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आप दिल्ली में अकेले लड़ेगी विधानसभा चुनाव, कांग्रेस के साथ नहीं होगा गठबंधन

नई दिल्ली, 06 जून 2024  (यूटीएन)। आम आदमी पार्टी ने फैसला किया है कि वो दिल्ली विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ेगी. पार्टी के सीनियर नेता गोपाल राय ने कहा कि कांग्रेस के साथ गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए था. विधानसभा चुनाव हम अकेले लड़ेंगे. पार्टी ने ये फैसला ऐसे समय में लिया है जब संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल जेल में हैं. बता दें कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने गठबंधन के तहत लोकसभा का चुनाव लड़ा.   दिल्ली के अलावा गुजरात, हरियाणा और चंडीगढ़ में भी लोकसभा चुनाव के गठबंधन हुआ. दिल्ली, गुजरात और हरियाणा में आम आदमी पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. पंजाब में पार्टी अकेले चुनाव लड़ी. वहां आप को तीन लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई.   इसके साथ ही गोपाल राय ने कहा, "आज विधायकों के साथ मीटिंग हुई है. परसों सभी पार्षदों के साथ बैठक होगी और 13 जून को दिल्ली के सभी कार्यकर्ताओं के साथ बड़ी बैठक होगी. आचार संहिता के कारण विकास कार्य रुके हुए थे. फैसला हुआ है कि प्रत्येक शनिवार और रविवार को विधायक अपने इलाक़ों में विकास कार्यों को लेकर काम करेंगे.   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Jun 6, 2024

नहीं बनाएंगे सरकार, करेंगे इंतजार! इंडिया गठबंधन की मीटिंग के बाद हो गया साफ

नई दिल्ली, 06 जून 2024 (यूटीएन)। लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद दिल्ली में राजनीतिक उठापटक तेज है. इस बीच इंडिया गठबंधन की बैठक खत्म होने के मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि इंडिया गठबंधन सही समय का इंतजार करेगा. उन्होंने कहा, "हम एकजुट होकर पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़े. हम मोदी जनमत को नकारने की कोशिश करेंगे. ये मोदी की नैतिक और राजनीति हार है. हम मोदी के खिलाफ लड़ते रहेंगे. यह जनादेश बीजेपी के नीतियों के खिलाफ है.   *'जनता ने बीजेपी को दिया करारा जवाब'* कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, "हमारी बैठक में गठबंधन पार्टी के नेताओं ने मौजूदा राजनीतिक हालत और मौजूदा परिस्थिति पर बहुत से सुझाव आए और चर्चा हुई. इंडिया गठबंधन के घटक हमारे गठबंधन को मिले भारी समर्थन के लिए भारत की जनता का आभार व्यक्त करते हैं. जनता के जनादेश ने बीजेपी और उसकी नफरत, भ्रष्टाचार की राजनीति को करारा जवाब दिया है.   *'यह जनादेश लोकतंत्र को बचाने के लिए है'* कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा, "यह जनादेश भारत के संविधान की रक्षा और महंगाई, बेरोजगारी, क्रोनी पूंजीवाद के खिलाफ और लोकतंत्र को बचाने के लिए है. इंडिया गठबंधन मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के फासीवादी शासन के खिलाफ लड़ाई जारी रखेगा. मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर हुई बैठक में इंडिया गठबंधन की बैठक में तेजस्वी यादव, राघव चड्ढा, शरद पवार, डी राजा, संजय राउत, अखिलेश यादव, चंपई सोरेन, सुप्रिया सुले, शरद पवार समेत कई नेता मौजूद थे.    विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Jun 6, 2024

वे एनडीए का ही हिस्सा हैं: चंद्रबाबू नायडू

नई दिल्ली, 06 जून 2024 (यूटीएन)। लोकसभा चुनाव के नतीजे साफ होने के बाद केंद्र में सरकार बनाने की रस्साकशी तेज हो गई है. भारतीय जनता पार्टी को बहुमत न मिलने के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए के सहयोगी दलों की भूमिका काफी अहम हो गई है. इनमें भी तेलुगु देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू और जनता दल यूनाइटेड के नीतीश कुमार का रोल काफी अहम है और ये दोनों ही किंगमेकर के तौर पर देखे जा रहे हैं. इन दोनों ही दिग्गजों पर एनडीए और इंडिया दोनों गठबंधन की निगाहें हैं और फिलहाल ये दोनों ही एनडीए के पाले में हैं.   बुधवार को एनडीए की बैठक में भी ये दोनों दिग्गज पहुंचे और नरेंद्र मोदी को एनडीए का नेता चुनने के लिए समर्थन पत्र भी दे दिया. इस बैठक में चंद्रबाबू नायडू, नरेंद्र मोदी के पास बैठे थे, इससे अब एनडीए में उनके महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है. एनडीए की बैठक खत्म होने तक नायडू की पार्टी ने नरेंद्र मोदी के समर्थन में पत्र देने की औपचारिकता पूरी कर ली है. इस बैठक से निकलने के बाद नायडू का बैठक पर रिएक्शन भी आ गया है.   *एनडीए की बैठक के बाद चंद्रबाबू नायडू का पहला रिएक्शन* एनडीए की बैठक से निकलने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि वो एनडीए का हिस्सा हैं और ये बैठक अच्छी रही है. नायडू ने आगे कहा कि बैठक में क्या फैसले लिए गए इसके बारे में बाद में विस्तार से जानकारी दी जाएगी. एनडीए की बैठक के तुरंत बाद चंद्रबाबू नायडू बीजेपी नेता पीयूष गोयल के घर गए. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यहां उन्होंने एनडीए सरकार में टीडीपी को मिलने वाली मंत्रीमंडल की बर्थ पर चर्चा की. हालांकि इस बारे में उन्होंने विस्तार से जानकारी नहीं दी.    तेलुगु देशम पार्टी एनडीए में बीजेपी के बाद सबसे बड़ी पार्टी है. टीडीपी के 16 उम्मीदवारों ने इस चुनाव में जीत दर्ज की है. वहीं बीजेपी के 240 उम्मीदवार जीते हैं. एनडीए गठबंधन में तीसरा सबसे बड़ा दल नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटेड है, जिसे 12 सीटें मिली हैं.    विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |    

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Jun 6, 2024

नरेंद्र मोदी ही होंगे पीएम! सर्वसम्मति से एनडीए की बैठक में पास हुआ प्रस्ताव

नई दिल्ली, 06 जून 2024 (यूटीएन)। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की बैठक में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार चुन लिया गया है. एनडीए की बैठक के बाद साफ हो गया है कि नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. इससे पहले विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन की ओर से सरकार बनाने का दावा पेश किए जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं. दरअसल, लोकसभा चुनाव के नतीजे मंगलवार को घोषित हो गए हैं. एनडीए गठबंधन को सबसे अधिक सीटें मिली है. हालांकि, चुनावी नतीजे आने के बाद एनडीए में पीएम के चेहरे को लेकर 24 घंटे तक चला सस्पेंस आखिरकार खत्म हो गया है.   *नरेंद्र मोदी तीसरी बार बनेंगे पीएम* बुधवार को एनडीए गठबंधन की बैठक हुई. बीजेपी समेत 16 दलों के नेताओं ने शिरकत की. इस बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया. जिसमें कहा गया कि भारत के 140 करोड़ देशवासियों ने पिछले 10 सालों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों से देश को हर क्षेत्र में विकसित होते देखा है. बहुत लंबे अंतराल, लगभग 6 दशक के बाद भारत की जनता ने लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत से सशक्त नेतृत्व को चुना है.   *बैठक में क्या हुई चर्चा* प्रस्ताव में कहा गया, ''हम सभी को गर्व है कि 2024 का लोकसभा चुनाव एनडीए ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एकजुटता से लड़ा और जीता. हम सभी एनडीए के नेता नरेंद्र मोदी को सर्वसम्मति से अपना नेता चुनते हैं. मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार भारत के गरीब-महिला-युवा-किसान और शोषित, वंचित व पीड़ित नागरिकों की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध है. भारत की विरासत को संरक्षित कर देश के सर्वांगीण विकास हेतु एनडीए सरकार भारत के जन-जन के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए कार्य करती रहेगी.   *नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति को सौंपा इस्तीफा* बता दें कि लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन को 293 सीटों पर जीत मिली है. वहीं, इंडिया अलायंस ने 234 सीटों पर विजयी हासिल की है. बीजेपी को अकेले 240 सीटें मिली है. आज सुबह (5, जून) को नरेंद्र मोदी मोदी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और उसे राष्ट्रपति भवन पहुंचकर राष्ट्रपति द्रौपर्दी मुर्मु को सौंप दिया. फिलहाल नरेंद्र मोदी नई सरकार के गठन तक देश के कार्यवाहक पीएम की कमान संभालेंगे.   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Jun 6, 2024

मोदी 3.0 मोदी कैबिनेट में भाजपा के बड़े मंत्रियों की छुट्टी तय

नई दिल्ली, 05 जून 2024 (यूटीएन)। लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं। भाजपा, 240 सीटों के साथ संसद में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वह अपने दम पर स्पष्ट बहुमत के करीब नहीं पहुंच सकी। हालांकि भाजपा के नेतृत्व वाले 'एनडीए' को स्पष्ट बहुमत '292 सीट' मिला है। बुधवार को दिल्ली में एनडीए और इंडिया गठबंधन, दोनों की बैठक हो रही है। कांग्रेस पार्टी को 99 सीटें हासिल हुई हैं। इंडिया गठबंधन की बात करें, तो उसके पास 234 सीट हैं। अन्य के खाते में 17 सीटें आई हैं। ऐसी स्थिति में मोदी 3.0 मंत्रिमंडल का चेहरा पूरी तरह बदल जाएगा। मोदी मंत्रिमंडल में भाजपा के बड़े मंत्रियों की छुट्टी तय है। विशेषकर गृह, वित्त, सड़क व रेल मंत्रालयों पर रार मच सकती है। मौजूदा समय में इन मंत्रालयों पर भाजपा सांसद ही काबिज रहे हैं, लेकिन मोदी 3.0 मंत्रिमंडल में ये विभाग, सहयोगी दलों के पास जा सकते हैं।    टीडीपी और जेडीयू के सांसदों को इन मंत्रालयों में बतौर कैबिनेट या राज्य मंत्री, साझेदारी मिल सकती है। जानकारी के मुताबिक, गृह मंत्रालय अमित शाह के पास ही रहने की उम्मीद है, लेकिन इसमें राज्य मंत्री के पद सहयोगी दलों को दिए जा सकते हैं। मोदी 2.0 मंत्रिमंडल की बात करें, तो केंद्रीय गृह मंत्रालय में अमित शाह के अलावा तीन राज्य मंत्री भी रहे हैं। इनमें नित्यानंद राय, अजय मिश्रा और निशीथ प्रमाणिक शामिल थे। अब अजय मिश्रा 'टेनी' और निशीथ प्रमाणिक, चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में अमित शाह को अपने नए सहयोगी तलाशने पड़ेंगे। सूत्रों के मुताबिक, कई केंद्रीय एजेंसियां, गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करती हैं, ऐसे में जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार और टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू, केंद्रीय गृह मंत्रालय में साझेदारी मांग सकते हैं।   हालांकि खबर यह भी मिल रही है कि टीडीपी और जेडीयू, दोनों दल लोकसभा अध्यक्ष पद देने की मांग भी कर सकते हैं। इसके अलावा सड़क परिवहन मंत्रालय और रेल मंत्रालय पर भी रार मच सकती है। टीडीपी, सड़क परिवहन मंत्रालय और जेडीयू रेल मंत्रालय पर अड़ सकते हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य और वित्त मंत्रालय में भी दोनों दल, साझेदारी की बात रख सकते हैं। जेडीयू और टीडीपी के कोटे के तहत तीन से चार केंद्रीय मंत्रियों की मांग आ रही है। बिहार में चिराग पासवास, जीतनराम मांझी और महाराष्ट्र में शिव सेना को भी मंत्रियों की दरकार है। संभव है कि शिव सेना को दो केंद्रीय मंत्री मिल सकते हैं। इसके अलावा चिराग पासवान भी कम से कम दो मंत्री पद की मांग कर रहे हैं। इसमें एक कैबिनेट और एक राज्य मंत्री का पद शामिल है। इनके अतिरिक्त कई दूसरे छोटे दल, जो मोदी सरकार को समर्थन दे रहे हैं, वे भी मंत्री पद की राह देख रहे हैं।   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Jun 5, 2024

कमल की कशमकश: भाजपा को आत्ममंथन की सलाह दे रहे चुनाव नतीजे

नई दिल्ली, 05 जून 2024 (यूटीएन)। एनडीए का आंकड़ा भले ही सरकार बनाने लायक बहुमत से आगे निकल गया हो, भाजपा भले ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो, लेकिन आंकडे़ बता रहे हैं कि जातीय गोलबंदी और मुस्लिम लामबंदी हिंदुत्व पर भारी पड़ी। मोदी की तीसरी बार सरकार बनने से संविधान और आरक्षण पर खतरे का विपक्ष का शोर भाजपा के लाभार्थी मतदाताओं के समूहों तथा सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास और सबका प्रयास के नारे पर भारी पड़ा। अयोध्या में राममंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बावजूद वहां भाजपा की हार इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। हिंदी पट्टी में उत्तर प्रदेश सहित, राजस्थान, हरियाणा के अलावा महाराष्ट्र व पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में आरक्षण बचाने के लिए पिछड़ों और दलितों की जातीय गोलबंदी के साथ मुस्लिमों ने लामबंद होकर भाजपा को अपने दम पर बहुमत के आंकड़े से ही दूर नहीं किया, इंडिया गठबंधन के पैर जमाने की कोशिश को भी आसान कर दिया। नतीजों का मुख्य संकेत यही है। पर, गणित बिगड़ने का कारण सिर्फ यही नहीं है। भाजपा के अति आत्मविश्वास और वर्तमान सांसदों को लेकर स्थानीय स्तर पर अलोकप्रियता, विपक्ष की तरफ से महंगाई, बेरोजगारी और किसानों के साथ नाइंसाफी जैसे आरोपाें ने भी भाजपा के समीकरणों को कमजोर किया।   आरोपों की काट में असफल........   सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बावजूद, भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 पार के भरोसे से लबरेज लक्ष्य के चौंकाने वाले फलितार्थ निश्चय ही भाजपा को आत्ममंथन की सलाह दे रहे हैं। मध्यप्रदेश, बिहार और दिल्ली में भाजपा के नतीजों के भी कुछ संकेत हैं। भाजपा की तीसरी बार सरकार बनने पर संविधान बदल देने, चुनाव न कराने और पिछड़ों-दलितों का आरक्षण समाप्त कर देने के विपक्षी गठबंधन के आरोपों की काट निकालने में भाजपा असफल रही।   विपक्ष ने जीता मुस्लिमों का भरोसा......   भाजपा के बड़े नेताओं के तमाम तर्कों के बावजूद स्थानीय स्तर पर, खासतौर पर उत्तर प्रदेश सहित हिंदी पट्टी के कुछ राज्यों में पार्टी कार्यकर्ता आरक्षण और संविधान खत्म करने के आरोपों की प्रभावी काट नहीं निकाल पाए। मुस्लिमों ने भाजपा के खिलाफ पिछड़ों व दलितों की गोलबंदी देखी, तो उन्हें भरोसा हो गया कि वे इनके साथ लामबंद होकर भाजपा का विजय अभियान रोक सकते हैं। उन्होंने वही कोशिश की। इंडिया गठबंधन अपने सरकार बनाने के दावे पर मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा जीतने में कामयाब रहा। मुस्लिमों ने सहूलियत और विशिष्टता तथा सत्ता में हिस्सेदारी की आकांक्षा से इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान किया।   बूथ-प्रबंधन हुआ ध्वस्त.......   भाजपा नेतृत्व की न जाने क्या मजबूरी थी कि जनता से संपर्क-संवाद न रखने वाले चेहरों को फिर मैदान में उतार दिया। वहीं, रिकॉर्ड जीत वालों के टिकट काट दिए गए। इससे नाराजगी पैदा हुई। आमतौर पर मुखर रहने वाला कार्यकर्ता चुप्पी साध गया। पहले चरण में, कम मतदान का कारण यही था। बूथ-प्रबंधन, जो भाजपा की पहचान थी, वह ध्वस्त था।   मोदी पर भरोसा, पर खुद बेअंदाज.......   प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे की बदौलत जीत के अति भरोसे से भरे उम्मीदवार अपनी ही रौ में चलते रहे। जनता की नाराजगी के बावजूद कुछ बेअंदाज सांसद खुद पसीना बहाने के बजाय पीएम मोदी के भरोसे बैठ गए। संगठन के अति आत्मविश्वास से जातीय गोलबंदी और मुस्लिम मतदाताओं की लामबंदी का असर ज्यादा व्यापक होता चला गया।   सांसदों की बेरुखी ने बढ़ाई दूरी........   मोदी ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद योजनाओं का लाभ सीधे लोगों तक पहुंचाकर बड़ा लाभार्थी मतदाता वर्ग तैयार किया, जो हर चुनाव में संकटमोचक बनता रहा है। इनसे निरंतर संवाद का काम पहले सांसदों-विधायकों को सौंपा गया। लेकिन, जब उनकी अरुचि दिखी, तो विकसित भारत संकल्प यात्रा के जरिये सरकारी तंत्र को सक्रिय करना पड़ा। विपक्षी गठबंधन ने इसका तोड़ निकाल लिया...राहुल गांधी गरीब महिला के खाते में 8,500 रुपये खटाखट-खटाखट पहुंचाने का वादा करते दिखे, तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पांच की जगह दस किलो अनाज का भरोसा देते नजर आए। यूपी, हरियाणा, राजस्थान में भाजपा की सीटों में कमी की बड़ी वजह स्थानीय स्तर पर उम्मीदवारों व नेताओं से लोगों की नाराजगी दूर करने में पार्टी की नाकामी भी है।   सरोकारों पर सक्रिय चेहरों की जरूरत.......   नतीजे यह भी बताते हैं कि भाजपा को जातीय अस्मिता पर और फोकस करना होगा। उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक भाजपा को झटका और मध्य प्रदेश में उसे मिली एकतरफा जीत यह समझा रही है कि पिछड़ी और दलित जातियों में ऐसे चेहरों को आगे लाने की जरूरत है, जो जनाधार रखते हैं। विकास और कल्याणकारी योजनाएं आरक्षण की तरह अब हर सरकार की अपरिहार्यता हो गई हैं। सत्ता परिवर्तन के साथ इनमें बदलाव संभव नहीं रह गया...न ही जातीय आकांक्षाओं को पूरी तरह संतुष्ट कर सकती है। पिछड़ों और दलितों को सजावटी चेहरे नहीं, बल्कि सत्ता के शीर्ष में भागीदारी चाहिए। जो उनके सरोकारों पर सक्रिय दिखे।   राजस्थान में भी नाराजगी........   मध्य प्रदेश में मोहन यादव की ताजपोशी व शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बावजूद भाजपा पिछड़ों को बांधे रही, लेकिन राजस्थान में वसुंधरा राजे को पूरी तरह किनारे करना एक बड़े वर्ग को नाराज कर गया। भाजपा के पास पिछड़ी जातियों के कई चेहरे होते हुए जिस तरह उत्तर प्रदेश में पिछड़े और दलित वोट के उससे छिटकने के संकेत मिल रहे हैं, वह बताता है कि पार्टी नेता अपने समाज के लोगों के सरोकारों के साथ जु़ड़ने में नाकाम रहे हैं।   राहुल की छवि बदली पर चुनौती बाकी........   विपक्षी गठबंधन की अहम जीत से राहुल गांधी का ग्राफ बड़ा है। भारत जोड़ाे यात्राओं ने उनकी छवि बदली है। हालांकि नरेंद्र मोदी जैसा भरोसा हासिल करना उनके लिए अब भी चुनौती है। वे विपक्षी गठबंधन को राष्ट्रीय स्वरूप दे पाते और दो सौ से ज्यादा सीटों पर गठबंधन के दल आमने-सामने चुनाव लड़ते न दिखते, तो नतीजे और बेहतर हो सकते थे। अखिलेश यादव अधिक विश्वास और बेहतर राजनीतिक समीकरण के साथ मैदान में थे। दो बार की नाकामी के बाद इस बार उत्तर प्रदेश में इससे कांग्रेस को लाभ मिला। रोचक तथ्य देखिए, जिस अखिलेश सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण खारिज किए जाने के बाद 12 हजार से ज्यादा अनुसूचित जाति वर्ग के कर्मचारियों, अधिकारियों को पदावनत किया, उन्हें ही मायावती का पूरा वोट बैंक स्थानांतरित हो गया। इसके चलते बसपा का वोट बैंक यूपी में 19.26 फीसदी से घटकर महज 2 फीसदी रह गया।   *पुराने मित्रों से दोस्ती से बढ़ी इज्जत........   वहीं, ओडिशा में मित्र दल बीजद से अलग होकर चुनाव लड़ना और आंध्र प्रदेश व बिहार में पुराने मित्रों से फिर दोस्ती से भाजपा की इज्जत बनी रही। हालांकि उत्तर प्रदेश में डबल इंजन की सरकार और जातीय अस्मिता से जुड़े दलों के साथ गठबंधन के बावजूद उसे निराशा हाथ लगी है।     विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Jun 5, 2024

आज की ये विजय दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की जीत: नरेन्द्र मोदी

नई दिल्ली, 05 जून 2024 (यूटीएन)। लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की. चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद पीएम मोदी दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय पहुंचे. जहां पीएम मोदी विजय चिन्ह दिखाते नजर आए. बीजेपी मुख्यलय में पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह देखते ही बनता था. पीएम मोदी के चेहरे पर भी मुस्कान नजर आई. पीएम मोदी की बगल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बैठे नजर आए. इस दौरान दोनों नेता किसी मुद्दे पर बातचीत करते नजर आए, इस दौरान दोनों काफी खुश दिखाई दिए.   ' मै सभी देशवासियों की ऋणी '   पीएम मोदी ने अपने विजय भाषण में कहा कि, आपका ये स्नेह आपका ये प्यार इस आशीर्वाद के लिए मैं सभी देशवासियों की ऋणी हूं. आज बड़ा मंगल है और इस पावन दिन एनडीए की लगातार तीसरी बार सरकार बननी तय है. पीएम मोदी ने कहा कि हम सभी जनता जनार्दन के बहुत आभारी है. देशवासियों ने भाजपा पर एनडीए पर पूर्ण विश्वास जताया है. आज की ये विजय दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की जीत है. ये भारत के संविधान पर अटूट निष्ठा की जीत है. ये विकसित भारत के प्रण की जीत है. ये सबका साथ सबका विकास इस मंत्र की जीत है. ये 140 करोड़ भारतीयों की जीत है.   ' चुनाव प्रक्रिया की क्रेडिबिलिटी पर हर भारतीय को गर्व '   पीएम मोदी ने कहा कि मैं आज देश के चुनाव आयोग का भी अभिनंदन करूंगा. चुनाव आयोग ने दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव इतनी कुशलता से संपन्न कराया. करीब 100 करोड़ मतदाता, 11 लाख पोलिंग स्टेशन 1.5 करोड़ मतदान कर्मी, 55 लाख वोटिंग मशीनें, हर कर्मचारी ने इतनी प्रचंड गर्मी में अपने दायित्व को बखूभी निभाया. हमारे सुरक्षा कर्मियों ने अपने शानदार कर्तव्य का परिचय दिया. पीएम मोदी ने कहा कि भारत के चुनाव के इस पूरी सिस्टम और चुनाव प्रक्रिया की क्रेडिबिलिटी पर हर भारतीय को गर्व है. मोदी ने कहा कि, मैं देशवासियों को कहूंगा, मैं इंफ्लूएंसर्स को कहूंगा, मैं ओपिनियन मेकर्स को कहूंगा कि भारत के लोकतंत्र में ये चुनाव प्रक्रिया की ताकत है, ये अपने आप में बहुत बड़ा गौरव का विषय है, भारत की पहचान को चार चांद लगाने की वाली बात है. ऐसे जो भी लोग हैं जो दुनिया में अपनी बात पहुंचा सकते हैं. उन सबसे मैं आग्रह करूंगा कि भारत की लोकतंत्र की समार्थ को विश्व के सामने बड़े गर्व के साथ हमें प्रस्तुत करना चाहिए. इस बार भी भारत में जितने लोगों ने मतदान किया, वो अनेक बड़े लोकतांत्रिक देशों की कुल आबादी से भी ज्यादा है. जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं ने इस चुनाव में रिकॉर्ड वोटिंग कर अभूतपूर्व उत्साह दिखाया है.   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Jun 5, 2024

यह जनादेश किसकी जीत, किसकी हार ? 10 साल बाद लौट रहा गठबंधन सरकार का दौर

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े चुनाव में जनता ने एक बार फिर चौंका दिया। लोकसभा चुनाव में आए जनादेश ने सारे अनुमानों को ध्वस्त कर दिया। रुझानों में भाजपा 250 तक भी नहीं पहुंच पा रही। अंतिम नतीजे आने तक वह एनडीए के सहयोगी दलों की मदद से 290 से ऊपर जा सकती है। इस जनादेश में कई सवाल छुपे हैं।   इस जनादेश के क्या मायने हैं ?   - एनडीए को 400 पार और पार्टी को 370 पार ले जाने की भाजपा की रणनीति कामयाब नहीं हो पाई।  - जनादेश ने साफ कर दिया कि सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के भरोसे रहने से भाजपा का काम नहीं चलेगा। उसके निर्वाचित सांसदों और राज्य के नेतृत्व को भी अच्छा प्रदर्शन करना होगा।  - जनादेश बताता है कि गठबंधन की अहमियत का दौर 10 साल बाद फिर लौट आया है। भाजपा के पास अकेले के बूते अब वह आंकड़ा नहीं है, जिसके सहारे वह अपना एजेंडा आगे बढ़ा सके। - एग्जिट पोल्स की भी हवा निकल गई। 11 एग्जिट पोल्स में एनडीए को 340 से ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। तीन सर्वेक्षणों में तो एनडीए को 400 लोकसभा सीटें मिलने का अनुमान था। रुझानों/नतीजों में एनडीए उससे तकरीबन 100 सीट पीछे है।    क्या इसे सत्ता विरोधी लहर कहेंगे ?   1999 में 182 सीटें जीतने वाली भाजपा जब 2004 में 138 सीटों पर आ गई तो उसने सत्ता गंवा दी। उसके पास स्पष्ट बहुमत 1999 में भी नहीं था और उससे पहले भी नहीं था। फिर भी यह माना गया कि जनादेश भाजपा के 'फील गुड फैक्टर' के विरोध में था।  वहीं, 2004 में भाजपा से महज सात सीटें ज्यादा यानी 145 सीटें जीतकर कांग्रेस ने यूपीए की सरकार बना ली। 2009 में कांग्रेस इससे बढ़कर 206 सीटों पर पहुंच गई, लेकिन 2014 में 44 पर सिमट गई। इसे स्पष्ट तौर पर यूपीए के लिए सत्ता विरोधी लहर माना गया। हालांकि, जब उत्तर प्रदेश जैसे सबसे अहम राज्य के नतीजे देखते हैं तो तस्वीर इस बार अलग नजर आती है। यहां भाजपा 34-35 सीटों पर सिमटती दिख रही है, जबकि 2014 में यहां भाजपा ने 71 और 2019 में 62 सीटें जीती थीं। सबसे बड़ा नुकसान भाजपा को इसी राज्य से हुआ है।   क्या कम मतदान ने भाजपा की सीटें घटा दीं और कांग्रेस-सपा की बढ़ा दीं ?   वैसे तो इस बार लोकसभा चुनाव के शुरुआती छह चरण में ही पिछली बार के मुकाबले ढाई करोड़ से ज्यादा वोटरों ने मतदान किया था। फिर भी मतदान का प्रतिशत कम रहा। इसके ये मायने निकाले जा रहे हैं कि भाजपा अबकी पार 400 पार के नारे में खुद ही उलझ गई। उसके वोट इसलिए नहीं बढ़े क्योंकि भाजपा को पसंद करने वाले वोटरों ने तेज गर्मी के बीच संभवत: खुद ही यह मान लिया कि इस बार भाजपा की जीत आसान रहने वाली है। इसलिए वोटरों का एक बड़ा तबका वोट देने के लिए निकला ही नहीं।    तो यह किसकी जीत, किसकी हार ?    यह भाजपा की स्पष्ट जीत नहीं है। यह एनडीए की जीत ज्यादा है। आंकड़ों की दोपहर तक की स्थिति को देखें तो यह माना जा सकता है कि पूरे पांच साल भाजपा गठबंधन के सहयोगियों खासकर जदयू और तेदेपा के भरोसे रहेगी। इन दोनों दलों के बारे में यह कहना मुश्किल है कि ये भाजपा के साथ पूरे पांच साल बने रहेंगे या नहीं। राज्य के लिए विशेष पैकेज और केंद्र और प्रदेश की सत्ता में भागीदारी के मुद्दे पर इनके भाजपा से मतभेद के आसार ज्यादा रहेंगे। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू, दोनों ही अतीत में एनडीए से अलग हो चुके हैं। इंडी गठबंधन की बात करें तो यह उसकी स्पष्ट जीत कम और बड़ी कामयाबी ज्यादा है। यह गठबंधन 200 का आंकड़ा आसानी से पार कर रहा है। इसके ये सीधे तौर पर मायने हैं कि अगले पांच साल विपक्ष केंद्र की राजनीति में मजबूती से बना रहेगा। क्षेत्रीय दल देश की राजनीति में अपरिहार्य बने रहेंगे।    मुकाबला भाजपा बनाम विपक्ष था या मोदी बनाम मोदी ?   आंकड़ों की मानें तो इसका जवाब है हां, लेकिन इसका दूसरा जवाब यह भी है कि यह मुकाबला 2014 और 2019 में मोदी की लोकप्रियता बनाम 2024 में मोदी की लोकप्रियता का रहा। भाजपा ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पहली बार 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। पहली बार में ही वह अकेले के बूते 282 सीटों पर पहुंची। 2019 में भाजपा ने 303 सीटें जीतीं। इस बार भाजपा की अपनी सीटें 240 के आसपास हैं। यानी वह 2014 से 40 सीटें और 2019 से 60 सीटें पीछे है।   तो क्या गठबंधन की राजनीति लौट रही है ?    बिल्कुल, भाजपा को भले ही पांच साल तक आसानी से सरकार चला लेने का भरोसा हो, लेकिन उसकी निर्भरता जदयू और तेदेपा जैसे दलों पर रहेगी। भाजपा ने 10 साल स्पष्ट बहुमत से सरकार चलाई, लेकिन अब गठबंधन सरकार का दौर लौटेगा।    पिछली गठबंधन सरकारों के मुकाबले भाजपा किस स्थिति में रहेगी ?     डॉ. मनमोहन सिंह के समय कांग्रेस ने इससे भी कम सीटें लाकर गठबंधन की सरकार चलाई। अटल-आडवाणी भी भाजपा को अधिकतम 182 सीटों पर पहुंचा सके थे, लेकिन सरकार चला पाए। भाजपा की 2024 की स्थिति इससे बेहतर है।    यह जनादेश कबकी याद दिलाता है ?   नतीजे 1991 के लोकसभा चुनाव जैसे हैं। तब कांग्रेस ने 232 सीटें जीतीं और पीवी नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बने। उन्होंने पूरे पांच साल अन्य दलों के समर्थन से सरकार चलाई। इस बार भाजपा भी 240 के आसपास है। गठबंधन अब उसकी मजबूरी है।   यह चुनाव किसके लिए उत्साहजनक हैं ?   इसके पीछे कई चेहरे हैं। जैसे राहुल गांधी। कांग्रेस 2014 में 44 और 2019 में 52 सीटों पर थी तो उन्हें जिम्मेदार माना गया। इस बार वह 100 सीटों के करीब है। यानी पिछली बार के मुकाबले लगभग दोगुनी सीटों पर वह जीत रही है। दूसरा बड़ा नाम है अखिलेश यादव। देशभर में भाजपा को सबसे बड़ा झटका सपा ने ही दिया है। सपा ने पिछली बार बसपा के साथ गठबंधन किया। बसपा को 10 सीटें मिली थीं, लेकिन सपा पांच ही सीटें जीत पाई थी। इस बार सपा ने कांग्रेस से हाथ मिलाया। वह 34 से ज्यादा सीटों पर जीत रही है। यह लोकसभा चुनावों में वोट शेयर के लिहाज से सपा का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन हो सकता है। 2004 के लोकसभा चुनाव में उसे 35 सीटें मिली थीं। वहीं, वोट शेयर के लिहाज  पार्टी का सबसे बेहतर प्रदर्शन 1998 में था जब उसे करीब 29 फीसदी वोट मिले थे। इस बार यह आंकड़ा 33 फीसदी से ज्यादा हो सकता है। तीसरा बड़ा नाम हैं चंद्रबाबू नायडू। उनकी तेदेपा आंध्र प्रदेश में सरकार बनने के करीब है और एनडीए के सबसे अहम घटक दलों में से एक रहेगी। ऐसा ही एक नाम उद्धव ठाकरे का है। यह उनके लिए अस्तित्व की लड़ाई थी। शिंदे गुट से ज्यादा सीटें जीतकर उद्धव ठाकरे यह कहने की स्थिति में होंगे कि उनकी शिवसेना ही असली शिवसेना है।   इस बार क्या रिकॉर्ड बन सकते हैं ?   इस बार का लोकसभा चुनाव भले ही सुस्त नजर आया, लेकिन जनादेश ऐतिहासिक हो सकता है। अगर भाजपा ही सरकार बनाती है तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैट्रिक होगी। पीएम मोदी पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद वे ऐसे दूसरे नेता होंगे, जो लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे। 1947 में पंडित नेहरू पहली बार प्रधानमंत्री जरूर बने, लेकिन चुनावी राजनीति शुरू होने के बाद उन्होंने 1951-52, 1957, 1962 का चुनाव जीता और लगातार प्रधानमंत्री रहे। वहीं, शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री मोदी अटलजी की भी बराबरी कर लेंगे। अटलजी का कार्यकाल कम रहा, लेकिन उन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Jun 5, 2024

आइएनडीआइए सरकार बनाएगी या नहीं ? राहुल गांधी ने दिया सीधा जवाब

नई दिल्ली, 05 जून 2024 (यूटीएन)। लोकसभा चुनाव की मतगणना के बीच कांग्रेस नेताओं ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी मौजूद थे। मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि चुनाव के जो रिजल्ट आए हैं वो जनता का रिजल्ट है। ये जनता की जीत है। ये लड़ाई मोदी बनाम जनता है।   ये लोकतंत्र की जीत है: खरगे   खरगे ने आगे कहा कि 18वीं लोकसभा चुनाव में हम विनम्रता से रिजल्ट स्वीकार करते हैं। यह स्पष्ट हो चुका है कि ये मैंडेट पीएम मोदी के खिलाफ है। ये मोदी जी की नैतिक हार है। हमारे खाते फ्रीज किए गए। सरकारी एजेंसियों ने कदम-कदम पर बाधाएं डाली।   ये लड़ाई संविधान को बचाने की थी: राहुल गांधी   संवाददाताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि ये चुनाव कांग्रेस और आई.एन.डी.आई. गठबंधन ने सिर्फ एक राजनीतिक दल के लिए नहीं लड़ी। विपक्ष ने सरकार एजेंसियों के खिलाफ भी चुनाव लड़ी। इन संस्थानों को मोदी सरकार ने डराया और धमकाया है। ये चुनाव ईडी, सीबीआई के खिलाफ था। ये लड़ाई संविधान को बचाने की थी। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन पर राहुल गांधी ने कहा कि ये मेरी बहन की मेहनत की जीत है, जो इस प्रेस कॉन्फेंस में हमारे पीछे छुपी हुई है।   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Jun 5, 2024

दिल्ली में फिर नहीं खुला किसी तीसरे दल का खाता

नई दिल्ली, 05 जून 2024 (यूटीएन)। राष्ट्रीय राजधानी में इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा और आईएनडीआईए (कांग्रेस व आम आदमी पार्टी) के प्रत्याशियों के बीच जोरदार मुकाबला हुआ। इस मुकाबले में भाजपा न सिर्फ भारी पड़ी बल्कि राष्ट्रीय राजधानी में लगातार तीसरी बार क्लीन स्वीप किया। भाजपा और प्रतिद्वंदी आईएनडीआईए प्रत्याशियों के अलावा अन्य दलों के एक भी उम्मीदवार और निर्दलीय अपनी जमानत नहीं बचा पाए। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के सातों उम्मीदवारों सहित 148 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। खास बात यह कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ( आप ) के बीच गठबंधन होने के बावजूद इस बार भी दिल्ली में किसी तीसरे दल का खाता नहीं खुल पाया।   35 वर्षों में किसी तीसरे दल को नहीं मिली सीट.........   दिल्ली में पिछले 35 वर्षों में किसी तीसरे दल को एक भी सीट नहीं मिली। इस दौरान पिछले दस वर्षों में दिल्ली की सात लोकसभा सीटों के लिए हुए तीन चुनावों का परिणाम एकतरफा ही रहा है। बाकी चुनावों में भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाए थे। दिल्ली में आखिरी बार वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में तीसरे दल के रूप में जनता दल ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी। तब बाहरी दिल्ली लोकसभा सीट से जनता दल के प्रत्याशी तारीफ सिंह चुनाव जीते थे। इसके बाद अब तक नौ चुनाव हो चुके हैं लेकिन दिल्ली में किसी तीसरे दल को सीट नहीं मिली।   इस बार 162 उम्मीदवार थे मैदान में...........   इस लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सात लोकसभा सीटों के लिए 162 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। भाजपा और आईएनडीआई गठबंधन के प्रत्याशियों के अलावा बीएसपी ने भी सातों सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। लेकिन हाथी की चाल बेहद कमजोर रही। इस वजह से बीएसपी के दो उम्मीदवारों को छोड़कर बीएसपी के अन्य उम्मीदवार दस हजार मत भी नहीं पा सके। सिर्फ दो उम्मीदवार ही दस हजार से थोड़ा अधिक मत पा सके। दिल्ली की आप सरकार से इस्तीफा देखकर नई दिल्ली से बीएसपी प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े पूर्व मंत्री राजकुमार आनंद को भी छह हजार से कम वोट मिले। इस वजह से उनकी भी जमानत जब्त हो गई। भाजपा, कांग्रेस, आप और बीएसपी के अलावा 141 अन्य उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में थे। जिसमें करीब चार दर्जन पंजीकृत गौर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रत्याशी व निर्दलीय उम्मीदवार शामिल हैं। इन सब की जमानत जब्त हो गई।   जमानत बचाने के लिए 16.5 प्रतिशत मत लाना जरूरी.............   पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सात लोकसभा सीटों से 164 उम्मीदवार थे। तब विजेता व प्रतिद्वंदी उम्मीदवारों को छोड़कर तीन अन्य प्रत्याशी अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे थे। दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जमानत बचाने के लिए लोकसभा क्षेत्र में कुल हुए मतदान का छठा हिस्सा ( करीब 16.5 प्रतिशत ) वोट लेना होता है। इससे कम वोट मिलने पर प्रत्याशी की जमानत जब्त हो जाती है।   विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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Jun 5, 2024