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भक्तों की हर मनोकामना को पूरी करती है झंडेवाली मां

दिल्ली के टूरिस्ट प्लेस हो या कोई धार्मिक जगह, पूरी दुनिया में यहां की हर एक जगह फेमस है।

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Wed, Oct 9, 2024 3:39 AM

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नई दिल्ली, 09 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। दिल्ली के टूरिस्ट प्लेस हो या कोई धार्मिक जगह, पूरी दुनिया में यहां की हर एक जगह फेमस है। देश- दुनिया से लोग राजधानी दिल्ली के इतिहास को जानने के लिए घूमने आते हैं। दिल्ली एक ऐसा शहर, जहां हर त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसे में यहां नवरात्रि का त्योहार भी काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। बता दें, दिल्ली में माता रानी के कई प्राचीन मंदिर मौजूद हैं, इन्ही में से एक है राजधानी के करोल बाग के पास स्थित 'झंडेवाला देवी मंदिर'। जिसकी काफी मान्यता है। कहा जाता है, जो भी भक्त माता के दर्शन यहां आते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है।  राजधानी दिल्ली करोल बाग स्थित झंडेवाला मंदिर झंडेवाली देवी को समर्पित एक सिद्धपीठ है। अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण राज्य सरकार ने माता के इस मंदिर को दिल्ली के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में इसे शामिल किया है। बता दें, पूरे साल मंदिर में देश- विदेश से लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। वहीं नवरात्रों पर पूरे मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है, मंदिर का नजारा देखने लायक होता है। 
 
झंडेवाला देवी मंदिर का इतिहास करीब 200 साल पुराना है। आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली की हरी भरी पहाड़ियां और घने जंगल हुआ करते थे। इस मंदिर में माता की मूर्ति अष्टकोणीय आकार में मौजूद है। यहां एक गुफा भी है, जहां मां के मूल प्रतिमा के दर्शन होते हैं। खुदाई में प्राप्त मूर्ति जिस स्थान पर स्थापित है वह स्थान गुफा वाली माता के नाम से जाना जाता है । खुदाई के दौरान गुफा वाली माता की मूर्ति खंडित हो गई थी, जिसके बाद उनके हाथों के स्थान पर चांदी के हाथ लगाए गए हैं। गए हैं। राजधानी दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवाला मंदिर झंडेवाली देवी को समर्पित एक सिद्धपीठ है । अपने धाार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व के कारण राज्य सरकार ने भी दिल्ली के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में इसे शामिल किया है । वर्ष भर बिना किसी भेदभाव के लाखों की संख्या में भक़्त लोग देश विदेश से दर्शन करने यहां आते हैं । नवरात्रों में यहां उमडती भक़्तजनों की भीड तो स्वयं में ही दर्शनीय बन जाती है । मंदिर में आने वाला प्रत्येक भक़्त यहां से मानसिक शांति और आनंद की अनुभूति लेकर ही जाता है ।
 
प्रत्येक भक़्त को आशीर्वाद के रूप में देवी का प्रसाद मिलता है । झंडेवाला मंदिर का धाार्मिक ही नही ऐतिहासिक महत्व भी है । झंडेवाला मंदिर का इतिहास 18वाीं सदी के उत्तरार्ध से प्रारंभ होता है । आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली पर्वत श्रॄंखला की हरी भरी पहाडियाँ, घने वन और कलकल करते चश्में बहते थे । अनेक पशु पक्षियों का यह बसेरा था । इस शांत और रमणीय स्थान पर आसपास के निवासी सैर करने आया करते थे । ऐसे ही लोगों में चांदनी चौक के एक प्रसिद्ध कपडा व्यपारी बद्री दास भी थे । बद्री दास धार्मिक वॄत्ति के व्यक्ति थे और वैष्णो देवी के भक़्त थे । वे नियमित रूप से इस पहाडी स्थान पर सैर करने आते थे और ध्यान में लीन हो जाते थे । एक बार ध्यान में लीन बद्री दास को ऐसी अनुभूति हुई कि वही निकट ही एक चश्में के पास स्थित एक गुफा में कोई प्राचीन मंदिर दबा हुआ है । पुनः एक दिन सपने में इसी क्षेत्र में उन्हें एक मंदिर दिखाई पडा और उन्हें लगा की कोई अदृश्य शक्ति उन्हें इस मंदिर को खोज निकालने के लिए प्रेरित कर रही है ।
 
इस अनोखी अनुभूति के बाद बद्री दास ने उस स्थान को खोजने में ध्यान लगा दिया और एक दिन स्वप्न में दिखाई दिए झरने के पास खुदाई करते समय गहरी गुफा में एक मूर्ति दिखाई दी । यह एक देवी की मूर्ति थी परंतु खुदाई में मूर्ति के हाथ खंडित हो गए इसलिए उन्होंने खुदाई में प्राप्त मूर्ति को उस के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया और ठीक उसके ऊपर देवी की एक नयी मूर्ति स्थापित कर उसकी विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करवायी । इस अवसर पर मंदिर के ऊपर एक बहुत बडा ध्वज लगाया गया जो पहाडी पर स्थित होने के कारण दूर - दूर तक दिखाई देता था जिसके कारण कालान्तर में यह मंदिर झंडेवाला मंदिर के नाम से विख्यात हो गया । खुदाई में प्राप्त मूर्ति जिस स्थान पर स्थापित है वह स्थान गुफा वाली माता के नाम से विख्यात हो गया । गुफा वाली देवी जी के खंडित हाथों के स्थान पर चांदी के हाथ लगाये गये और इस मूर्ति की पूजा भी पूर्ण विधि विधान से की जाने लगी । वही पर खुदाई में प्राप्त एक चट्टान के ऊपर बने शिवलिंग को भी स्थापित किया गया है जिस पर नाग - नागिन का जोडा उकेरा हुआ है ।
 
यह प्राचीन गुफा वाली माता और शिवलिंग भी भक़्तों की श्रद्धा का केंद्र है । इसी गुफा में जगाई गई ज्योतियाँ भी लगभग आठ दशकों से अखंड रूप में जल रही है । मंदिर की स्थापना के साथ ही इस स्थान पर भक़्तों का आना जाना प्रारंभ हो गया और धीरे - धीरे समय के साथ मंदिर का स्वरूप भी बदलता गया । बद्री दास जी ने जोकि अब तक भगत बद्री दास के नाम से विख्यात हो चुके थे, आसपास की जमीनों को मंदिर के विस्तार के लिए खरीद लिया । भगत बद्री दास ने अपना शेष जीवन माँ झंडेवाली की सेवा में ही समर्पित कर दिया । समय बीतने के साथ ही मंदिर का स्वरूप बदलने लगा और धीरे - धीरे हरी भरी अरावली की पहाडियों पर स्थान - स्थान पर भवन इमारतें बनने लगी । भारत विभाजन के समय शरणार्थियों के रूप में राजधानी दिल्ली में आने वाले लोग जहां तहां बस गए जिससे इस स्थान का स्वरूप भी बदल गया । वर्तमान में यह स्थान राजधानी के केंद्र में स्थित अनेक प्रसिद्ध एवं अति व्यस्त व्यापारिक केंद्रो से घिरा हुआ है जिसमें पहाडगंज, करोल बाग, सदर बाजार, झंडेवालान आदि उल्लेखनीय हैं ।
 
भगत बद्री दास जी के स्वर्गवास के पश्चात उनके सुपुत्र श्रीरामजी दास और फिर पौत्र श्याम सुंदर ने मंदिर के दायित्व को संभाला और अनेक विकास कार्य इस स्थान पर करवाये । श्याम सुंदर ने वर्ष 1944 में मंदिर की व्यवस्थाओं और इससे जुडे कार्यक्रमों को सुंदर ढंग से चलाए रखने के लिए एक सोसायटी का गठन कर उसे विधिवत कानूनी स्वरूप प्रदान किया और सोसायटी का नाम बद्री भगत झंडेवाला टेम्पल सोसायटी रखा गया । इस सोसायटी के गठन के बाद झंडेवाला मंदिर का प्रबन्ध, सभी चल अचल संपत्तियाँ और कार्यक्रम इस समिति के अधीन हो गए । वर्तमान में झंडेवाला देवी मंदिर एक सिद्ध धार्मिक प्रतिष्ठान होने के साथ - साथ सामाजिक एवं सेवा कार्यों का एक बहुत बडा संस्थान बन चुका है जिसके अंतर्गत जनहित के अनेक सेवा प्रकल्प चल रहे हैं । वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों के अतिरिक़्त सभी प्रसिद्ध धार्मिक उत्सवों का आयोजन मंदिर में बहुत विशाल स्तर पर किया जाता है जिसमें लाखों भक़्त सम्मिलित होते हैं । जैसे - जैसे मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या बढती गयी सोसायटी ने अपने भक़्तों के प्रति सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए अनेक सेवा प्रकल्प प्रारंभ किये ।
 
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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