विभाजन की गूंज थी। सीनियर जर्नलिस्ट विजय त्रिवेदी अपनी किताब ‘संघम् शरण् गच्छामि’ में लिखते हैं- ‘मुंजे अपने घर बुलाकर हेडगेवार को बम बनाने की ट्रेनिंग देते थे।’   1910 में मुंजे की सलाह पर वे डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए कलकत्ता चले गए। कहा जाता है कि डॉक्टरी की पढ़ाई तो बहाना था, असल में हेडगेवार को कलकत्ता में क्रांतिकारी गतिविधियां सीखनी थीं। इसीलिए मुंजे ने उन्हें कलकत्ता भेजा। उन दिनों कलकत्ता क्रांतिकारियों का गढ़ हुआ करता था। यहां वे अनुशीलन समिति से जुड़ गए। इस समिति में अरविंद घोष और विपिनचंद्र पाल जैसे क्रांतिकारी शामिल थे। 1915 में डॉक्टरी पढ़कर कलकत्ता से लौटे हेडगेवार ने नौकरी करने की बजाय नागपुर में एक व्यायामशाला खोली। यहां वे युवाओं को व्यायाम के साथ-साथ उनके बीच ज्वलंत मुद्दों पर डिबेट कॉम्पिटिशन कराते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हेडक्वार्टर के नजदीक आज भी वो व्यायामशाला है। 1910 से 1919 के बीच हेडगेवार ने कई छोटे संगठन बनाए, पर उसका कुछ खास परिणाम नहीं निकला। तब हेडगेवार ने तय किया कि नया संगठन बनाने के बजाय कांग्रेस से जुड़कर काम करना बेहतर होगा। 1919 में वे कांग्रेस के एक्टिव मेंबर बन गए। उस साल कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में उन्होंने भाग भी लिया। अगले साल यानी 1920 में हिंदूवादी नेता एलवी परांजपे ने भारत स्वयंसेवक मंडल शुरू किया। इस संगठन का काम था कांग्रेस के अधिवेशनों के लिए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जुटाना।   हेडगेवार भी इस संगठन से जुड़ गए। दिसंबर 1920, सी. विजय राघवाचार्य की अध्यक्षता में नागपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इसमें करीब 3 हजार कार्यकर्ता, 15 हजार डेलिगेट्स और हजारों लोग शामिल हुए। परांजपे और हेडगेवार को अधिवेशन में डेलिगेट्स के रहने और खाने की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी मिली थी। उस अधिवेशन में हेडगेवार ने 'विषय नियामक समिति' का प्रस्ताव दिया, जिसे ठुकरा दिया गया। इस प्रस्ताव में हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग रखी थी। कहा जाता है कि उस दिन से ही हेडगेवार, कांग्रेस की लीडरशिप से नाराज रहने लगे थे। 1921 में उन्होंने महाराष्ट्र के कटोल और भरतवाड़ा में भाषण दिया। इसको लेकर अंग्रेजों ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा लगाया। उन्हें जेल भेज दिया गया। जुलाई 1922 में जेल से निकलने के बाद हेडगेवार के स्वागत के लिए एक सभा आयोजित की गई, जिसमें मोतीलाल नेहरू भी शामिल थे। इसी साल हेडगेवार को प्रदेश कांग्रेस का जॉइंट सेक्रेटरी बनाया गया। उन दिनों कांग्रेस वॉलंटियर्स के लिए हिंदुस्तानी सेवा दल चलता था। हेडगेवार को इसमें अहम जिम्मेदारी मिली, हालांकि वे अपने रोल से बहुत खुश नहीं थे। वे कुछ अलग करना चाहते थे। खिलाफत आंदोलन, मालाबार हिंसा और नागपुर दंगे के बाद आखिरकार 1925 में उन्होंने संघ की नींव रखी।   *डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने रखी थी संघ की नींव* एक सामाजिक- सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने रखी थी. इसलिए संघ को जानने के लिए किसी भी जागरूक शख्स को पहले इसके संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के बारे में जानना जरूरी माना जाता है. अपने जीवनकाल में  उन्हें‘डॉक्टरजी’ के नाम से पुकारा जाता था. समाज सेवा और देशभक्ति की भावना से भरकर उन्होंने 36 साल की आयु में संघ की स्थापना की थी. बचपन में उन्होंने दोस्तों के साथ मिलकर सीतावर्डी के दुर्ग से अंग्रेजों का यूनियन जैक उतारने के लिए सुरंग बनाने की योजना बना डाली थी.   *तीन बार प्रतिबंधों के बावजूद हमेशा बढ़ता ही रहा संघ*  डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने साल 1925 में विजयादशमी (27 सितंबर) के पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना  की थी. संघ की प्रतिनिधि सभा की मार्च 2024 में हुई बैठक के अनुसार, देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 922 जिलों, 6597 खंडों और 27,720 मंडलों में 73,117 दैनिक शाखाएं हैं. इन प्रत्येक मंडल में 12 से 15 गांव शामिल हैं. संघ की प्रेरणा और सहयोग से समाज के हर क्षेत्र में विभिन्न संगठन चल रहे हैं, जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं. संघ के विरोधियों ने इस पर 1948, 1975 और 1992 में तीन बार प्रतिबंध लगाया. लेकिन तीनों बार संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा.   *संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में क्या है ‘हिन्दू’ का मतलब?* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में ‘हिन्दू’ शब्द की व्याख्या करता है. यह किसी भी तरह से (पश्चिमी)  धार्मिक अवधारणा के समान नहीं है. इसकी विचारधारा और मिशन का जीवंत संबंध स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और बिपीन चंद्र पाल जैसे हिन्दू विचारकों के दर्शन से है. स्वामी विवेकानंद ने यह महसूस किया था कि “हिन्दुओं को परस्पर सहयोग और सराहना का भाव सिखाने के लिए सही अर्थों में एक हिन्दू संगठन अत्यंत आवश्यक है जो.”स्वामी विवेकानंद के इस विचार को डॉक्टर हेडगेवार ने व्यवहार में तब्दील कर दिया.   *डॉक्टर हेडगेवार ने क्यों बनाई थी 'शाखा' जैसी ईकाई?* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सबसे मूलभूत यानी बुनियादी ईकाई उसकी शाखाएं हैं. ये ‘स्व’ के भाव को  एक बड़े सामाजिक और राष्ट्रीय हित की भावना में मिला देती हैं. दरअसल, हम यह कह सकते हैं कि हिन्दू राष्ट्र को स्वतंत्र करने और हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति की रक्षा कर राष्ट्र कोंपरम वैभव तक पहुंचाने के उद्देश्य से डॉक्टर हेडगेवार ने संघ की स्थापना की थी. संघ की शाखा से निकले कई स्वयंसेवक देश में राजनीतिक सहित विभिन्न क्षेत्रों में सबसे बड़े पदों पर पहुंचे, लेकिन संघ अपनी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं होने का दावा करता है.   *राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या करता है, उसका ध्येय क्या है?* संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर की किताब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र के मुताबिक, भारत को हर क्षेत्र में महान बनाना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का केवल एक ध्येय है. संघ एक सशक्त हिन्दू समाज के निर्माण के लिए सभी जाति के लोगों को एक करना चाहता है. संघ का साधारण सिद्धांत यह है कि संघ शाखा चलाने के सिवाय कुछ नहीं करेगा और उसका स्वयंसेवक कोई कार्यक्षेत्र नहीं छोड़ेगा. इसलिए संघ अपनी स्थापना के बाद से ही महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सहित तमाम महापुरुषों और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आकर्षण और जिज्ञासा का केंद्र बना रहा था.   *संघ की ताकत क्या है, स्वयंसेवक या प्रचारक किसे कहते हैं?* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की असली ताकत राष्ट्र के लिए स्वयं प्रेरणा से कार्य करने वाले उनके कार्यकर्ता हैं, जिन्हें स्वयंसेवक कहा जाता है. समकालीन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से परे देश के नवनिर्माण की आशा के साथ संगठन की योजना से काम करने वाले ऐसे स्वयंसेवकों को संघ 'देवदुर्लभ' कार्यकर्ता बताता है. इन स्वयंसेवकों में से कई युवक अपना पूरा जीवन संघ के जरिए राष्ट्र के लिए समर्पित करते हैं. इन्हें प्रचारक कहा जाता है. इनका काम स्वयंसेवकों को आपस में जोड़े रखना और शीर्ष नेतृत्व की बातों को शाखा से जुड़े परिवारों तक पहुंचाना होना होता है.   *आजादी की लड़ाई में क्या और कैसा था संघ का योगदान?* भारत के स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को लेकर अक्सर उसके विरोधी सवाल उठाते रहते हैं. हालांकि, इसको आजादी के लिए संघर्ष करने वाले संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के संदर्भ में समझा जा सकता है. भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की ओर से प्रकाशित राकेश सिन्हा की लिखी आधुनिक भारत के निर्माता: डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार किताब के मुताबिक, संघ की भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही. डॉक्टर हेडगेवार कोलकाता में श्याम सुन्दर चक्रवर्ती और मौलवी लियाकत हुसैन से जुड़े रहे.    *क्रांतिकारी डॉक्टर हेडगेवार ने कभी विवाह न करने का संकल्प किया* कलकत्ता में रत्नागिरी से आए आठले नाम के एक बम निर्माता क्रांतिकारी से डॉक्टर हेडगेवार ने भी बम बनाना सीखा. आठले के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार डॉक्टर हेडगेवार और श्याम सुन्दर चक्रवर्ती ने गुप्त रूप से किया था. क्रांतिकारी रहकर ही डॉक्टर हेडगेवार ने कभी विवाह न करने का संकल्प किया था. अपने क्रांतिकारी जीवन में डॉक्टर हेडगेवार ने खुद शस्त्रों का प्रयोग किया. वह भी इतनी सावधानी से कि तत्कालीन अंग्रेज सरकार संदेह होते हुए भी उन्हें पकड़ न सकी. उनके प्रयासों ने देश के कई हिस्सों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ असंतोष और संघर्षों को आगे बढ़ाया. *द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी अंग्रेजों को भारत ने निकालने की कोशिश* संघ के वरिष्ठ अधिकारी बाबा साहब आप्टे बताते थे, “जब सन 1939 का वर्ष समाप्ति की ओर था और यूरोप में महायुद्ध जारी था उन दिनों डॉक्टर हेडगेवार को रात-दिन एक ही चिंता रहती थी कि महायुद्ध की इस स्थिति में अंग्रेजों को भारत से जड़-मूल सहित उखाड़ फेंकने के लिए उतना प्रभावी और शक्तिशाली संगठन भी जल्दी ही खड़ा कर लेना है. उनकी नजरों से ब्रिटिश दासता कभी ओझल नहीं हो पाई. संघ के सरकार्यवाह रहे भैयाजी दाणी ने संघ दर्शन किताब में लिखा है, “अंग्रेज सरकार के रोष तथा निषेध की परवाह न करते हुए अपने विद्यालय में डॉक्टर हेडगेवार ने ‘वंदेमातरम्’ का उद्घोष गुंजाया, भले इसके लिए उन्हें वह विद्यालय छोड़ देना पड़ा.”   *डॉक्टर हेडगेवार ने 1922-23 में की ‘ब्रिटिश राज्य विरहित’ स्वराज्य की मांग* प्रखर क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर, उनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर और छोटे भाई डॉक्टर नारायण दामोदर सावरकर, वामनराव जोशी, बैरिस्टर अभ्यंकर और सुभाष चन्द्र बोस डॉक्टर हेडगेवार को पसंद करते थे. सन 1922-23 में पुलगांव में आयोजित वर्धा तालुका परिषद् के सामने जब स्वराज्य का प्रस्ताव रखा गया तो उसमे अहमदाबाद-कांगेस द्वारा स्वीकृत ‘स्वराज्य’ शब्द का अर्थ कुछ लोग ‘ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वराज’ करते थे, लेकिन डॉक्टर हेडगेवार को यह मंजूर नहीं था. वह तो ब्रिटिश राज्य को हटाने के बाद के स्वराज्य को ही वास्तविक स्वराज्य मानते थे. उन्होंने परिषद् में जब स्वराज्य का प्रस्ताव रखा तो उसमें ‘ब्रिटिश राज्य विरहित’ स्वराज्य का संशोधन सुझाया था. डॉक्टर हेडगेवार के निधन पर लोकमान्य तिलक द्वारा स्थापित अंग्रेजी समाचार पत्र ‘मराठा’ ने 23 अगस्त, 1940 को अपने प्रथम पृष्ठ पर जो पहला बड़ा समाचार प्रकाशित किया उसका शीर्षक था ‘डॉ. हेडगेवार्स संघ स्टील गोइंग स्ट्रांग.’   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Oct 13, 2024

अगले 20 दिन तक बच्‍चों की आंखों पर रहेगा खतरा, हो सकता है अंधापन

नई दिल्ली, 13 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। त्‍यौहार का सीजन चल रहा है. नवरात्र के बाद दशहरा और फिर दिवाली की तैयारियों के दौरान बड़ों से ज्‍यादा बच्‍चे मस्‍ती के मूड में रहते हैं. स्‍कूलों में छुट्टियां पड़ने के साथ ही पटाखे, फुलझड़ी चलाने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है. हालांकि 20 दिनों का यह त्‍योहारी सीजन जितना मजेदार होता है, बच्‍चों की सेहत और खासतौर पर आंखों के लिए उतना ही नुकसानदेह होता है. बच्‍चों की आंखों में चोट लगने के सबसे ज्‍यादा मामले इन्‍हीं दिनों में अस्‍पतालों आते हैं. वहीं कई बार यह चोट इतनी गंभीर होती है कि बच्‍चे की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाती है और उस अंधेपन को ठीक भी नहीं किया जा सकता.   आरपी सेंटर, एम्‍स नई दिल्‍ली की प्रोफेसर नम्रता शर्मा का कहना है कि आने वाले 20 दिन फेस्‍टि‍व सीजन रहने वाला है. हर साल ही दशहरा से लेकर दिवाली तक अस्‍पतालों में बहुत सारे बच्‍चे आंखों की इंजरीज लेकर आते हैं. आंखों की ये चोट अक्‍सर कैमिकल या मैकेनिकल होती हैं. वहीं दशहरा और दिवाली पर कैमिकल इंजरीज का खतरा सबसे ज्‍यादा रहता है. डॉ. नम्रता कहती हैं कि आंख में अगर एक बार कैमिकल इंजरी हो जाए तो उसे ठीक करना काफी मुश्किल होता है. वह कई बार कभी न ठीक होने वाले अंधेपन का भी कारण बनती है. ऐसे मरीजों में ट्रांसप्‍लांटेशन तक करना पड़ता है. हालांकि उसका रिजल्‍ट भी बहुत अच्‍छा नहीं होता. लिहाजा इस तरह की ब्‍लाइंडनेस न हो, इसके लिए जरूरी है कि   इसे रोकने के लिए बचाव के तरीकों पर ध्‍यान दिया जाए. इंटरनेशनल एजेंसी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ ब्‍लाइंडनेश ने भी कहा है कि इस बार सभी पीडियाट्रिक आई केयर पर फोकस करेंगे. डॉ. कहती हैं कि जब भी फायर क्रैकर्स इंजरीज होती हैं तो वे मैकेनिकल डैमेज भी करती हैं और कैमिकल डैमेज भी करती हैं लेकिन अच्‍छी बात ये है कि आंखों में कैमिकल इंजरीज को होने से रोका जा सकता है, जब भी आप पटाखे चलाएं तो बचाव के कुछ तरीकों को जरूर अपनाएं. दशहरा और दिवाली पर फायर पटाखे, फुलझड़ी आदि चलाई जाती ही हैं, इस दौरान पेरेंट्स को बहुत केयरफुल होने की जरूरत है. वे बच्‍चों को अपनी निगरानी में रखकर ही फायर क्रैकर्स या पटाखे चलवाएं. इस सीजन में देखा जाता है कि बच्‍चों की आंखों में सबसे ज्‍यादा इंजरीज होती हैं.    जैसे दशहरा पर लोग तीर-कमान चलाते हैं उससे भी आंखों में चोट लगती है. लिहाजा इन चीजों का भी ध्‍यान रखें. एक बार आंख में अगर कैमिकल इंजरी हो जाए तो उसका इलाज काफी मुश्किल होता है. ये कैमिकल्‍स आंखों में हाथों से भी लग सकते हैं. फायर क्रैकर्स चलाने के बाद बच्‍चों के हाथ साबुन से जरूर धुलवाएं. कई बार आंखों में चुभन होने पर बच्‍चे पटाखों की बारूद या कैमिकल्‍स पटाखों से निकलने वाला धुआं और कैमिकल्‍स आंखों की सेंसिट‍िव लेयर्स को नुकसान पहुंचाते हैं. कई बार पटाखों से निकलने वाली चिंगारी आंखों में लग जाती है और आंख घायल हो जाती है, ऐसे में बच्‍चे अगर पटाखों को जलते हुए भी देख रहे हैं तो पर्याप्‍त दूरी बनाकर रखें. छोटे बच्‍चों के हाथों में पटाखे बिल्‍कुल भी न दें.   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Oct 13, 2024

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तीन अफ्रीकी देशों की यात्रा पर रवाना

नई दिल्ली, 13 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू रविवार को अल्जीरिया, मॉरिटानिया और मलावी की अपनी आधिकारिक यात्रा पर रवाना हुईं। यह किसी भारतीय राष्ट्राध्यक्ष की एक साथ तीन अफ्रीकी देशों की पहली यात्रा है। राष्ट्रपति मुर्मू अल्जीरिया के राष्ट्रपति अब्देलमजीद तेब्बौने के निमंत्रण पर 13 अक्टूबर को अल्जीरिया पहुंचेंगी। वह इस अफ्रीकी देश में 15 अक्टूबर तक रहेंगी। यह जानकारी विदेश मंत्रालय ने दी।   *दोनों देशों के राष्ट्रपतियों के बीच द्विपक्षीय वार्ता* इस यात्रा से भारत और अल्जीरिया के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को और मजबूती मिलेगी। दोनों देश तेल, गैस, रक्षा एवं अंतरिक्ष सहयोग जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में और नजदीक आएंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की इस यात्रा में दोनों राष्ट्रपतियों के बीच द्विपक्षीय वार्ता होगी। काउंसिल ऑफ नेशन (अल्जीरियाई संसद के ऊपरी सदन) और नेशनल पीपुल्स असेंबली (निचले सदन) के अध्यक्षों सहित कई अल्जीरियाई गणमान्य व्यक्ति भी इस बैठक में शामिल होंगे।   *भारत-अल्जीरिया के बीच आर्थिक मंच को करेंगी संबोधित* इसके अलावा राष्ट्रपति मुर्मू भारत-अल्जीरिया के बीच आर्थिक मंच और सिदी अब्देल्ला विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पोल विश्वविद्यालय को संबोधित करेंगी। वह जार्डिन डी'एस्साई के हम्मा गार्डन में इंडिया कॉर्नर का भी उद्घाटन करेंगी। इसके बाद इस उत्तरी अफ्रीकी देश से भारतीय राष्ट्रपति 16 अक्टूबर को पड़ोसी देश मॉरिटानिया जाएंगी। मॉरिटानिया इस समय अफ्रीकी संघ का अध्यक्ष भी है।   *मॉरिटानिया में भारतीय समुदाय के लोगों से भी करेंगी बात* मॉरिटानिया पहुंच कर राष्ट्रपति मुर्मू अपने समकक्ष मोहम्मद औलद शेख अल गजौनी से बातचीत करेंगी। मॉरिटानिया प्रधानमंत्री मोख्तार औलद दजय और विदेश मंत्री मोहम्मद सलीम औलद मरजूक के उनसे मिलने की उम्मीद है। राष्ट्रपति भारतीय समुदाय के लोगों से भी बातचीत करेंगी। विदेश मंत्रालय के अनुसार, राष्ट्रपति मुर्मु की यह यात्रा भारत-मॉरिटानिया द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूती देगी।   *मलावी के शीर्ष नेताओं के साथ बैठक* इसके बाद मलावी के राष्ट्रपति डॉ. लाजरस मैकार्थी चकवेरा के निमंत्रण पर राष्ट्रपति मुर्मू 17-19 अक्टूबर तक मॉरिटानिया से पूर्वी अफ्रीकी देश पहुंचेंगी। राष्ट्रपति मुर्मू मलावी के शीर्ष नेताओं के साथ बैठक करेंगी। इसके बाद वह देश के व्यापारिक और उद्योग जगत के नेताओं और भारतीय प्रवासियों के साथ बातचीत करेंगी। अपनी यात्रा के अगले चरण में वह देश के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थलों का भी दौरा करेंगी।'   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Oct 13, 2024

कालका विधानसभा में भाजपा उम्मीदवार को जिताने पर कार्यकर्ताओं ने निभाई अहम भूमिका

पिंजौर, 13 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। कालका विधानसभा से भाजपा उम्मीदवार शक्तिरानी शर्मा को जीतने में पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपनी अहम भूमिका निभाई हैं, इसके लिए कार्यकर्ता व विधानसभा की जनता बधाई की पात्र हैं जनता का आभार जताते हुए भाजपा नेता बलवान सिंह ठाकुर ने कहा कि कालका हल्का की जनता के लिए इससे बड़ा कोई भी मौका और शोभाग्य नहीं हो सकता कि जब उन्हें पहली बार बड़ी पार्टी में एक ही परिवार से कालका हल्का में विकास के लिए विधायक और सांसद एक साथ मिले हो। उससे भी बड़ी बात यह है कि प्रदेश से लेकर केंद्र तक भाजपा का ही कमल खिला हुआ है इसलिए हरियाणा के अंत मे हिमाचल प्रदेश से सटा कालका हल्का के विकास में दिल्ली तक का रास्ता साफ है केंद्र से विकास की आने वाली योजनाओं व बजट में कोई भी अड़चन नहीं रही।   इसलिए अब कालका हल्का के चहुमुखी विकास की झड़ी शुरू होने वाली हैं। लंबे समय से कालका हल्का राजनीति का शिकार होने के कारण विकास के मामले में हल्के की अनदेखी होती रही हैं। एचएमटी ट्रैक्टर बन्द होने से रुके रोजगार के दुबारा शुरू होने की भी उम्मीद जाग गई हैं। नगर परिषद कालका में जो जनहित में काम होने चाहिए थे वो जनता की उम्मीद के हिसाब से नहीं हो पाए अब हमें नई विधायक मिलने पर नगर परिषद के अंदर भी हालात सुधरेंगे और जनता को मूलभूत सुविधाएं भी मिलेंगी, कुछ सरकारी विभागों में बेलगाम व अफसरशाही हावी के चलते जनता के काम प्रभावित होने के कारण सरकार की छवि खराब हो रही थी अब उनके ऊपर भी शिकंजा कसा जाएगा औऱ जनता के रुके हुए कामों को रफ्तार मिलेगी। जल्द ही क्षेत्र की कुछ मुख्य समस्याओं को लेकर नई विधायक के पास लेकर जाएंगे और उनका तुरन्त प्रभाव से समाधान करवाया जाएगा।   हरियाणा-स्टेट ब्यूरो, (सचिन बराड़)।

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Oct 13, 2024

विश्व स्लॉथ भालू दिवस: जानें भारत में स्लॉथ भालुओं के संरक्षण की 30 वर्षों लंबी यात्रा के बारे में

नई दिल्ली, 11 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। वाइल्डलाइफ एसओएस ने विश्व स्लॉथ भालू दिवस की स्थापना में मदद करके स्लॉथ भालुओं के संरक्षण को विश्व मानचित्र पर रखा। जहां वन्यजीव संरक्षक इस वर्ष विश्व स्लॉथ भालू दिवस की दूसरी वर्षगांठ मना रहे हैं, वहीँ संस्था वन्यजीव संरक्षण में अपने 30 वर्ष पूरे करने की यात्रा में प्रवेश कर चुकी है और इस उपलब्धि पर प्रकाश डालने के लिए उन्होंने इस अवसर को चुना है। वाइल्डलाइफ एसओएस अपने अस्तित्व के 30वें वर्ष में प्रवेश करते हुए भारत के बहुमूल्य वन्य जीवन को बचाने का जश्न मनाने के लिए सम्मानित महसूस कर रहा है। 1995 में दिल्ली के गैराज से संकटग्रस्त जंगली जानवरों को बचाने, उनका इलाज करने और पुनर्वास करने की मामूली शुरुआत से लेकर आज संस्था ने अब तक हजारों जानवरों को बचाया है।   इसके सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक 'डांसिंग' भालुओं की क्रूर प्रथा का समाधान करना और लगभग 700 स्लॉथ भालुओं को अभयारण्य में लाना है। संस्था ने कलंदरों द्वारा बंधक बनाए गए इन भालुओं के कल्याण में अग्रणी के रूप में अपना काम शुरू किया, जो भारत की मुख्य भूमि में पाए जाते हैं। स्लॉथ भालू संरक्षण के लिए अपने काम के 30 वर्षों में, संस्था देश भर में चार स्लॉथ भालू बचाव सुविधाओं का प्रबंधन और संचालन करती है। वाइल्डलाइफ एसओएस आगरा में मौजूद उनके भालू संरक्षण केंद्र की देखरेख करती है – जो की दुनिया का सबसे बड़ा स्लॉथ भालू संरक्षण केंद्र है और आगरा के सूर सरोवर पक्षी विहार के अंदर स्थित है, इसके बाद बैंगलोर में बन्नेरघट्टा भालू बचाव केंद्र भी है जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्लॉथ भालू अभयारण्य है।   संस्था भोपाल में, वन विहार राष्ट्रीय उद्यान के अंदर और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में दो और स्लॉथ भालू बचाव केंद्रों का भी प्रबंधन करती है। वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव, गीता शेषमणि ने कहा*, "जैसा कि हम वाइल्डलाइफ एसओएस के 30 वर्षों को देखते हैं, मुझे यह देखकर बहुत खुशी होती है कि हम कितनी दूर आ गए हैं। इन भालुओं को बचाने के साथ जो शुरू हुआ, वह खूबसूरती से विस्तारित हुआ है एक मिशन जिसने जानवरों की अनगिनत अन्य प्रजातियों को बचाया और पुनर्वास किया है। कलंदर समुदाय को आजीविका के अवसर प्रदान करना और उनके जीवन में एक नई दिशा प्रदान करना इस बात को रेखांकित करता है कि हमारे संरक्षण प्रयासों का प्रभाव पशु कल्याण से कहीं आगे तक फैला हुआ है।"   संस्था की 30वीं वर्षगांठ समारोह में प्रवेश करने पर, वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने भविष्य के लिए सामूहिक प्रयासों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, "जैसा कि हम आज इस अवसर को मना रहे हैं, मैं यह कहना चाहूँगा कि "भविष्य की रक्षा हमें स्वयं करनी है"। यह मार्गदर्शक सिद्धांत हमारी स्थापना के समय से ही हमारे मिशन के केंद्र में रहा है, और यह आज भी हमारे काम को प्रेरित करता है। “पिछले 30 वर्षों में, हमने वन्यजीवों को बचाना, उनके पुनर्वास और संरक्षण में महत्वपूर्ण प्रगति की है। अब प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी हम सभी की है। चूँकि हम महत्वपूर्ण वन क्षेत्र खो रहे हैं, हमें पृथ्वी पर मौजूद हर जीवित प्राणी की सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक साथ आना चाहिए। हमें आशा है कि भावी पीढ़ियों को वन्य जीवन की सुंदरता और विविधता से भरा एक संपन्न ग्रह विरासत में मिलेगा,'' कार्तिक सत्यनारायण ने कहा।  

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Oct 11, 2024

सादगी और दरियादिली थी रतन टाटा की पहचान

नई दिल्ली, 10 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। टाटा समूह के मानद चेयरमैन और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा ने बुधवार देर दुनिया को अलविदा कह दिया। 86 वर्ष की उम्र में उनका निधन मुंबई के एक अस्पताल में हुआ। पद्म विभूषण से सम्मानित रतन टाटा का निधन दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में रात साढ़े 11 बजे हुआ। रतन टाटा दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे। इसके बावजूद वे कभी अरबपतियों की किसी सूची में नजर नहीं आए। उनके पास 30 से ज्यादा कंपनियां थीं।    यह कंपनियां छह महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में फैली थीं। इसके बावजूद वह एक सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। रतन नवल टाटा जमशेदजी टाटा के परपोते थे, जिन्होंने टाटा समूह की स्थापना की थी। उनका जन्म 28 दिसंबर, 1937 को मुंबई में नवल टाटा और सूनी टाटा के घर हुआ था। 1948 में उनके माता-पिता के अलग हो जाने के बाद उनका पालन-पोषण उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने किया। चार मौकों पर शादी के करीब आने के बावजूद रतन टाटा ने कभी शादी नहीं की। उन्होंने एक बार स्वीकार किया था कि लॉस एंजिल्स में काम करने के दौरान उन्हें प्यार हो गया था, लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण लड़की के माता-पिता ने उसे भारत आने से देने से मना कर दिया।   *ऐसा था रतन टाटा का सफर* सरल व्यक्तितत्व के धनी टाटा एक कॉरपोरेट दिग्गज थे, जिन्होंने अपनी शालीनता और ईमानदारी के बूते एक अलग तरह की छवि बनाई थी। रतन टाटा 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से वास्तुकला में बीएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद पारिवारिक कंपनी में शामिल हो गए। उन्होंने शुरुआत में एक कंपनी में काम किया और टाटा समूह के कई व्यवसायों में अनुभव प्राप्त किया। इसके बाद 1971 में उन्हें समूह की एक फर्म ‘नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी’ का प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया। एक दशक बाद वह टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बने। 1868 में कपड़ा और व्यापारिक छोटी फर्म के रूप में शुरुआत करने वाले टाटा समूह ने शीघ्र ही खुद को एक वैश्विक महाशक्ति में बदल दिया। देखते ही देखते समूह नमक से लेकर इस्पात, कार से लेकर सॉफ्टवेयर, बिजली संयंत्र और एयरलाइन तक फैला गया।    1991 में अपने चाचा जेआरडी टाटा से टाटा समूह के चेयरमैन का पदभार संभाला। जेआरडी टाटा पांच दशक से भी अधिक समय से इस पद पर थे। रतन टाटा दो दशक से अधिक समय तक समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी ‘टाटा संस’ के चेयरमैन रहे। इस दौरान समूह ने तेजी से विस्तार करते हुए वर्ष 2000 में लंदन स्थित टेटली टी को 43.13 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा। टाटा ने 2004 में दक्षिण कोरिया की देवू मोटर्स के ट्रक-निर्माण परिचालन को 10.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा। टाटा ने एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस समूह को 11 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा। टाटा ने फोर्ड मोटर कंपनी से मशहूर ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा। 2009 में रतन ने दुनिया की सबसे सस्ती कार को मध्यम वर्ग तक पहुंचाने का अपना वादा पूरा किया।   *दरियादिली के मामले में भी रतन टाटा का कोई सानी नहीं* भारत के सबसे सफल व्यवसायियों में से एक होने के साथ-साथ वह अपनी परोपकारी गतिविधियों के लिए भी जाने जाते थे। परोपकार में उनकी व्यक्तिगत भागीदारी बहुत पहले ही शुरू हो गई थी। वर्ष 1970 के दशक में उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की, जिसने भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में से एक की नींव रखी। दरियादिली के मामले में भी रतन टाटा का कोई सानी नहीं रहा। कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने पीएम केयर्स फंड में 500 करोड़ की बड़ी राशि दान की थी।   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Oct 10, 2024

सुबह की चाय, खाने की दाल से हवाई सफर तक, हर जगह है टाटा

नई दिल्ली, 10 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। टाटा टी, टाटा नमक, टाटा संपन्न दाल, टाटा संपन्न मसाले, टाटा मोटर्स की कारें, टाटा समूह की एयरलाइन यानी एयर इंडिया, विस्तारा ये कुछ उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि टाटा समूह आपकी रोज की दिनचर्या में कैसे शामिल है। देश के सबसे प्रतिष्ठित होटल चेन ताज होटल्स भी टाटा समूह ही चलाता है   तो देश की सबसे बड़ी एयर लाइन्स एयर इंडिया की शुरुआत भी टाटा समूह ने की थी। वर्षों बाद इस एयरलाइन कंपनी का संचालन फिर से टाटा समूह के पास आ चुका है। आईटी सेक्टर जिसके बिना के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती, उसकी सबसे प्रतिष्ठित कंपनी टीसीएस भी टाटा समूह का हिस्सा है। टाटा समूह हर क्षेत्र में काम कर रहा है। आज इसकी गिनती देश और दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित कारोबारी समूहों में होती है।   *क्या है टाटा समूह?* टाटा समूह 30 कंपनियों का एक कारोबारी समूह है। समूह की स्थापना 1868 में उद्यमी जमशेदजी नुसरवानजी टाटा ने एक निजी व्यापारिक फर्म के रूप में की थी। यह समूह ऑटोमोबाइल, रसायन, उपभोक्ता उत्पाद, ऊर्जा, इंजीनियरिंग, वित्तीय सेवाएं, सूचना प्रणाली, सामग्री और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में काम करता है।   टाटा का कारोबार छह महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में है और 20वीं शताब्दी की शुरुआत से भारतीय उद्योग में इस समूह ने खुद को अग्रणी बनाए रखा है। कपड़ा निर्माण, लोहा और इस्पात और पनबिजली में आने से पहले समूह ने शुरुआती तौर पर कच्चे माल के व्यापार के जरिए से 19वीं शताब्दी के अंत में कमाई की थी। बाद में इसने रसायन, विमानन, ऑटोमोबाइल और अंततः सूचना प्रौद्योगिकी और सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में विस्तार किया।    *टाटा समूह कितना बड़ा है?* 2023-24 में टाटा कंपनियों का कुल राजस्व 165 बिलियन डॉलर से अधिक था। ये कंपनियां सामूहिक रूप से 10 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार देती हैं। 31 मार्च 2024 तक 365 बिलियन डॉलर से अधिक के संयुक्त बाजार पूंजीकरण के साथ 26 सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध टाटा उद्यम हैं। टाटा संस टाटा कंपनियों की प्रमुख निवेश होल्डिंग कंपनी और प्रमोटर है। टाटा संस की इक्विटी शेयर पूंजी का 66 प्रतिशत हिस्सा परोपकारी ट्रस्टों के पास है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका सृजन और कला एवं संस्कृति जैसे क्षेत्रों में मदद करते हैं।   किन क्षेत्रों में काम करती हैं टाटा की कंपनियां?   *आईटी* *टीसीएस:* सूचना तकनीकी के क्षेत्र में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) काम करती है। यह 56 वर्षों से अधिक समय से दुनिया के कई सबसे बड़े व्यवसायों के साथ उनके परिवर्तन की यात्रा में भागीदार है। टीसीएस एक आईटी सेवा, परामर्शदाता कंपनी है।   *टाटा एलेक्सी:* इसकी शुरुआत 1989 में में हुई थी। टाटा एलेक्सी ऑटोमोटिव, मीडिया, संचार और स्वास्थ्य सेवा के लिए एक वैश्विक डिजाइन और प्रौद्योगिकी सेवा प्रदाता है।   *टाटा डिजिटल:* टाटा समूह ने डिजिटल व्यवसायों का निर्माण करने के लिए टाटा डिजिटल की स्थापना की है जिसका उद्देश्य भारतीय उपभोक्ताओं के साथ-साथ व्यवसायों की जरूरतों को पूरा करना है।    *टाटा टेक्नोलॉजीज:* यह एक वैश्विक उत्पाद इंजीनियरिंग और डिजिटल सेवा कंपनी है। टाटा टेक्नोलॉजीज का मिशन ग्राहकों दुनिया को चलाने, उड़ान भरने, निर्माण करने और खेती करने में मदद करने का है।   *स्टील* *टाटा स्टील:* यह दुनिया के सबसे विविध एकीकृत स्टील उत्पादकों में से एक है। टाटा स्टील की वार्षिक कच्चे स्टील उत्पादन क्षमता 35 मिलियन टन प्रतिवर्ष है। कंपनी की विनिर्माण संपत्तियां भारत, नीदरलैंड, ब्रिटेन और थाईलैंड में फैली हुई हैं।   *ऑटो:* *टाटा मोटर्स:* यह एक अग्रणी वैश्विक ऑटोमोबाइल निर्माता है। टाटा मोटर्स लिमिटेड $44 बिलियन मूल्य की कंपनी है। 2008 से जगुआर लैंड रोवर टाटा मोटर्स का हिस्सा है जो ब्रिटेन की सबसे बड़ी ऑटोमोटिव निर्माता है। यह दुनिया की कुछ सबसे प्रसिद्ध प्रीमियम कारों को डिजाइन, निर्माण और बेचती है।   *ऑटोकॉम्प:* ऑटो क्षेत्र में टाटा समूह की एक अन्य कंपनी टाटा ऑटोकॉम्प है। यह कंपनी व्यवसायिक वाहनों का उत्पादन करती है। इसके साथ ही कंपनी भारतीय और वैश्विक ऑटोमोटिव ओईएम के साथ-साथ टियर 1 आपूर्तिकर्ताओं को उत्पाद और सेवाएं प्रदान करती है।   *उपभोक्ता और खुदरा:*  *टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स:* इस क्षेत्र टीसीएस: सूचना तकनीकी के क्षेत्र में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) काम करती है। यह 56 वर्षों से अधिक समय से दुनिया के कई सबसे बड़े व्यवसायों के साथ उनके परिवर्तन की यात्रा में भागीदार है। टीसीएस एक आईटी सेवा, परामर्शदाता कंपनी है।   *टाटा एलेक्सी:* इसकी शुरुआत 1989 में में हुई थी। टाटा एलेक्सी ऑटोमोटिव, मीडिया, संचार और स्वास्थ्य सेवा के लिए एक वैश्विक डिजाइन और प्रौद्योगिकी सेवा प्रदाता है।   *टाटा डिजिटल:* टाटा समूह ने डिजिटल व्यवसायों का निर्माण करने के लिए टाटा डिजिटल की स्थापना की है जिसका उद्देश्य भारतीय उपभोक्ताओं के साथ-साथ व्यवसायों की जरूरतों को पूरा करना है।    *टाटा टेक्नोलॉजीज:* यह एक वैश्विक उत्पाद इंजीनियरिंग और डिजिटल सेवा कंपनी है। टाटा टेक्नोलॉजीज का मिशन ग्राहकों दुनिया को चलाने, उड़ान भरने, निर्माण करने और खेती करने में मदद करने का है।   *स्टील* *टाटा स्टील:* यह दुनिया के सबसे विविध एकीकृत स्टील उत्पादकों में से एक है। टाटा स्टील की वार्षिक कच्चे स्टील उत्पादन क्षमता 35 मिलियन टन प्रतिवर्ष है। कंपनी की विनिर्माण संपत्तियां भारत, नीदरलैंड, ब्रिटेन और थाईलैंड में फैली हुई हैं।   *ऑटो:* टाटा मोटर्स: यह एक अग्रणी वैश्विक ऑटोमोबाइल निर्माता है। टाटा मोटर्स लिमिटेड $44 बिलियन मूल्य की कंपनी है। 2008 से जगुआर लैंड रोवर टाटा मोटर्स का हिस्सा है जो ब्रिटेन की सबसे बड़ी ऑटोमोटिव निर्माता है। यह दुनिया की कुछ सबसे प्रसिद्ध प्रीमियम कारों को डिजाइन, निर्माण और बेचती है।   *ऑटोकॉम्प:* ऑटो क्षेत्र में टाटा समूह की एक अन्य कंपनी टाटा ऑटोकॉम्प है। यह कंपनी व्यवसायिक वाहनों का उत्पादन करती है। इसके साथ ही कंपनी भारतीय और वैश्विक ऑटोमोटिव ओईएम के साथ-साथ टियर 1 आपूर्तिकर्ताओं को उत्पाद और सेवाएं प्रदान करती है।   *उपभोक्ता और खुदरा:*  टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स: इस क्षेत्र में टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड का नाम आता है। टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स एक केंद्रित उपभोक्ता उत्पाद कंपनी है जो टाटा समूह के प्रमुख खाद्य और पेय से जुड़े कारोबार में छत्र के रूप में काम करती है। टाटा नमक, टाटा संपन्न, टाटा टी, टेटली, हिमालयन और वाइटेक्स जैसे ब्रांड इसी का हिस्सा हैं। देश मेंं स्टारबग्स का संचालन भी टाटा समूह की यह कंपनी करती है।     *बुनियादी ढांचा:*  टाटा पावर: इस क्षेत्र में टाटा पावर एक अग्रणी एकीकृत बिजली कंपनी है। टाटा पावर भारत के सबसे बड़े बहुराष्ट्रीय व्यापार समूह टाटा समूह का एक हिस्सा है।   *पर्यटन और यात्रा:* इस क्षेत्र में इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड और इसकी सहायक कंपनियां कारोबार करती हैं। इनमें सबसे चर्चित नाम ताज है। ताज को दुनिया के सबसे मजबूत होटल ब्रांड और भारत के सबसे मजबूत ब्रांड के रूप में स्थान दिया। में टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड का नाम आता है।   टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स एक केंद्रित उपभोक्ता उत्पाद कंपनी है जो टाटा समूह के प्रमुख खाद्य और पेय से जुड़े कारोबार में छत्र के रूप में काम करती है। टाटा नमक, टाटा संपन्न, टाटा टी, टेटली, हिमालयन और वाइटेक्स जैसे ब्रांड इसी का हिस्सा हैं। देश मेंं स्टारबग्स का संचालन भी टाटा समूह की यह कंपनी करती है।     विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Oct 10, 2024

स्थिरता सुधारों में कठोरता लाती है और विकास प्रक्रिया को बढ़ावा देती है: अमित शाह

नई दिल्ली, 10 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) के 119वें वार्षिक सत्र को संबोधित करते हुए, गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि यह वर्ष भारतीय उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है और वह पीएचडीसीसीआई के 119वें वार्षिक सत्र को संबोधित करते हुए बहुत उत्साहित हैं। वे यहां विज्ञान भवन में पीएचडीसीसीआई के वार्षिक सत्र का विषय, “विकसित भारत@2047 - प्रगति के शिखर की ओर अग्रसर विषय पर आयोजित वार्षिक सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में भारतीय उद्योगों के आकार और पैमाने का विस्तार करने के लिए नीतिगत पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित किया गया है। यह वास्तव में हमारे देश के लिए गौरव का क्षण है, भारत को अब विश्व पारिस्थितिकी तंत्र में एक उज्ज्वल स्थान के रूप में पहचाना जा रहा है, और 2027 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और 2047 तक विकसित भारत के रूप में उभरेगा, उन्होंने कहा। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि सरकार के सक्रिय नीतिगत प्रयासों से भारत आने वाले वर्षों में हरित प्रौद्योगिकी से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों तक सभी क्षेत्रों में अग्रणी बन जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार की नीतिगत पहलों से समग्र विकास को बढ़ावा मिला है।   जिससे 60 करोड़ से अधिक लोगों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान की गई हैं। उन्होंने पीएचडीसीसीआई को अपने रचनात्मक सुझाव जारी रखने के लिए प्रेरित किया और आश्वासन दिया कि सरकार उन पर त्वरित कार्रवाई करेगी। संजीव अग्रवाल, अध्यक्ष, पीएचडीसीसीआई ने गृह मंत्री एवं सहकारिता मंत्री को बधाई दी और कहा कि सरकार ने देश के भीतर सुरक्षा की भावना और उद्योगपतियों में आगे बढ़ने का विश्वास पैदा किया है। उन्होंने कहा कि सरकार के निरंतर सहयोग और व्यापार एवं उद्योग के जीवंत प्रयासों से भारत आने वाले समय में 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, जिसे व्यापार करने में आसानी से बढ़ावा मिलेगा। संजीव अग्रवाल ने बहुत आशावाद के साथ कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भारत आने वाले समय में आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरेगा। संउ अग्रवाल, अध्यक्ष, पीएचडीसीसीआई; हेमंत जैन, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, पीएचडीसीसीआई; राजीव जुनेजा, उपाध्यक्ष, पीएचडीसीसीआई; और डॉ रंजीत मेहता, सीईओ और महासचिव, पीएचडीसीसीआई ने अमित शाह के साथ मंच साझा किया।   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Oct 10, 2024

रतन टाटा के निधन पर उद्योग जगत ने जताया गहरा शोक

नई दिल्ली, 10 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। भारतीय उद्योग के टायकून रतन टाटा के निधन पर उद्योग जगत में गहरा शोक है। सभी प्रमुख उद्योग पतियों के साथ साथ उद्योग संगठनों ने भी उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। प्रमुख उद्योग संगठनों सीआईआई, फिक्की और एसोचैम ने रतन टाटा के निधन पर दुःख व्यक्त करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। रतन टाटा के स्थायी प्रभाव को याद करते हुए, फिक्की के अध्यक्ष डॉ. अनीश शाह ने कहा, "फिक्की रतन टाटा को न केवल एक सफल व्यवसायी के रूप में बल्कि एक ऐसे रोल मॉडल के रूप में याद करता है, जिन्होंने ईमानदारी, विनम्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के मूल्यों को अपनाया। नैतिक पूंजीवाद के उनके दृष्टिकोण और व्यवसाय को सामाजिक भलाई के लिए एक शक्ति के रूप में उपयोग करने के उनके प्रयासों ने उद्यमियों और कॉर्पोरेट नेताओं की पीढ़ियों को प्रेरित किया है।" रतन टाटा के निधन से भारतीय व्यापार जगत में एक ऐसा शून्य पैदा हो गया है जिसे भरना मुश्किल होगा। फिक्की उनके शोक संतप्त परिवार और मित्रों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता है।   वहीं सीआईआई के अध्यक्ष संजीव पुरी ने कहा, "भारतीय उद्योग जगत के दिग्गज रतन टाटा के निधन से मुझे गहरा दुख हुआ है। उत्कृष्टता की उनकी अटूट खोज, सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति गहरी प्रतिबद्धता और भारतीय कॉर्पोरेट परिदृश्य में क्रांति लाने वाली अग्रणी भावना ने भारतीय उद्योग को वैश्विक मंच पर पहुंचा दिया। मैंने व्यक्तिगत रूप से उनसे बहुत कुछ सीखा है। उनकी विनम्रता, ईमानदारी और दयालु मूल्य भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणास्रोत होंगे। वे भारतीय उद्योग जगत में हम सभी के लिए एक महान गुरु और मार्गदर्शक के रूप में खड़े रहे और हमें सर्वश्रेष्ठ तक पहुंचने के लिए प्रेरित किया। उनकी अमूल्य विरासत हमें आने वाले समय में प्रेरित करेगी। उनके प्रियजनों और टाटा परिवार के सदस्यों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएँ"। सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा रतन टाटा वास्तव में एक नेता, राष्ट्र निर्माता, परोपकारी, एक वैश्विक उद्यमी और बहुत कुछ का आदर्श उदाहरण थे। अपने कद के बावजूद उनका दयालु, नरम और विनम्र स्वभाव प्रेरणादायक और दुर्लभ था। सीआईआई में हमें दी गई उनकी सलाह हमेशा व्यावहारिक होती थी।   जो भारतीय व्यवसायों की वैश्विक स्तर पर क्षमता और सबसे बढ़कर भारतीय कंपनियों को समाज में एक मजबूत राष्ट्र बनाने के लिए एक सार्थक भूमिका कैसे निभानी चाहिए, इस पर उनके विश्वास को प्रदर्शित करती थी। सीआईआई की राष्ट्रीय परिषद के लगभग दो दशकों तक सदस्य के रूप में, वे सीआईआई के लिए एक मार्गदर्शक रहे। समाज की भलाई के लिए अपने सहज जुनून के साथ, उन्होंने सीआईआई द्वारा एड्स के लिए इंडिया बिजनेस ट्रस्ट की स्थापना का नेतृत्व किया, जिसे वैश्विक स्तर पर उच्च प्रशंसा मिली। यह सीआईआई के लिए एक बड़ा सम्मान था कि उन्होंने पहला सीआईआई अध्यक्ष पद स्वीकार किया, जो सभी क्षेत्रों में भारतीय उद्योग के उनके व्यापक नेतृत्व को देखते हुए एक स्वाभाविक प्राप्तकर्ता था। भारतीय उद्योग को वैश्वीकरण, प्रतिस्पर्धी और जिम्मेदार बनाने के लिए उनके नेतृत्व को हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने सीआईआई के प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व किया और भारतीय उद्योग के लिए विश्वसनीयता स्थापित करने और आत्मविश्वास प्रदर्शित करने के लिए चर्चाओं का नेतृत्व किया। सीआईआई उनके योगदान के लिए हमेशा ऋणी रहेगा।   उन्होंने वास्तव में भारतीय उद्योग के लिए आगे का रास्ता तय किया, इसे वैश्विक बनाया और दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी। हम सीआईआई में टाटा परिवार के साथ मिलकर एक सच्चे नेता और ऐसी महान आत्मा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ के पूर्व अध्यक्ष और टीवीएस सप्लाई चेन सॉल्यूशंस लिमिटेड के चेयरमैन आर दिनेश ने कहा रतन टाटा का निधन देश, भारतीय उद्योग और पूरे समाज के लिए बहुत बड़ी क्षति है। हमारे देश के लिए उनका अमूल्य योगदान हमेशा हमारी यादों में रहेगा और उनकी विरासत भारतीय उद्योग के भविष्य में हमेशा के लिए गूंजती रहेगी। उन्होंने वास्तव में भारत को बड़े सपने देखने और नई सीमाओं को पार करके इन सपनों को साकार करने का रास्ता दिखाया है। भारतीय उद्योग उन्हें बहुत याद करेगा। भारतीय उद्योग परिसंघ के पूर्व अध्यक्ष और बजाज फिनसर्व लिमिटेड के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक संजीव बजाज ने कहा, “भारत के अग्रणी प्रकाशपुंज, रतन टाटा अपनी विनम्रता के साथ-साथ अपनी साहसिक व्यावसायिक रणनीतियों के लिए भी जाने जाते थे। उन्होंने मुट्ठी भर उद्योगपतियों का प्रतिनिधित्व किया।    जिन्होंने भारत को बहुत कम उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद की। अपने बुढ़ापे में भी, उन्होंने युवा उद्यमियों को प्रेरित करना और उनका समर्थन करना जारी रखा! उनकी आत्मा उन कई लोगों में जीवित है जिन्हें उन्होंने छुआ। ओम शांति। भारतीय उद्योग परिसंघ के पूर्व अध्यक्ष और फोर्ब्स मार्शल के सह-अध्यक्ष डॉ. नौशाद फोर्ब्स ने कहा, "वैश्विक उद्योग जगत के दिग्गज रतन टाटा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता हूं। अपने गहन विचार, साहसी निवेश और अभिनव विचारों के साथ, उन्होंने भारतीय उद्योग के लिए नए मानक स्थापित किए। उन्होंने नैतिकता और व्यवसाय के सच्चे उद्देश्य के इर्द-गिर्द देश के लिए एक वैश्विक ब्रांड छवि स्थापित की। अपार जुनून और प्रतिबद्धता वाले व्यक्ति, उनके परोपकार ने समाज को वापस देने का उदाहरण स्थापित किया। मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से, वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिनसे मैं हमेशा सलाह लेता था, जिसे वह खुलकर साझा करते थे, और जो निरंतर प्रेरणा देते थे। राष्ट्र के लिए एक बड़ी क्षति"। एसोचैम ने रतन नवल टाटा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें एक प्रतिष्ठित नेता बताया, जिनका प्रभाव कॉर्पोरेट इंडिया से परे था, जिससे वे अपार सद्भावना वाले वैश्विक नेता बन गए। टाटा ने न केवल एक अच्छी तरह से विविधतापूर्ण टाटा समूह को दुनिया के कई देशों में पहुँचाया।   बल्कि सूचना प्रौद्योगिकी, ऑटोमोबाइल, स्टील और आतिथ्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक परिदृश्य पर भारत की ब्रांड इक्विटी में भी बहुत योगदान दिया। उनका जीवन भारत के उद्यमियों के लिए वैश्विक स्तर पर सोचने और आगे बढ़ने, एक बेदाग प्रतिष्ठा और कॉर्पोरेट प्रशासन के बहुत उच्च मानक को बनाए रखने के लिए एक प्रेरणा होगा। सूद ने कहा टाटा के व्यक्तित्व की एक परिभाषित विशेषता विभिन्न व्यवसायों और कंपनियों में नेतृत्व का निर्माण करने, शेयरधारकों के मूल्य और सबसे बढ़कर, बड़े पैमाने पर समाज सहित हितधारकों के हित में योगदान देने की उनकी प्रतिबद्धता थी। ''उन्होंने कई स्टार्टअप को प्रेरित किया और उन्हें आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो बदले में मूल्य श्रृंखला के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में व्यवसाय प्रतिमान बदल रहे हैं'' दुनिया टाटा को स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उनके परोपकारी योगदान के लिए भी याद रखेगी, जिन्होंने दूसरों के लिए मानक स्थापित किए'' टाटा समूह को विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा मौलिक अनुसंधान में विश्व स्तरीय संस्थानों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। टाटा परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए, एसोचैम ने शीर्ष चैंबर के साथ टाटा के जुड़ाव को याद किया, जिनके 104 वर्षों के वंश ने राष्ट्र निर्माण के महत्वपूर्ण समय को टाटा समूह के साथ साझा किया है।   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Oct 10, 2024

भारत में अगली औद्योगिक क्रांति जैव प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित होगी’ – डॉ. जितेन्द्र सिंह

नई दिल्ली, 09 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय में राज्य मंत्री, परमाणु ऊर्जा विभाग में राज्य मंत्री तथा अंतरिक्ष विभाग में राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने किफायती, उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा तथा चिकित्सा पर्यटन के लिए वैश्विक केन्द्र के रूप में भारत की बढ़ती उपस्थिति पर जोर दिया, जो एक महत्वपूर्ण राजस्व जनरेटर बन गया है। वे नई दिल्ली में सीआईआई के छठे फार्मा एवं जीवन विज्ञान शिखर सम्मेलन 2024 को संबोधित कर रहे थे। मंत्री ने जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को समर्थन देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता व्यक्त की, जिसमें उद्यम निधियों तथा नीतियों के शुभारंभ का उल्लेख किया गया, जिसने जैव प्रौद्योगिकी स्टार्टअप में महत्वपूर्ण वृद्धि को बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी स्टार्टअप की संख्या 2014 में मात्र 50 से बढ़कर अब 5,000 से अधिक हो गई है, जो जैव अर्थव्यवस्था पर भारत के बढ़ते फोकस को दर्शाता है। उन्होंने सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच मजबूत सहयोग का आग्रह किया।    डॉ. सिंह ने एक मजबूत अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला, जिसमें जैव प्रौद्योगिकी अगली औद्योगिक क्रांति का केंद्र बिंदु होगी। डॉ. सिंह ने भारत की जैव अर्थव्यवस्था के विकास पर जोर दिया, जिसमें 2014 से दस गुना वृद्धि देखी गई है, और एक समावेशी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता को दोहराया जो बौद्धिक संपदा, डेटा संरक्षण और नैदानिक ​​परीक्षणों को संतुलित करता है। उनकी टिप्पणियों में स्वास्थ्य सेवा और जैव प्रौद्योगिकी में एक वैश्विक नेता के रूप में भारत की भूमिका के लिए आशावाद परिलक्षित हुआ, साथ ही आगे की चुनौतियों और अवसरों को भी संबोधित किया। भारत सरकार के रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग के सचिव डॉ. अरुणिश चावला ने फार्मास्यूटिकल्स और जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के महत्वपूर्ण मील के पत्थर को रेखांकित किया “पिछले महीने, फार्मास्यूटिकल्स और जैव प्रौद्योगिकी भारत के लिए चौथा सबसे बड़ा निर्यात विनिर्माण उद्योग बन गया। भारत दुनिया की एक विश्वसनीय फार्मेसी और जैव प्रौद्योगिकी और जीवन विज्ञान दोनों में एक भविष्य का वैश्विक नेता बनने का लक्ष्य बना रहा है”।   उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय लेखा डेटा के अनुसार, ये दोनों क्षेत्र अन्य विनिर्माण क्षेत्रों की तुलना में औसतन उत्पादन के लिए दोगुना मूल्य उत्पन्न करते हैं। बाजार विश्लेषकों और निवेशकों का अनुमान है कि आगे चलकर इन क्षेत्रों से रिटर्न एनएसई और बीएसई के उद्योग औसत से काफी अधिक होने जा रहा है। उन्होंने इस क्षेत्र के विकास और फोकस क्षेत्रों पर ध्यान दिया जो उद्योग के लिए बड़े पैमाने पर अवसर प्रदान करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से बायोलॉजिक्स और बायोसिमिलर स्पेस में आवश्यक गहन कार्य के लिए अनुसंधान और विकास और नियामक प्रणालियों के महत्व को सामने रखा। उन्होंने आगे कहा कि इस क्षेत्र ने कई रूढ़ियों को तोड़ा है, भारत अब पिछले वित्तीय वर्ष में आयात की तुलना में अधिक थोक दवाओं का निर्यात कर रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकाला कि जिन क्षेत्रों पर आगे ध्यान देने की आवश्यकता है, वे नीति, शिक्षाविद और औद्योगिक ढांचे हैं। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश एस. गोखले ने अपने संबोधन में भारत की प्रगति में जैव प्रौद्योगिकी की भावी भूमिका पर जोर दिया तथा वैश्विक मान्यता एवं सहयोग पर प्रकाश डाला।    उन्होंने बायोई3 नीति पर जोर दिया - आर्थिक विकास को गति देने, पर्यावरण की रक्षा करने तथा रोजगार सृजन में जैव प्रौद्योगिकी का महत्व। उन्होंने कहा कि 'विकसित भारत 20247' की ओर भारत के मार्ग को 'मध्यम आय के जाल' से बाहर निकलने की आवश्यकता है, जो कई देशों के सामने चुनौती है। उन्होंने तकनीकी नवाचार में प्रतिमान बदलाव का आह्वान किया, अनुसंधान एवं विकास क्षमता का निर्माण करने, उद्योग निवेश बढ़ाने तथा भारत को आगे बढ़ाने के लिए जैव प्रौद्योगिकी प्रगति पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया। समापन में, उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी विकास के एक अद्वितीय भारतीय मॉडल की आवश्यकता पर बल दिया जो इसके जनसांख्यिकीय और भौगोलिक लाभों का लाभ उठाता हो। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के औषधि महानियंत्रक डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने सीडीएससीओ के तहत नियामक सुधारों की सराहना करते हुए 'विश्व की फार्मेसी' बनने की दिशा में भारत के कदमों पर प्रकाश डाला। उन्होंने दवा अनुमोदन को सुव्यवस्थित करने, देरी को कम करने और दक्षता बढ़ाने के लिए नए दृष्टिकोणों सहित सहयोगी प्रयासों के माध्यम से वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भारत की प्रतिबद्धता पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे सीडीएससीओ दवा अनुमोदन में तेजी लाने के लिए पुराने नियमों को संशोधित कर रहा है, विशेष रूप से जैविक और नवीन उपचारों के लिए, जबकि अनावश्यक प्रक्रियाओं को समाप्त कर रहा है। 20-60 दिनों से 3 दिनों से कम समय तक अनुमोदन के समय को कम करने के लिए एक ऑनलाइन प्रणाली शुरू की गई है।   जिससे आयात प्रक्रिया काफी आसान हो गई है। उन्होंने भारत को फार्मास्युटिकल इनोवेशन के लिए वैश्विक केंद्र बनाने में चल रहे सुधारों के महत्व को रेखांकित किया। भारत अब बार-बार होने वाले परीक्षणों से बचने के लिए चुनिंदा देशों से नैदानिक ​​​​डेटा स्वीकार कर रहा है, जिससे नई, बेहतर दवाओं के लिए तेजी से बाजार में प्रवेश को बढ़ावा मिल रहा है। नीति आयोग के सदस्य डॉ. विनोद के पॉल ने महामारी की तैयारियों में हासिल की गई महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर प्रकाश डाला, सरकार, उद्योग और अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र में सहयोग के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने चार प्रमुख फोकस क्षेत्रों को रेखांकित किया: सरकारी नीति, डेटा प्रबंधन, नवाचार और विनिर्माण, और वैश्विक भागीदारी। उन्होंने सक्रिय अनुसंधान और विकास की आवश्यकता पर जोर दिया, विशेष रूप से भविष्य की महामारियों के लिए प्रतिवाद विकसित करने और तेजी से वैक्सीन विकास के माध्यम से तैयारियों की आवश्यकता पर। पिछली महामारी से मिले सबक पर विचार करते हुए, उन्होंने कई प्लेटफ़ॉर्म पर वैक्सीन बनाने सहित औद्योगिक क्षमताओं के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने हितधारकों से भविष्य के प्रकोपों ​​के लिए तेज़ प्रतिक्रिया समय सुनिश्चित करने के लिए "100-दिवसीय मिशन" मॉडल अपनाने का आग्रह किया, पूर्व-स्वीकृत वैक्सीन पाइपलाइनों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की वकालत की। उन्होंने महामारी की तैयारी में वैश्विक और स्थानीय प्रयासों को मजबूत करने के लिए निरंतर नवाचार और एक नेटवर्क की स्थापना का आह्वान किया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारत आत्मनिर्भर बना रहे और भविष्य के स्वास्थ्य संकटों के लिए तैयार रहे।   डॉ. राजेश जैन, अध्यक्ष, सीआईआई राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी समिति ने अपने संबोधन में दवा और जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के आकार को तीन गुना करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जिसका लक्ष्य 2047 तक 300 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचना है। उन्होंने पिछले दशक में सरकार द्वारा किए गए सुधारों की प्रशंसा की, जिसने उद्योग को विशेष रूप से संरचनात्मक और प्रक्रिया सुधारों के माध्यम से फलने-फूलने में मदद की है। उन्होंने सरकार से पीएलआई योजना जैसी पहलों के माध्यम से समर्थन जारी रखने का आग्रह किया, जो सीधे उद्योग के विकास को प्रभावित करती है। उन्होंने नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाने, आवेदनों में अतिरेक को कम करने और व्यापार करने में आसानी और दक्षता में सुधार के लिए अंतर-मंत्रालयी समन्वय को बढ़ावा देने की सिफारिश की। उन्होंने सरकार से डिजिटल स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में एआई, मशीन लर्निंग और बड़े डेटा एनालिटिक्स के एकीकरण की सिफारिश की। अंत में, उन्होंने सरकार से उद्योग के लिए टीकों की एक सूची प्रकाशित करने का आग्रह किया, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के साथ नवाचार प्रयासों को संरेखित करेगा और सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम का विस्तार करेगा। सीआईआई लाइफ साइंसेज समिट एक वार्षिक प्रमुख विचार नेतृत्व मंच है। यह फार्मास्यूटिकल और जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्रों का एक सहक्रियात्मक संयोजन है और यह नियामक सुधारों के प्रभाव, हालिया तकनीकी रुझानों, अत्याधुनिक नवाचारों को बढ़ावा देने, बायोलॉजिक्स और बायोसिमिलर्स के भविष्य, कुशल प्रतिभा विकसित करने, समान स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने और अन्य प्रचलित वकालत मामलों पर चर्चा करने के लिए समर्पित एक मंच है।   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Oct 9, 2024