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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के सौ साल देश और दुनिया में चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा

दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विजयादशमी उत्सव के साथ ही स्थापना दिवस भी मना रहा है

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Sun, Oct 13, 2024 2:32 PM

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नई दिल्ली, 13 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विजयादशमी उत्सव के साथ ही स्थापना दिवस भी मना रहा है. इसके साथ ही संघ अपने सौवें साल में प्रवेश कर चुका है. इस अवसर पर संघ मुख्‍यालय नागपुर में सरसंघचालक डॉक्टर मोहनराव भागवत का चर्चित विजयादशमी भाषण भी हुआ. आइए, देश और दुनिया भर का ध्यान खींचने वाले संघ के सौ साल के सफर के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1925 में विजयादशी के दिन पांच स्वंयसेवकों के साथ डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इसकी शुरुआत की थी। संघ के लाखों स्वयंसेवक हैं। संघ के मुताबिक ब्रिटेन, अमेरिका, फिनलैंड, मॉरीशस समेत 39 देशों में उसकी शाखा लगती है।इस सफर में तीन बार संघ पर बैन लगा। संघ प्रमुख को जेल तक जाना पड़ा।
 
साल 1919, पहले विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन ने ऑटोमन साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। अंग्रेजों ने तुर्की के खलीफा यानी मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक नेता को सत्ता से हटा दिया। इसका दुनियाभर के मुसलमानों ने विरोध किया। गुलाम भारत के मुसलमान भी अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर उतर गए। शौकत अली और मोहम्मद अली नाम के दो भाइयों ने लखनऊ में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसे नाम दिया गया खिलाफत आंदोलन। मकसद था- खलीफा को तुर्की के सिंहासन पर दोबारा बैठाना। जल्द ही देशभर के मुसलमान इस आंदोलन से जुड़ गए। ये वो दौर था जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हो चुका । पंजाब में मार्शल लॉ लगा हुआ था। देशभर में रौलेट एक्ट यानी बिना मुकदमा चलाए किसी को जेल में बंद करने की ब्रितानी हुकूमत की नीतियों का विरोध हो रहा था।
 
चार साल पहले साउथ अफ्रीका से लौटे महात्मा गांधी अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की तैयारी में जुटे थे। खिलाफत आंदोलन को उन्होंने एक मौके के रूप में देखा कि इसके जरिए हिंदुओं और मुसलमानों को एक मंच पर लाया जा सकता है। गांधी ने एक नारा दिया- ‘जिस तरह हिंदुओं के लिए गाय पूज्य है, उसी तरह मुसलमानों के लिए खलीफा।’ डॉक्टरी पढ़कर नए-नए कांग्रेसी बने नागपुर के केशव बलिराम हेडगेवार को गांधी का यह फैसला सही नहीं लगा। हेडगेवार की जीवनी लिखने वाले सीपी भिशीकर अपनी किताब 'केशव : संघ निर्माता' में लिखते हैं- 'हेडगेवार ने गांधी से कहा कि खलीफा का समर्थन करके मुसलमानों ने ये साबित कर दिया कि देश से पहले उनका धर्म है। कांग्रेस को इस आंदोलन का समर्थन नहीं करना चाहिए।'
हालांकि गांधी ने हेडगेवार की बात नहीं मानी और खिलाफत आंदोलन के समर्थन की घोषणा कर दी।
 
न चाहते हुए भी हेडगेवार इस आंदोलन से जुड़े रहे और उग्र भाषण देने की वजह से अगस्त 1921 से जुलाई 1922 तक जेल में भी रहे। अगस्त 1921, खिलाफत आंदोलन केरल पहुंचा। यहां के मालाबार इलाके में मुसलमानों और हिंदू जमींदारों के बीच झड़प हो गई, जो जल्द ही एक बड़े दंगे में तब्दील हो गई। इस दंगे में 2 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इस दंगे का जिक्र करते हुए अपनी किताब 'थॉट्स ऑन पाकिस्तान' में लिखा- ‘इस विद्रोह का मकसद ब्रिटिश हुकूमत को खत्म कर इस्लाम राज की स्थापना करना था। तब जबरन धर्म परिवर्तन कराए गए, मंदिर ढहाए गए, महिलाओं के साथ बलात्कार हुए।’अंबेडकर ने खिलाफत आंदोलन पर सवाल उठाते हुए लिखा- ‘यही गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता कायम करने की कोशिश है। क्या फल मिला इस कोशिश का?’ कांग्रेस अध्यक्ष रहीं एनी बेसेंट, दंगों के बाद मालाबार गईं। 
 
उसके बाद उन्होंने एक अखबार में आर्टिकल लिखा- 'अच्छा होता अगर महात्मा गांधी मालाबार जाते। वे अपनी आंखों से उस भयावहता को देख पाते, जो उनके प्रिय भाइयों मोहम्मद अली और शौकत अली ने खड़ी की है।' दो साल बाद यानी 1923 में नागपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ। कलेक्टर ने हिंदुओं की झांकियों पर रोक लगा दी। हेडगेवार को उम्मीद थी कि कांग्रेस इसके विरोध में आवाज उठाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। खिलाफत आंदोलन और मालाबार हिंसा से नाराज हेडगेवार के मन में अब हिंदुओं के लिए अलग संगठन तैयार करने का ख्याल आने लगा। तब देश में हिंदू महासभा का गठन हो चुका था। हेडगेवार के मेंटॉर रहे डॉ. बीएस मुंजे हिंदू महासभा के सचिव थे। कुछ समय के लिए हेडगेवार हिंदू महासभा से जुड़े भी, लेकिन उन्हें यह संगठन रास नहीं आया। हेडगेवार का मानना था कि हिंदू महासभा राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए हिंदू हितों से समझौता कर लेगी।
 
उन दिनों नागपुर सेंट्रल प्रोविंस की राजधानी हुआ करता था। अंग्रेजों ने भारत के दूसरे हिस्सों को नापने के लिए नागपुर को जीरो माइल पॉइंट बनाया था। आज भी जीरो माइल पर एक स्तंभ और चार घोड़ों की प्रतिमाएं हैं। तारीख 27 सितंबर 1925, उस दिन विजयादशमी थी। हेडगेवार ने पांच लोगों के साथ अपने घर शुक्रवारी में एक बैठक बुलाई और कहा कि आज से हम संघ शुरू कर रहे हैं। बैठक में हेडगेवार के साथ विनायक दामोदर सावरकर के भाई गणेश सावरकर, डॉ. बीएस मुंजे, एलवी परांजपे और बीबी थोलकर शामिल थे। 17 अप्रैल 1926 को हेडगेवार के संगठन का नामकरण हुआ- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। शुरुआत में संघ के सदस्यों को सभासद कहा जाता था। हफ्ते में दो दिन रविवार और गुरुवार को सभी सदस्य एक खास जगह इकट्ठा होते थे। रविवार को वे कसरत करते थे और गुरुवार को राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करते थे। इस कार्यक्रम को शाखा नाम दिया गया।
 
शाखा संघ की पहली और सबसे अहम ईकाई है। संघ की बैठकों में आने वाले युवा, हेडगेवार से पूछते थे कि अपने संघ का नाम क्या है? तब हेडगेवार को लगा कि संगठन का नामकरण करना चाहिए। उन्होंने सभी सदस्यों की एक बैठक बुलाई। बैठक में इसके लिए तीन नाम सुझाए गए- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्धारक मंडल। 25 में से 20 लोगों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को चुना। 17 अप्रैल 1926 को संघ का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर दिया गया। संघ के सदस्यों की पहचान स्वयंसेवक के रूप में होने लगी। इसी साल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने राम नवमी के दिन एक बड़ा कार्यक्रम किया। संघ के स्वयंसेवक खाकी शर्ट, खाकी पैंट, खाकी कैप और बूट में नजर आए। ये संघ की शुरुआती यूनिफॉर्म थी। जैसे-जैसे संघ में आने वाले स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ने लगी, हेडगेवार को लगने लगा कि हफ्ते में दो दिन की बजाय नियमित शाखा की शुरुआत होनी चाहिए। अब इसके लिए जगह की तलाश की जाने लगी। अंत में नागपुर के ‘मोहिते का बाड़ा’ मैदान को चुना गया। 18 मई 1926 से संघ की नियमित शाखा की शुरुआत हुई।
 
*संघ किसी आंदोलन में शामिल नहीं होगा, स्वयंसेवक चाहें तो भाग ले सकते हैं*
1930 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के नमक कानून के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। तब संघ के स्वयंसेवकों ने हेडगेवार से पूछा कि आंदोलन में शामिल होना चाहिए या नहीं। कुछ स्वयंसेवकों ने संघ की ड्रेस में भगवा ध्वज लेकर आंदोलन में शामिल होने की इच्छा जताई। हेडगेवार ने कहा- 'आंदोलन जिस बैनर तले हो रहा है, वह ठीक है। अगर संघ की ड्रेस में या भगवा ध्वज लेकर कोई शामिल होगा, तो विवाद होगा। अंग्रेज हमारे संगठन पर रोक लगा सकते हैं, इसलिए जिसे शामिल होना है, वह व्यक्तिगत रूप से आंदोलन में शामिल होगा।
 
बतौर संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस आंदोलन में भाग नहीं लेगा।' हेडगेवार इस आंदोलन में शामिल हुए और जेल भी गए। करीब 9 महीने वे जेल में रहे। तब एलवी परांजपे को सरसंघचालक की जिम्मेदारी दी गई थी। जंगल सत्याग्रह से सजा काटकर लौटने के बाद मोहिते का बाड़ा के मालिक साहूकार गुलाब ने संघ की शाखा लगाने से मना कर दिया। इसके बाद भोसले संस्थान के हाथीखाना में संघ की शाखा लगने लगी। बाद में यह जगह भी छोड़नी पड़ी और महाराज भोसले के तुलसीबाग में संघ की शाखा लगने लगी। इसी बीच 1941 में साहूकार गुलाबराव कर्ज में फंस गए। 30 जून 1941 को माधवराव सदाशिव गोलवलकर के नाम से पूरा मोहिते का बाड़ा खरीद लिया गया।
 
*संघ विस्तार की स्ट्रैटजी : बाहर पढ़ने जाओ और छात्रों को संघ से जोड़ो
डॉ. हेडगेवार मैट्रिक परीक्षा पास करने वाले युवाओं को नागपुर से बाहर पढ़ने की सलाह देते थे। वे युवाओं से कहते थे कि अपने-अपने कॉलेजों में शाखा लगाइए, साथियों को संघ से जोड़िए।
छुट्टियों में जब वे युवा नागपुर आते थे, तो हेडगेवार उनसे शाखा के बारे में फीडबैक लेते थे। महाराष्ट्र से बाहर संघ की पहली शाखा 1930 में वाराणसी में लगी। दूसरे संघ प्रमुख रहे गोलवलकर वाराणसी की इसी शाखा से संघ से जुड़े। डॉ. हेडगेवार की एक और रणनीति थी- शाखा में नियमित नहीं आने वाले लड़कों से मिलने के लिए वे उनके घर जाते थे। हेडगेवार की बातचीत से प्रभावित होकर कई परिवार खुद ही अपने बच्चों को शाखा में भेजने लगे। इससे दिन पर दिन संघ में आने वाले स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ने लगी।
 
*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुरू करने वाले हेडगेवार की कहानी...* 
1 अप्रैल 1889 को नागपुर के एक वैदिक ब्राह्मण परिवार में केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ। हेडगेवार 6 भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर थे। वे 14 साल के थे, तब प्लेग से उनके माता-पिता की मौत एक ही दिन हो गई। जिसके बाद बड़े भाई महादेव ने उनकी परवरिश की। महादेव को अखाड़ों का शौक था। वे हेडगेवार को अपने साथ नागपुर के शिवराम गुरु अखाड़े में लेकर जाते थे। हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे बीएस मुंजे भी उस अखाड़े में जाते थे। 1904-05 की बात है। एक दिन मुंजे की नजर हेडगेवार पर पड़ी। दोनों के बीच बातचीत हुई और फिर वे नियमित रूप से मिलने लगे। दिनों भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का राज था और देश में बंगाल विभाजन की गूंज थी। सीनियर जर्नलिस्ट विजय त्रिवेदी अपनी किताब ‘संघम् शरण् गच्छामि’ में लिखते हैं- ‘मुंजे अपने घर बुलाकर हेडगेवार को बम बनाने की ट्रेनिंग देते थे।’
 
1910 में मुंजे की सलाह पर वे डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए कलकत्ता चले गए। कहा जाता है कि डॉक्टरी की पढ़ाई तो बहाना था, असल में हेडगेवार को कलकत्ता में क्रांतिकारी गतिविधियां सीखनी थीं। इसीलिए मुंजे ने उन्हें कलकत्ता भेजा। उन दिनों कलकत्ता क्रांतिकारियों का गढ़ हुआ करता था। यहां वे अनुशीलन समिति से जुड़ गए। इस समिति में अरविंद घोष और विपिनचंद्र पाल जैसे क्रांतिकारी शामिल थे। 1915 में डॉक्टरी पढ़कर कलकत्ता से लौटे हेडगेवार ने नौकरी करने की बजाय नागपुर में एक व्यायामशाला खोली। यहां वे युवाओं को व्यायाम के साथ-साथ उनके बीच ज्वलंत मुद्दों पर डिबेट कॉम्पिटिशन कराते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हेडक्वार्टर के नजदीक आज भी वो व्यायामशाला है। 1910 से 1919 के बीच हेडगेवार ने कई छोटे संगठन बनाए, पर उसका कुछ खास परिणाम नहीं निकला। तब हेडगेवार ने तय किया कि नया संगठन बनाने के बजाय कांग्रेस से जुड़कर काम करना बेहतर होगा। 1919 में वे कांग्रेस के एक्टिव मेंबर बन गए। उस साल कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में उन्होंने भाग भी लिया। अगले साल यानी 1920 में हिंदूवादी नेता एलवी परांजपे ने भारत स्वयंसेवक मंडल शुरू किया। इस संगठन का काम था कांग्रेस के अधिवेशनों के लिए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जुटाना।
 
हेडगेवार भी इस संगठन से जुड़ गए। दिसंबर 1920, सी. विजय राघवाचार्य की अध्यक्षता में नागपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इसमें करीब 3 हजार कार्यकर्ता, 15 हजार डेलिगेट्स और हजारों लोग शामिल हुए। परांजपे और हेडगेवार को अधिवेशन में डेलिगेट्स के रहने और खाने की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी मिली थी। उस अधिवेशन में हेडगेवार ने 'विषय नियामक समिति' का प्रस्ताव दिया, जिसे ठुकरा दिया गया। इस प्रस्ताव में हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग रखी थी। कहा जाता है कि उस दिन से ही हेडगेवार, कांग्रेस की लीडरशिप से नाराज रहने लगे थे। 1921 में उन्होंने महाराष्ट्र के कटोल और भरतवाड़ा में भाषण दिया। इसको लेकर अंग्रेजों ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा लगाया। उन्हें जेल भेज दिया गया। जुलाई 1922 में जेल से निकलने के बाद हेडगेवार के स्वागत के लिए एक सभा आयोजित की गई, जिसमें मोतीलाल नेहरू भी शामिल थे। इसी साल हेडगेवार को प्रदेश कांग्रेस का जॉइंट सेक्रेटरी बनाया गया। उन दिनों कांग्रेस वॉलंटियर्स के लिए हिंदुस्तानी सेवा दल चलता था। हेडगेवार को इसमें अहम जिम्मेदारी मिली, हालांकि वे अपने रोल से बहुत खुश नहीं थे। वे कुछ अलग करना चाहते थे। खिलाफत आंदोलन, मालाबार हिंसा और नागपुर दंगे के बाद आखिरकार 1925 में उन्होंने संघ की नींव रखी।
 
*डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने रखी थी संघ की नींव*
एक सामाजिक- सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने रखी थी. इसलिए संघ को जानने के लिए किसी भी जागरूक शख्स को पहले इसके संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के बारे में जानना जरूरी माना जाता है. अपने जीवनकाल में  उन्हें‘डॉक्टरजी’ के नाम से पुकारा जाता था. समाज सेवा और देशभक्ति की भावना से भरकर उन्होंने 36 साल की आयु में संघ की स्थापना की थी. बचपन में उन्होंने दोस्तों के साथ मिलकर सीतावर्डी के दुर्ग से अंग्रेजों का यूनियन जैक उतारने के लिए सुरंग बनाने की योजना बना डाली थी.
 
*तीन बार प्रतिबंधों के बावजूद हमेशा बढ़ता ही रहा संघ
डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने साल 1925 में विजयादशमी (27 सितंबर) के पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना  की थी. संघ की प्रतिनिधि सभा की मार्च 2024 में हुई बैठक के अनुसार, देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 922 जिलों, 6597 खंडों और 27,720 मंडलों में 73,117 दैनिक शाखाएं हैं. इन प्रत्येक मंडल में 12 से 15 गांव शामिल हैं. संघ की प्रेरणा और सहयोग से समाज के हर क्षेत्र में विभिन्न संगठन चल रहे हैं, जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं. संघ के विरोधियों ने इस पर 1948, 1975 और 1992 में तीन बार प्रतिबंध लगाया. लेकिन तीनों बार संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा.
 
*संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में क्या है ‘हिन्दू’ का मतलब?*
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में ‘हिन्दू’ शब्द की व्याख्या करता है. यह किसी भी तरह से (पश्चिमी)  धार्मिक अवधारणा के समान नहीं है. इसकी विचारधारा और मिशन का जीवंत संबंध स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और बिपीन चंद्र पाल जैसे हिन्दू विचारकों के दर्शन से है. स्वामी विवेकानंद ने यह महसूस किया था कि “हिन्दुओं को परस्पर सहयोग और सराहना का भाव सिखाने के लिए सही अर्थों में एक हिन्दू संगठन अत्यंत आवश्यक है जो.”स्वामी विवेकानंद के इस विचार को डॉक्टर हेडगेवार ने व्यवहार में तब्दील कर दिया.
 
*डॉक्टर हेडगेवार ने क्यों बनाई थी 'शाखा' जैसी ईकाई?*
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सबसे मूलभूत यानी बुनियादी ईकाई उसकी शाखाएं हैं. ये ‘स्व’ के भाव को  एक बड़े सामाजिक और राष्ट्रीय हित की भावना में मिला देती हैं. दरअसल, हम यह कह सकते हैं कि हिन्दू राष्ट्र को स्वतंत्र करने और हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति की रक्षा कर राष्ट्र कोंपरम वैभव तक पहुंचाने के उद्देश्य से डॉक्टर हेडगेवार ने संघ की स्थापना की थी. संघ की शाखा से निकले कई स्वयंसेवक देश में राजनीतिक सहित विभिन्न क्षेत्रों में सबसे बड़े पदों पर पहुंचे, लेकिन संघ अपनी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं होने का दावा करता है.
 
*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या करता है, उसका ध्येय क्या है?*
संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर की किताब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र के मुताबिक, भारत को हर क्षेत्र में महान बनाना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का केवल एक ध्येय है. संघ एक सशक्त हिन्दू समाज के निर्माण के लिए सभी जाति के लोगों को एक करना चाहता है. संघ का साधारण सिद्धांत यह है कि संघ शाखा चलाने के सिवाय कुछ नहीं करेगा और उसका स्वयंसेवक कोई कार्यक्षेत्र नहीं छोड़ेगा. इसलिए संघ अपनी स्थापना के बाद से ही महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सहित तमाम महापुरुषों और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आकर्षण और जिज्ञासा का केंद्र बना रहा था.
 
*संघ की ताकत क्या है, स्वयंसेवक या प्रचारक किसे कहते हैं?*
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की असली ताकत राष्ट्र के लिए स्वयं प्रेरणा से कार्य करने वाले उनके कार्यकर्ता हैं, जिन्हें स्वयंसेवक कहा जाता है. समकालीन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से परे देश के नवनिर्माण की आशा के साथ संगठन की योजना से काम करने वाले ऐसे स्वयंसेवकों को संघ 'देवदुर्लभ' कार्यकर्ता बताता है. इन स्वयंसेवकों में से कई युवक अपना पूरा जीवन संघ के जरिए राष्ट्र के लिए समर्पित करते हैं. इन्हें प्रचारक कहा जाता है. इनका काम स्वयंसेवकों को आपस में जोड़े रखना और शीर्ष नेतृत्व की बातों को शाखा से जुड़े परिवारों तक पहुंचाना होना होता है.
 
*आजादी की लड़ाई में क्या और कैसा था संघ का योगदान?*
भारत के स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को लेकर अक्सर उसके विरोधी सवाल उठाते रहते हैं. हालांकि, इसको आजादी के लिए संघर्ष करने वाले संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के संदर्भ में समझा जा सकता है. भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की ओर से प्रकाशित राकेश सिन्हा की लिखी आधुनिक भारत के निर्माता: डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार किताब के मुताबिक, संघ की भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही. डॉक्टर हेडगेवार कोलकाता में श्याम सुन्दर चक्रवर्ती और मौलवी लियाकत हुसैन से जुड़े रहे. 
 
*क्रांतिकारी डॉक्टर हेडगेवार ने कभी विवाह न करने का संकल्प किया*
कलकत्ता में रत्नागिरी से आए आठले नाम के एक बम निर्माता क्रांतिकारी से डॉक्टर हेडगेवार ने भी बम बनाना सीखा. आठले के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार डॉक्टर हेडगेवार और श्याम सुन्दर चक्रवर्ती ने गुप्त रूप से किया था. क्रांतिकारी रहकर ही डॉक्टर हेडगेवार ने कभी विवाह न करने का संकल्प किया था. अपने क्रांतिकारी जीवन में डॉक्टर हेडगेवार ने खुद शस्त्रों का प्रयोग किया. वह भी इतनी सावधानी से कि तत्कालीन अंग्रेज सरकार संदेह होते हुए भी उन्हें पकड़ न सकी. उनके प्रयासों ने देश के कई हिस्सों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ असंतोष और संघर्षों को आगे बढ़ाया.
*द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी अंग्रेजों को भारत ने निकालने की कोशिश*
संघ के वरिष्ठ अधिकारी बाबा साहब आप्टे बताते थे, “जब सन 1939 का वर्ष समाप्ति की ओर था और यूरोप में महायुद्ध जारी था उन दिनों डॉक्टर हेडगेवार को रात-दिन एक ही चिंता रहती थी कि महायुद्ध की इस स्थिति में अंग्रेजों को भारत से जड़-मूल सहित उखाड़ फेंकने के लिए उतना प्रभावी और शक्तिशाली संगठन भी जल्दी ही खड़ा कर लेना है. उनकी नजरों से ब्रिटिश दासता कभी ओझल नहीं हो पाई. संघ के सरकार्यवाह रहे भैयाजी दाणी ने संघ दर्शन किताब में लिखा है, “अंग्रेज सरकार के रोष तथा निषेध की परवाह न करते हुए अपने विद्यालय में डॉक्टर हेडगेवार ने ‘वंदेमातरम्’ का उद्घोष गुंजाया, भले इसके लिए उन्हें वह विद्यालय छोड़ देना पड़ा.”
 
*डॉक्टर हेडगेवार ने 1922-23 में की ‘ब्रिटिश राज्य विरहित’ स्वराज्य की मांग*
प्रखर क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर, उनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर और छोटे भाई डॉक्टर नारायण दामोदर सावरकर, वामनराव जोशी, बैरिस्टर अभ्यंकर और सुभाष चन्द्र बोस डॉक्टर हेडगेवार को पसंद करते थे. सन 1922-23 में पुलगांव में आयोजित वर्धा तालुका परिषद् के सामने जब स्वराज्य का प्रस्ताव रखा गया तो उसमे अहमदाबाद-कांगेस द्वारा स्वीकृत ‘स्वराज्य’ शब्द का अर्थ कुछ लोग ‘ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वराज’ करते थे, लेकिन डॉक्टर हेडगेवार को यह मंजूर नहीं था. वह तो ब्रिटिश राज्य को हटाने के बाद के स्वराज्य को ही वास्तविक स्वराज्य मानते थे. उन्होंने परिषद् में जब स्वराज्य का प्रस्ताव रखा तो उसमें ‘ब्रिटिश राज्य विरहित’ स्वराज्य का संशोधन सुझाया था. डॉक्टर हेडगेवार के निधन पर लोकमान्य तिलक द्वारा स्थापित अंग्रेजी समाचार पत्र ‘मराठा’ ने 23 अगस्त, 1940 को अपने प्रथम पृष्ठ पर जो पहला बड़ा समाचार प्रकाशित किया उसका शीर्षक था ‘डॉ. हेडगेवार्स संघ स्टील गोइंग स्ट्रांग.’
 
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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ग्लेडिएटर 2:दिल थाम कर देखेंगे फिल्म के एक्शन सींस रोम के योद्धा की एक अद्भुत कहानी की अगली कड़ी

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Nov 15, 2024

सराय काले खां चौक का नाम अब मोदी सरकार ने किया बिरसा मुंडा चौक

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Nov 15, 2024

कच्चे तेल के अधिक उत्पादन से कीमतों में स्थिरता आने की उम्मीद : हरदीप सिंह पुरी

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Nov 15, 2024

कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की अहम भूमिका होगी : सीआईआई पीएसई शिखर सम्मेलन

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Nov 15, 2024

इंटरनेशनल

एम्स में बच्चों के मायोपिया के इलाज के लिए स्पेशल क्लिनिक

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Nov 16, 2024

पीएम मोदी ने जनजातीय संस्कृति से दुनिया को कराया रूबरू

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Nov 16, 2024

आदिवासी समुदायों की प्रगति राष्ट्रीय प्राथमिकता: राष्ट्रपति

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Nov 16, 2024

रिपोर्ट: डायबिटीज के दुनियाभर में 82.8 करोड़ मरीज जिसमें एक चौथाई भारतीय

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Nov 15, 2024

खतरनाक: भारत समेत कुछ देशों तक बेची जा रही घटिया हल्दी, सीसे की मात्रा मानक से 200 गुना ज्यादा

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Nov 15, 2024

अपने पैसे से कराया 200 मंदिरों का निर्माण, 'राष्ट्र बोध' के लिए अहिल्याबाई होल्कर का योगदान अतुलनीय

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