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शहर के कई जगह पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं

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Sat, May 18, 2024 1:16 PM

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नई दिल्ली, 18 मई 2024  (यूटीएन)। भारतीय विज्ञान संस्थान ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि भारत के कुछ शहर अपनी जल आपूर्ति का कुप्रबंधन जारी रखते हैं तो उन्हें जल्द ही दक्षिण अफ्रीकी शहर केपटाउन से भी बदतर स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. दक्षिण अफ्रीकी शहर केपटाउन को 2015 से 2018 के बीच पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ा था. लंबे समय तक औसत से भी कम बारिश होने के कारण केपटाउन में यह स्थिति उत्पन्न हुई. कम बारिश के कारण केपटाउन में सूखा पड़ गया. इसके परिणामस्वरूप केपटाउन के जलाशयों में जल स्तर काफी नीचे चला गया था. मार्च 2023 में भारत की सिलिकॉन वैली से मशहूर शहर बेंगलुरु को पानी की गंभीर कमी से जूझना पड़ा. 
 
*क्या है केपटाउन संकट*
दक्षिण अफ्रीकी शहर केपटाउन को 2015 से 2018 के बीच पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ा था. इसका मुख्य कारण शहर के जलाशयों में पानी का निम्न स्तर था. पानी का जलस्तर इतना नीचे पहुंच गया था कि शहर की जल आपूर्ति पूरी तरह से ठप्प हो सकता था.
 
मजबूरन अधिकारियों को सख्त वाटर-रेशनिंग मेजर्स को लागू करना पड़ा. केपटाउन की हालत इतनी गंभीर हो गई थी कि डे जीरो की आशंका उत्पन्न हो गई थी. पूरे पश्चिमी केपटाउन में सूखा पड़ गया. हालांकि, सितंबर 2018 के बाद चीजें बेहतर होने लगी और 2020 तक पानी की आपूर्ति सामान्य हो गई.
 
*बेंगलुरु में पानी की किल्लत के कारण*
बेंगलुरु में पानी संकट का मुख्य कारण कावेरी बेसिन में कम बारिश का होना है. शहर की कुल जल आपूर्ति का 60 प्रतिशत कावेरी बेसिन से होता है. लेकिन कम बारिश होने के कारण भूजल स्तर निचले स्तर पर पहुंच गया है. केपटाउन की तरह ही बेंगलुरु का जलस्तर भी अपने निम्न स्तर पर है. इसी इस तरह भी समझा जा सकता है कि जब केपटाउन में जल संकट था उस वक्त केपटाउन के थीवाटरस्क्लोफ बांध अपनी क्षमता का केवल 11.3 प्रतिशत ही भरा था. यही नहर केपटाउन शहर के लिए पानी का एकमात्र बड़ा स्त्रोत था. उसी तरह बेंगलुरु का केआरएस बांध अपनी क्षमता का 28 प्रतिशत से भी कम भरा है. कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार का कहना है कि शहर के 13,900 सरकारी बोरवेल में से 6900 सूख गए है. शहर के कई जगह पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से पानी  के टैंकरों पर निर्भर हैं. 
 
*राजस्थान के इन जिलों में हो सकती है पानी की किल्लत*
भूजल विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, अगले साल यानी 2025 तक राजस्थान के जयपुर, अजमेर, जोधपुर समेत तमाम बड़े शहरों में पानी बचेगा ही नहीं. राजस्थान में प्रति वर्ष बारिश और अन्य स्रोतों से जितना पानी रिचार्ज होता है उससे 5.49 बिलियन क्यूबिक मीटर ज्यादा पानी इस्तेमाल हो रहा है. यानी भविष्य  की बचत को आज ही खर्च किया जा रहा है.
केंद्रीय भू जल बोर्ड और राजस्थान के भूजल विभाग की डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स रिपोर्ट में जयपुर, अजमेर, जैसलमेर और जोधपुर में पानी की उपलब्धता का आकलन शून्य बताया गया है. मौजूदा हालात भी अच्छे नहीं हैं. भूजल विभाग के चीफ इंजीनियर सूरजभान सिंह का कहना है कि स्थिति काफी भयावह है. आने वाले दिनों में जल संकट और गंभीर होगी.
 
*संचय की तुलना में खपत ज्यादा*
2025 तक राजस्थान के इन शहरों में भूजल का गतिशील संसाधन शून्य हो जाएगा. यानी इन शहरों में जितना पानी संचय हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा हम जमीन से निकाल रहे हैं. इससे राजस्थान के 302 ब्लॉक्स में से 219 खतरे के निशान से बहुत ऊपर जा चुके हैं. इन्हें अति दोहन की श्रेणी में रखा गया है. शेष में से 22 को क्रिटिकल और 20 को सेमी क्रिटिकल श्रेणी है. सिर्फ 38 ब्लॉक्स जल उपलब्धता के लिहाज से सुरक्षित बताए गए हैं.
 
*गंभीर होती स्थिति*
भूजल सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 40 साल में राजस्थान की स्थिति एकदम बदल गई है. साल 1984 में राजस्थान में 236 ब्लॉक्स में से 203 पीने के लिए सुरक्षित थे. सिर्फ 10 सेमी क्रिटिकल, 11 क्रिटिकल और 12 अति-दोहन वाले थे. उस समय राजस्थान में जितना पानी रिचार्ज होता था उसका 35.75% ही इस्तेमाल होता था. लेकिन 2023 में जितना रिचार्ज होता है, उसका 148.77% खपत हो रहा है.
 
*क्यों बन रही है ये स्थिति?*
कम बारिश के अलावा तेजी और अनियोजित तरीके से हो रहे शहरीकरण जल संकट का एक प्रमुख कारण है. जैसे-जैसे शहर का विस्तार होता है. जल आपूर्ति के लिए बुनियादी ढांचे यानी जलाशय, पाइपलाइन और प्लांट की मांग को व्यवस्थित करने में दिकक्तें आने लगती हैं. इस कारण पानी का रिसाव और अन्य तरह की समस्याएं शुरू हो जाती हैं.
 
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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