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○ पीएम ने लॉन्च किया यू-विन पोर्टल, स्वास्थ्य क्षेत्र में 12,850 करोड़ की परियोजनाओं का शुभारंभ
○ 500 साल बाद रामलला पहली बार अपने अयोध्या मंदिर में मनाएंगे दिवाली': प्रधानमंत्री
○ स्पेन अपनी ऊर्जा सुरक्षा और हरित संक्रमण लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए भारत के साथ मिलकर काम कर सकता है
○ रंगोली प्रतियोगिता के जरिये प्रदूषण मुक्त दीपावली का आह्वान व संकल्प
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डीयू में शिक्षकों के वरिष्ठता क्रममें एकरूपता न होने पर वीसी ने कमेटी गठित की
क्योंकि दिल्ली विश्वविद्यालय में एक दशक बाद स्थायी प्रोफेसर पदों पर नियुक्ति हुई है
नई दिल्ली, 10 जुलाई 2024 (यूटीएन)। दिल्ली विश्वविद्यालय के विभागों व उससे संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों की सीनियरिटी को लेकर वाइस चांसलर के निर्देश पर कुलसचिव ने एक कमेटी गठित की है । डीन ऑफ कॉलेजिज को कमेटी का चेयरपर्सन बनाया गया है । इसके अलावा प्रोफेसर श्रीप्रकाश सिंह (निदेशक दक्षिणी परिसर ) प्रो.रमा शर्मा ( प्रिंसिपल हंसराज कॉलेज ) प्रो.अरुण कुमार अत्री ( प्रिंसिपल भगतसिंह कॉलेज ) प्रो.अजय अरोड़ा , ( प्रिंसिपल रामजस कॉलेज ) व डिप्टी रजिस्ट्रार , कॉलेजिज ( मेम्बर सेक्रेटरी ) बनाए गए है । कमेटी का कार्य हाल ही में सहायक प्रोफेसर के पदों पर हुई लगभग 4600 स्थायी नियुक्ति के बाद कॉलेजों में सीनियरिटी को लेकर विवाद हो रहा था ।
एससी, एसटी व ओबीसी के शिक्षकों को जहाँ बैकलॉग व शार्टफाल के पदों को भरने के बाद सीनियर माना जाना चाहिए था कॉलेज उन्हें जूनियर बना रहे थें , शिक्षकों की सीनियरिटी लिस्ट कैसे बनाया जाए , यह कमेटी गठित की गई है जो अपनी रिपोर्ट 31 जुलाई 2024 तक देगी । फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गठित कमेटी में एससी, एसटी व ओबीसी कोटे के शिक्षकों को प्रतिनिधित्व न दिए जाने पर गहरा रोष व्यक्त करते हुए कमेटी में आरक्षित श्रेणी के सदस्यों को रखे जाने की मांग की है ताकि इन वर्गो के साथ सही से सामाजिक न्याय हो । उन्होंने कमेटी में संसदीय समिति , डीओपीटी व एससी/एसटी कमीशन , ओबीसी कमीशन से भी सदस्यों को रखे जाने की मांग की । फोरम के चेयरमैन डॉ.हंसराज सुमन ने कमेटी को सुझाव दिए है और कहा है कि कमेटी जब भी सीनियरिटी लिस्ट तैयार करे तो यह देखें कि रोस्टर में यह पद किस वर्ष आया तथा पद बैकलॉग का है या शॉटफाल है । क्योंकि दिल्ली विश्वविद्यालय में एक दशक बाद स्थायी प्रोफेसर पदों पर नियुक्ति हुई है ।
इनमें एससी/एसटी व ओबीसी के ज्यादातर उन लोगों की सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति हुई है जो पिछले एक दशक से अस्थाई तौर पर पढ़ा रहे थे। इनमें कुछ नियुक्तियाँ कॉलेजों के रोस्टर रजिस्टर में बैकलॉग पद आने पर विज्ञापित करके की गई हैं। विभिन्न विभागों और कॉलेजों में ये नियुक्तियाँ विश्वविद्यालय द्वारा बनाई गई चयन समिति के माध्यम से की गई थीं । लेकिन चयन समिति ने मिनट्स बनाते समय भारत सरकार की आरक्षण नीति के अंतर्गत भर्ती नीति व कॉलेजों द्वारा बनाए गए रोस्टर के अंतर्गत श्रेणीवार चयनित अभ्यर्थियों का नाम नहीं रखा। परिणामस्वरूप कॉलेजों में सहायक प्रोफेसरों के वरिष्ठता क्रम (Seniority) को लेकर एकरूपता नहीं है । बता दे कि वरिष्ठता क्रम को लेकर कॉलेजों में वाद-विवाद खड़ा हो गया था । शिक्षकों में तनाव की स्थिति बन गई है। इसमें आरक्षित वर्ग के शिक्षकों के साथ अधिक भेदभाव किया जा रहा है।
जूनियर शिक्षकों को वरीयता देकर वरिष्ठ बनाया जा रहा है। आरक्षित वर्गो के सहायक प्रोफेसरों के साथ हो रहे इस भेदभाव को लेकर फोरम आफ एकेडमिक फॉर सोशल जस्टिस ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, एससी/एसटी के कल्याणार्थ संसदीय समिति, शिक्षा मंत्रालय व यूजीसी व विश्वविद्यालय प्रशासन से गुहार लगाई थीं तथा अनियमितता की जाँच कराने की मांग की थीं । इस अनियमितता को देखकर ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने कमेटी गठित की है । डॉ. हंसराज सुमन ने कमेटी सदस्यों को बताया है कि कॉलेजों द्वारा सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति करते समय चयन समिति में बतौर सदस्य एससी/एसटी व ओबीसी के ऑब्जर्वर को चयन समिति के मिनट्स बनाते समय रोस्टर रजिस्टर देखना चाहिए था तथा बैकलॉग पदों की क्रमवार वास्तविक स्थिति देखनी चाहिए थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया जिसके कारण यह समस्या पैदा हुई है ।
यदि एससी/एसटी के पदों का बैकलॉग था तो चयन समिति को मिनट्स बनाते समय नियमानुसार पहले एससी /एसटी के चयनित प्राध्यापक को क्रम में रखना चाहिए था। उसके बाद तीसरे स्थान पर ओबीसी के चयनित प्राध्यापकों को रखा जाता है। ज्ञात हो कि ओबीसी आरक्षण विश्वविद्यालयों / उच्च शिक्षण संस्थानों / कॉलेजों में सन् 2007 से लागू हुआ था । कॉलेजों को पहले ट्रांच के इन पदों को 2010 में भर लेना चाहिए था लेकिन इन पदों को नहीं भरने के कारण ओबीसी का बैकलॉग बढ़ता रहा। सन् 2010 के बाद अब जाकर इन पदों पर नियुक्ति की गई, इसलिए वरिष्ठता क्रम में उन्हें पहले रखा जाएगा। वरिष्ठता की सूची में भी उन्हें वरिष्ठ ही माना जाएगा।
लेकिन कॉलेजों में चयन समिति ने मिनट्स बनाते समय नियमों की अनदेखी की और सामान्य वर्ग को वरिष्ठता क्रम में पहले रखा, उसके बाद ओबीसी, एससी, एसटी, पीडब्ल्यूडी व ईडब्ल्यूएस को क्रमवार सूची में रखा गया । जबकि होना यह चाहिए था जिन कॉलेजों में एससी/एसटी का बैकलॉग है वहाँ पहले एससी/एसटी वरिष्ठता में आएंगे। जहाँ ओबीसी का बैकलॉग है, यानि 2010 के बाद कॉलेजों ने पदों को विज्ञापित कर नियुक्ति की है वहाँ ओबीसी के प्राध्यापकों को वरिष्ठतम माना जाएगा। उसके बाद एससी/एसटी, सामान्य वर्ग, पीडब्ल्यूडी व ईडब्ल्यूएस को रखा जाएगा। अब देखना यह है कि कमेटी किस तरह से सीनियरिटी लिस्ट बनाती है क्योंकि इसमें कोई भी सदस्य आरक्षित श्रेणी से नहीं है ।
डॉ. हंसराज सुमन ने कमेटी के सदस्यों को यह भी बताया कि चयन समिति ने वरीयता देने में आरक्षित वर्गों के प्राध्यापकों के साथ घोर अन्याय किया है। उन्होंने आगे बताया है कि सहायक प्रोफेसर की चयन समिति ने मिनट्स बनाते समय पहले सामान्य वर्ग को रखा है उसके बाद ओबीसी फिर एससी/एसटी, पीडब्ल्यूडी व ईडब्ल्यूएस को क्रम में रखा है। जब की वैधानिक रूप से यह गलत है। उनका कहना है कि केंद्र सरकार की आरक्षण नीति के अनुसार किसी भी चयन समिति को मिनट्स बनाते समय रोस्टर रजिस्टर व बैकलॉग पदों को चिन्हित कर पहले एससी/एसटी फिर ओबीसी के चयनित प्राध्यापकों को क्रमशः रखा जाता है, उसके बाद सामान्य वर्ग और अन्य श्रेणी के प्राध्यापकों को रखा जाता है।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
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