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विश्व विकलांगता दिवस 2024: समावेशी भविष्य के लिए नेतृत्व और समावेशन पर केंद्रित ध्यान

विकलांग व्यक्ति दुनिया की 16% जनसंख्या का हिस्सा हैं, फिर भी उन्हें कलंक, भेदभाव, और शिक्षा या रोजगार में सीमित अवसरों का सामना करना पड़ता है

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Publised at

Tue, Dec 3, 2024 7:12 AM

by

Pradeep Jain

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नई दिल्ली,03 दिसंबर 2024 (यूटीएन)। विकलांग व्यक्तियों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर साल 3 दिसंबर को मनाया जाता है। इस वर्ष का विषय है  "एक समावेशी और टिकाऊ भविष्य के लिए विकलांग व्यक्तियों के नेतृत्व को बढ़ावा देना।" यह विषय विकलांग व्यक्तियों द्वारा सभी के लिए अधिक समावेशी और टिकाऊ दुनिया बनाने में निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देता है। यह निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में विकलांग व्यक्तियों की भागीदारी के महत्व पर भी जोर देता है जो उनके जीवन को प्रभावित करते हैं। इस वर्ष का विषय वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और नीतिगत संदर्भ को दर्शाता है, विशेष रूप से भविष्य के लिए समझौता और सामाजिक विकास के लिए आगामी 2025 विश्व शिखर सम्मेलन, और 2030 एजेंडा को प्राप्त करने के लिए गति बनाने की आवश्यकता। यह विषय वैश्विक से लेकर स्थानीय तक सभी प्रयासों में विकलांग व्यक्तियों की नेतृत्व भूमिका की केंद्रीयता को बढ़ाने का प्रयास करता है। इस वर्ष का थीम विकलांग व्यक्तियों को नेतृत्व करने और समाज, विशेष रूप से स्वास्थ्य क्षेत्र, की प्रगति में योगदान करने का अधिकार देने के लिए प्रेरित करता है।
 
विकलांग व्यक्ति दुनिया की 16% जनसंख्या का हिस्सा हैं, फिर भी उन्हें कलंक, भेदभाव, और शिक्षा या रोजगार में सीमित अवसरों का सामना करना पड़ता है। ये चुनौतियाँ उन्हें नेतृत्व भूमिकाओं में पहुंचने से रोकती हैं, खासकर स्वास्थ्य क्षेत्र में। विश्व स्वास्थ्य संगठन पर चर्चा करते हुए, यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि नेतृत्व भूमिकाओं में विकलांग व्यक्तियों का समावेश वैश्विक स्वास्थ्य एजेंडों को प्राप्त करने और स्वास्थ्य समानता और समावेशी समाजों को बढ़ावा देने के लिए बहुत जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का समावेशन के लिए कार्य: विश्व स्वास्थ्य संगठन ने "विकलांग व्यक्तियों के लिए स्वास्थ्य समानता: एक कार्य गाइड" लॉन्च किया है। यह एक रणनीतिक उपकरण है जो स्वास्थ्य मंत्रालयों को विकलांगता समावेशन को स्वास्थ्य शासकीय और योजना में एकीकृत करने में मदद कर सकता है, जिससे विकलांग व्यक्तियों से संबंधित निर्णयों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
 
मुख्य लक्ष्य और कार्रवाई का आह्वान
जीवन के सभी क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों के नेतृत्व को बढ़ावा देना। समाज के सभी पहलुओं में विकलांग व्यक्तियों का समावेश सुनिश्चित करना। निर्णय लेने की प्रक्रिया में विकलांग व्यक्तियों की भागीदारी बढ़ाना। विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना। विकलांग व्यक्तियों की उपलब्धियों का जश्न मनाना। आईडीपीडी 2024 को दुनिया भर में कई कार्यक्रमों के साथ मनाया जाएगा। मुख्य कार्यक्रम न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित किया जाएगा। इस कार्यक्रम में विकलांग व्यक्ति, सरकारी प्रतिनिधि और नागरिक समाज संगठन एक साथ आएंगे। यह विकलांग व्यक्तियों के योगदान का जश्न मनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह विकलांग व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर विचार करने का भी समय है। 
 
*विकलांगताओं के प्रकार:*
शारीरिक विकलांगताएँ: गतिशीलता या शारीरिक कार्य क्षमता में हानि। संवेदी विकलांगताएँ: दृष्टि, श्रवण, या दोनों में प्रभाव। बौद्धिक और विकासात्मक विकलांगताएँ : सीखने, दैनिक जीवन, और जिम्मेदारियों को पूरा करने में बाधाएं। मानसिक स्वास्थ्य स्थितियाँ: मानसिक विकार जो कार्यात्मक और भावनात्मक समस्याएं उत्पन्न करते हैं। दीर्घकालिक बीमारियाँ: ऐसी बीमारियाँ जो स्थायी होती हैं और शारीरिक या मानसिक विकलांगता उत्पन्न करती हैं। 
 
भारत में विकलांगता समावेशन के लिए नीतियाँ: भारत ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के लिए कई कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण प्रगति की है: विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016: विकलांगता की परिभाषा को 21 श्रेणियों तक विस्तारित करता है और सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 4% आरक्षण अनिवार्य करता है। सुलभ भारत अभियान: भौतिक, डिजिटल और परिवहन अवसंरचनाओं तक पहुँच को बढ़ावा देता है। राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम: ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी और बौद्धिक विकलांगता वाले व्यक्तियों के जीवन यापन में निवेश करता है। विकलांगता पेंशन योजनाएँ: गंभीर विकलांगताओं वाले व्यक्तियों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है। समावेशी शिक्षा कार्यक्रम: विकलांग बच्चों के लिए समान शिक्षा अवसर प्रदान करता है।
 
*वकालतकर्ताओं के संदेश*
डॉ. सतेन्द्र सिंह, विश्वविद्यालय कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज और गुरु तेग बहादुर अस्पताल के निदेशक और विकलांगता वकालत के क्षेत्र में अग्रणी, कहते हैं: "हमें विकलांगता के चिकित्सा मॉडल से मानवाधिकार आधारित दृष्टिकोण की ओर बदलाव करना चाहिए, स्वास्थ्य शिक्षा में विकलांगता अधिकारों को समावेशित करना चाहिए। 2024 में एनएमसी द्वारा राष्ट्रीय चिकित्सा पाठ्यक्रम से विकलांगता कौशल को हटाना एक महत्वपूर्ण कदम पीछे की ओर है। गौतम डोंगरे, राष्ट्रीय थैलेसीमिया संगठन के सचिव, कहते हैं: सिकल सेल रोगियों को 14 मार्च 2024 को जारी किए गए संशोधित मानदंडों के तहत विकलांगता कार्ड के लिए पात्र माना गया है, लेकिन कई राज्य इन अद्यतन दिशानिर्देशों से अनजान हैं। प्रेम रूप अल्वा, हीमॉफिलिया फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, कहते हैं: हालाँकि, सामाजिक न्याय मंत्रालय ने रक्त विकारों को विकलांगता के रूप में मान्यता दी है, इनका अन्य विकलांगताओं की तुलना में अलग तरीके से उपचार किया जाता है। 
 
श्रीमती शोभा तुली, थैलेसीमिक्स इंडिया की संस्थापक सदस्य और सचिव, कहती हैं: "थैलेसीमिया, एक अदृश्य विकलांगता के रूप में, निरंतर रक्त आधान की आवश्यकता होती है। सरकार ने विशिष्ट विकलांगता पहचान पत्रकार्ड जारी करने की प्रक्रिया को सरल बनाने में सकारात्मक कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी जागरूकता और कार्यान्वयन में चुनौतियाँ हैं। क्रियावली का आह्वान: यह विश्व विकलांगता दिवस 2024 विकलांग व्यक्तियों के लिए सभी रूपों में अन्याय और असमानताओं के खिलाफ खड़े होने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। नेतृत्व और निर्णय-निर्माण में उनके योगदान को बढ़ावा देकर हम एक समावेशी और सतत नागरिकता की ओर बढ़ सकते हैं। सरकारों, संगठनों और समुदायों को एक साथ मिलकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार तक समान पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि कोई भी पीछे न छूटे।
 
*अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता दिवस का इतिहास*
मौजूदा जानकारी के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा साल 1992 में की गई थी। यह तब हुआ जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 47/3 संकल्प पारित कर इसमें विकलांग व्यक्ति के अधिकारों के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस आयोजित करने की पहल की। इसका दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य विकलांगों के अधिकार, उन्हें समान अधिकार दिलाने, उनकी शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, और सामाजिक समावेशन हेतु बढ़ावा देना रहा। इसे प्रभावी बनाने के लिए हर साल एक थीम सुनिश्चित की जाती है, जैसे इस बार भी कई गई है।
हमें यह भी समझना ज़रूरी है कि विकलांगता का न तो कोई एक रूप होता है और न ही कोई एक परिभाषा। विकलांगता को समझने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने हर तरह के विचार को एक किनारे कर सामने वाले के अनुभव को सुनें और वहां से सीखें।
 
विकलांगों के प्रति सामाजिक सोच को बदलने और उनके जीवन के तौर-तरीकों को और बेहतर बनाने के लिये एवं उनके कल्याण की योजनाओं को लागू करने के लिये इस दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है। इससे न केवल सरकारें बल्कि आम जनता में भी विकलांगों के प्रति जागरूकता का माहौल बना है। समाज में उनके आत्मसम्मान, प्रतिभा विकास, शिक्षा, सेहत और अधिकारों को सुधारने के लिये और उनकी सहायता के लिये एक साथ होने की जरूरत है। विकलांगता के मुद्दे पर पूरे विश्व की समझ को नया आयाम देने एवं इनके प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण को दूर करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विकलांगों को विकलांग नहीं कहकर दिव्यांग कहने का प्रचलन शुरू कर एक नयी सोच को जन्म दिया है। हमें इस बिरादरी को जीवन की मुस्कुराहट देनी है, न कि हेय समझना है। विकलांगता एक ऐसी परिस्थिति है जिससे हम चाह कर भी पीछा नहीं छुड़ा सकते। एक आम आदमी छोटी-छोटी बातों पर झुंझला उठता है तो जरा सोचिये उन बदकिस्मत लोगों का जिनका खुद का शरीर उनका साथ छोड़ देता है, फिर भी जीना कैसे है, कोई इनसे सीखे। कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने विकलांगता को अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि अपनी ताकत बनाया है। ऐसे लोगों ने विकलांगता को अभिशाप नहीं, वरदान साबित किया है।
 
पूरी दुनिया में एक अरब लोग विकलांगता के शिकार हैं। अधिकांश देशों में हर दस व्यक्तियों में से एक व्यक्ति शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग हैं। इनमें कुछ संवेदनाविहीन व्यक्ति भी हैं। विकलांगता एक ऐसा शब्द है, जो किसी को भी शारीरिक, मानसिक और उसके बौद्धिक विकास में अवरोध पैदा करता है। ऐसे व्यक्तियों को समाज में अलग ही नजर से देखा जाता है। यह शर्म की बात है कि हम जब भी समाज के विषय में विचार करते हैं, तो सामान्य नागरिकों के बारे में ही सोचते हैं। उनकी ही जिंदगी को हमारी जिंदगी का हिस्सा मानते हैं। इसमें हम विकलांगों को छोड़ देते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? ऐसा किस संविधान में लिखा है कि ये दुनिया केवल पूर्ण मनुष्यों के लिए ही बनी है? बाकी वे लोग जो एक साधारण इंसान की तरह व्यवहार नहीं कर सकते, उन्हें अलग क्यों रखा जाता है? क्या इन लोगों के लिए यह दुनिया नहीं है? इन विकलांगों में सबसे बड़ी बात यही होती है कि ये स्वयं को कभी लाचार नहीं मानते। वे यही चाहते हैं कि उन्हें अक्षम न माना जाए। उनसे सामान्य तरह से व्यवहार किया जाए। पर क्या यह संभव है?
 
प्रश्न यह भी है कि विकलांग लोगों को बेसहारा और अछूत क्यों समझा जाता है? उनकी भी दो आँखें, दो कान, दो हाथ और दो पैर हैं और अगर इनमें से अगर कोई अंग काम नहीं करता तो इसमें इनकी क्या गलती? यह तो नसीब का खेल है। इंसान तो फिर भी कहलायेंगे, जानवर नहीं। फिर इनके साथ जानवरों जैसा बर्ताव कहां तक उचित है? किसी के पास पैसे की कमी है, किसी के पास खुशियों की, किसी के पास काम की तो अगर वैसे ही इनके शारीरिक, मानसिक, ऐन्द्रिक या बौद्धिक विकास में किसी तरह की कमी है तो क्या हुआ है? कमी तो सब में कुछ-न-कुछ है ही, तो इन्हें अलग नजराें से क्यों देखा जाए? परिपूर्ण यानी सामान्य मनुष्य समाज की यह विडम्बना है कि वे अपंग एवं विकलांग लोगों को हेय की दृष्टि से देखते हैं। लेकिन विकलांग लोगों से हम मुंह नहीं चुरा सकते क्योंकि आज भी कहीं-न-कहीं हम जैसे इन्हें हीन भावना का शिकार बना रहे हैं, उनकी कमजोरी का मजाक उड़ा कर उन्हें और कमजोर बना रहे हैं। उन्हें दया से देखने के बजाय उनकी मदद करें, आखिर उन्हें भी जीने का पूरा हक है और यह तभी मुमकिन है जब आम आदमी इन्हें आम बनने दें। जीवन में सदा अनुकूलता ही रहेगी, यह मानकर नहीं चलना चाहिए। परिस्थितियां भिन्न-भिन्न होती हैं और आदमी को भिन्न-भिन्न परिस्थितियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
 
कहते हैं जब सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं तो भगवान एक खिड़की खोल देता है, लेकिन अक्सर हम बंद हुए दरवाजे की ओर इतनी देर तक देखते रह जाते हैं कि खुली हुई खिड़की की ओर हमारी दृष्टि भी नहीं जाती। ऐसी परिस्थिति में जो अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव को संभव बना देते हैं, वो अमर हो जाते हैं। दृढ़ संकल्प वह महान शक्ति है जो मानव की आंतरिक शक्तियों को विकसित कर प्रगति पथ पर सफलता की इबारत लिखती है। मनुष्य के मजबूत इरादे दृष्टि दोष, मूक तथा बधिरता को भी परास्त कर देते हैं। अनगिनत लोगों की प्रेरणास्रोत, नारी जाति का गौरव मिस हेलेन केलर शरीर से अपंग थी, पर मन से समर्थ महिला थीं। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ने दृष्टिबाधिता, मूक तथा बधिरता को पराजित कर नई प्रेरणा शक्ति को जन्म दिया। सुलिवान उनकी शिक्षिका ही नही, वरन् जीवन संगनी जैसे थीं। उनकी सहायता से ही हेलेन केलर ने टालस्टाय, कार्लमार्क्स, नीत्शे, रविन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गाँधी और अरस्तू जैसे विचारकों के साहित्य को पढ़ा।
 
हेलेन केलर ने ब्रेल लिपि में कई पुस्तकों का अनुवाद किया और मौलिक ग्रंथ भी लिखे। उनके द्वारा लिखित आत्मकथा ‘मेरी जीवन कहानी’ संसार की 50 भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। अल्प आयु में ही पिता की मृत्यु हो जाने पर प्रसिद्ध विचारक मार्कट्वेन ने कहा कि, केलर मेरी इच्छा है कि तुम्हारी पढ़ाई के लिए अपने मित्रों से कुछ धन एकत्रित करूँ। केलर के स्वाभिमान को धक्का लगा। सहज होते हुए मृदुल स्वर में उन्हाेंने मार्कट्वेन से कहा कि यदि आप चन्दा करना चाहते हैं तो मुझ जैसे विकलांग बच्चों के लिए कीजिए, मेरे लिए नहीं। एक बार हेलेन केलर ने एक चाय पार्टी का आयोजन रखा, वहाँ उपस्थित लोगों को उन्होंने विकलांग लोगों की मदद की बात समझाई। चन्द मिनटों में हजारों डॉलर सेवा के लिए एकत्र हो गया। हेलेन केलर इस धन को लेकर साहित्यकार विचारक मार्कट्वेन के पास गईं और कहा कि इस धन को भी आप सहायता कोष में जमा कर लीजिये। इतना सुनते ही मार्कट्वेन के मुख से निकला, संसार का अद्भुत आश्चर्य। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि हेलेन केलर संसार का महानतम आश्चर्य हैं।
 
स्टीफन होकिंग का नाम भी दुनिया में एक जाना-पहचाना नाम है। चाहे वह कोई स्कूल का छात्र हो, या फिर वैज्ञानिक, सभी इन्हें जानते हैं। उन्हें जानने का केवल एक ही कारण है कि वे विकलांग होते हुए भी आइंस्टाइन की तरह अपने व्यक्तित्व और वैज्ञानिक शोध के कारण हमेशा चर्चा में रहे। विज्ञान ने आज भले ही बहुत उन्नति कर ली हो, लगभग सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली हो किन्तु वे अभी भी सबसे खतरनाक शत्रु पर विजय पाने में असमर्थ है, वह शत्रु है मनुष्य की उदासीनता। विकलांग लोगों के प्रति जन साधारण की उदासीनता मानवता पर एक कलंक है।
 
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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