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देश में जन्मे 17 शावकों में से 12 सुरक्षित, भारत ने दुनिया को चौंकाया

एक-एक कर कई चीतों और शावकों की अलग-अलग कारणों से मौत हो गई

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Publised at

Sun, Sep 22, 2024 1:47 PM

by

Ujjwal Times News

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नई दिल्ली, 22 सितंबर 2024 (यूटीएन)। भारत में नए सिरे से चीतों की मौजूदगी को भले ही अभी सिर्फ दो साल हुए हैं लेकिन इस अवधि में देश ने चीतों के संरक्षण में ऐसी सफलता हासिल की है, जिससे न सिर्फ चीते देने वाले नामीबिया व दक्षिण अफ्रीका जैसे देश अचंभित हैं बल्कि दुनिया भर के वन्य विशेषज्ञ भी भौंचक्के हैं। यह सफलता देश में जन्मे 70 प्रतिशत से अधिक चीता शावकों को बचाने की है।


*चीता प्रोजेक्ट को शुरुआत में कई बड़े झटके लगे*
यह स्थिति तब है जब पूरी दुनिया में चीता शावकों की मृत्यु दर सबसे अधिक है। यानी जन्म लेने वाले सौ शावकों में से सिर्फ दस ही जीवित बचते हैं। इन दो सालों में देश में कुल 17 शावकों ने जन्म लिया जिनमें से 12 सुरक्षित हैं।
चीता प्रोजेक्ट को शुरुआत में कई बड़े झटके लगे। एक-एक कर कई चीतों और शावकों की अलग-अलग कारणों से मौत हो गई। इसके पीछे बड़ी वजह चीतों के रखरखाव को लेकर देश के पास अनुभव और शोध दोनों की कमी थी। भारतीय वन्यजीव संस्थानों व विशेषज्ञों ने इसे चुनौती के रूप में लिया।


*चीतों के संरक्षण को लेकर रुचि दिखाई*
चीता प्रोजेक्ट के दो साल पूरे होने पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की ओर जारी रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह से चीतों के संरक्षण को लेकर रुचि दिखाई गई उससे साफ है कि चीतों के संरक्षण में भी भारत महारत हासिल कर लेगा।


*चीता प्रोजेक्ट की शुरुआत सितंबर 2022 में हुई*
रिपोर्ट के मुताबिक प्रोजेक्ट के दो साल के अनुभव के आधार पर अब चीतों के रखने वाले दूसरे ठिकानों को तैयार किया जा रहा है। दूसरे ठिकाने के रूप में तैयार हो रहे मध्य प्रदेश के गांधी सागर अभयारण्य में उन सभी बातों को ध्यान में रखा जा रहा है जिन पर कूनो में नहीं रखा गया था। देश में चीता प्रोजेक्ट की शुरुआत सितंबर 2022 में नामीबिया से आठ चीते लाकर की गई थी। बाद में 12 चीतों की एक खेप फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से लाई गई थी।


*भारत की सरजमीं पर जन्मे कई शावक हुए वयस्क*
नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 20 चीतों में से अब तक आठ चीतों की मौत भले चीता प्रोजेक्ट के लिए बड़ा झटका रहा है लेकिन दूसरी तरफ भारतीय जमीं पर जन्मे शावकों की अठखेलियां पूरे प्रोजेक्ट में एक नई रोशनी भी भर रही है। जिनकी संख्या मौजूदा समय में 12 है। इनमें से कई शावक तो अब वयस्क होने के करीब है।


*मादा शावक डेढ़ साल में व्यस्क हो जाते है*
वैसे भी चीता का नर शावक करीब एक साल में और मादा शावक डेढ़ साल में वयस्क हो जाते है। इन चीता शावकों को प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की उम्मीद के तौर पर भी देखा जा रहा है क्योंकि इन सभी के सामने नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीतों की तरह जलवायु अनुकूलता नहीं होने जैसी चुनौती का कोई खतरा नहीं है। वह यहां की जलवायु में पूरी तरह से रचे-बसे होने के साथ-साथ तेजी से बढ़ भी रहे है।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और चीता प्रोजेक्ट से जुडे अधिकारियों की मानें तो चीता शावकों की इस प्रगति से न सिर्फ देश में इन्हें बसाने के प्रोजेक्ट को रोशनी मिल रही है, बल्कि दुनिया भर में इन वन्यजीवों को एक जगह से दूसरी जगह पर बसाने की उम्मीदें भी रोशन हो रही है।


*पांच शावक अकेले मादा चीता ज्वाला के*
मध्य प्रदेश के कूनो अभयारण्य में बसाए गए इन चीतों में मौजूदा समय में जो 12 शावक है, उनमें से आठ शावक नामीबिया से लाए गए दो मादा चीतों के है। इनमें पांच शावक अकेले मादा चीता ज्वाला के है, जबकि तीन मादा चीता आशा के हैं। वहीं दक्षिण अफ्रीका से लाए 12 चीतों में से मादा चीता गामिनी ने चार बच्चों को जन्म देकर इस प्रोजेक्ट में एक और नई खुशहाली लायी है।

विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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