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रेस्टोरेंट खाना खाने जाते हैं या मालिक का नाम देखने, कांवड़ यात्रा नेम प्लेट मामले में सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या दलीलें

सुप्रीम कोर्ट ने उनसे जवाब मांगा है और मामले की सुनवाई 26 जुलाई को तय की है

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Wed, Jul 24, 2024 7:47 AM

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नई दिल्ली, 24 जुलाई  2024 (यूटीएन)। सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ियां यात्रा मार्ग पर स्थित होटल और रेस्टोरेंट को मालिकों के नाम लिखने के लिए कहने वाले सरकारी निर्देश पर रोक लगा दी है और कांवड़ियां यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों के नाम लिखने के लिए कहने वाले उनके निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने उनसे जवाब मांगा है और मामले की सुनवाई 26 जुलाई को तय की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि खाद्य विक्रेताओं को मालिकों और कर्मचारियों के नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
 
*सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल*
 
सरकार के फैसले के खिलाफ एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नामक एक एनजीओ ने याचिका दायर की थी। एनजीओ का तर्क है कि यह निर्देश धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों को नोटिस जारी किया है और अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी। इस बीच, कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए निर्देश दिया है कि दुकानदारों को केवल अपने द्वारा बेचे जाने वाले भोजन के प्रकार का उल्लेख करना होगा, न कि उनके या उनके कर्मचारियों के नाम का। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। एनजीओ की ओर से पेश हुए सीनियर वकील सीयू सिंह ने दलील दी कि उत्तर प्रदेश सरकार का निर्देश संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 17 का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि यह निर्देश धार्मिक आधार पर भेदभावपूर्ण है और अस्पृश्यता को बढ़ावा देता है।
 
*'पूरी तरह मनमाना है आदेश'*
 
सीपी सिंह ने कहा, 'यह आदेश पूरी तरह से मनमाना है और इसका कोई कानूनी आधार नहीं है। पुलिस आयुक्त के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है। यह केवल यह बताने की जरूरत है कि खाना शाकाहारी है या मांसाहारी। यह निर्देश न केवल ढाबों के लिए बल्कि अब हर विक्रेता के लिए है। इससे कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता है। हमारा संविधान यह नहीं कहता है कि एक व्यक्ति को कुछ खास तरह का खाना परोसने वाले स्थानों को चलाने से रोक दिया जाए। शिव ढाबा पूरे भारत में एक सीरीज के रूप में है। फ्रैंचाइजी किसी भी मुस्लिम, जैन को दी जा सकती है।'
 
*महुआ मोइत्रा ने भी दायर की है याचिका*
 
पीठ ने पूछा कि क्या कोई औपचारिक आदेश है? सिंह ने कहा, 'प्रत्येक पुलिस आयुक्त ने आदेश जारी किया है। सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाकर्ता महुआ मोइत्रा की ओर से पेश होते हुए कहा कि यह एक गलत है। उन्होंने कहा, 'इसका जवाब हां या ना में नहीं दिया जा सकता है।' सिंघवी ने कहा, 'जब लोग उल्लंघन करते हैं तो कोर्ट कठोर होता है, चालाक बनने की कोशिश करते हैं तो कठोर होना पड़ता है।'
 
*'खाना खाने रेस्टोरेंट जाते हैं मालिक के नाम के लिए नहीं'*
 
पीठ ने पूछा, 'तो क्या उल्लंघन करने वालों के लिए कार्रवाई पर विचार किया जा रहा है?' सिंघवी ने कहा, 'हां, जबरदस्ती है।' सिंह ने कहा, 'उनमें से ज्यादातर बहुत गरीब सब्जी और चाय की दुकान के मालिक हैं और इस तरह के आर्थिक बहिष्कार के अधीन होने पर उनको काफी नुकसान होगा। हमने पालन न करने पर बुलडोजर कार्रवाई का सामना किया है।' सिंघवी ने मजाकिया अंदाज में कहा, 'कोई मालिक के नाम के लिए रेस्टोरेंट में प्रवेश नहीं करता है, बल्कि खाने के लिए प्रवेश करता है।'जस्टिस भट्टी ने कहा, 'डॉ सिंघवी, हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है। इन आदेशों में सुरक्षा और स्वच्छता के भी आयाम हैं। आपका तर्क है कि इससे बहिष्कार हो रहा है, सही है?'
 
*दशकों से हो रहीं कांवड़ यात्राएं*
 
सिंघवी ने कहा, "कांवड़ यात्राएं दशकों से होती आ रही हैं। मुसलमानों सहित सभी धर्मों के लोग रास्ते में उनकी मदद करते हैं। अब आप बहिष्कृत कर रहे हैं। अब आपके ऐसे परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं जो कभी नहीं उठने चाहिए थे। यह कहने की ज़रूरत से कि क्या शुद्ध शाकाहारी हैं ... इससे ..." सिंघवी ने कहा, "हिंदुओं द्वारा चलाए जा रहे बहुत सारे शुद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट हैं। लेकिन अगर उनके पास मुस्लिम या दलित कर्मचारी हैं तो क्या आप कहेंगे कि आप वहां नहीं खाएंगे? वे बिना किसी कानूनी अधिकार के जारी किए जाते हैं।'
 
*डोमिनोज का भी हुआ जिक्र*
 
जस्टिस भाटी ने कहा, 'हम सभी जानते हैं कि इसमें क्या अच्छा है और क्या बुरा है। कुछ मांसाहारी लोग हलाल प्रमाणित मांस पसंद करेंगे। मैं जो समझ रहा हूं वह यह है कि आपने पहले कहा था कि आप प्रश्न का उत्तर हां या ना में नहीं दे सकते।' सिंघवी ने कहा, 'यह काफी हद तक हां है। क्योंकि उन्होंने इसे आदेश के रूप में स्टाइल किया है। जब मैंने हां या ना नहीं कहा तो मैं बहुत सतर्क हो रहा था। लेकिन सिंह की याचिका ने इसे स्पष्ट कर दिया है।' सिंघवी ने कहा, 'डोमिनोज इफेक्ट। यह अब हर जगह लागू किया जा रहा है। सैकड़ों लोग अपनी नौकरी खो रहे हैं। हमें जागना होगा। विचार न केवल एक अल्पसंख्यक बल्कि दलितों को भी बाहर करने का है।'
 
*कांवड़िया क्या चाहते हैं?*
 
जस्टिस रॉय ने कहा, 'कांवड़ियों की क्या अपेक्षा है? वे शिव की पूजा करते हैं, हां? क्या वे उम्मीद करते हैं कि खाना एक खास समुदाय द्वारा पकाया और परोसा और उगाया जाएगा?' सिंघवी ने कहा, "यह डरावनी हद तक सही है। यह भयावह है।' जस्टिस रॉय ने कहा, "हम इसे इसके तार्किक निष्कर्ष पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। दंडात्मक पहलू क्या है?" सिंघवी ने कहा, 'ये यात्राएं कल से नहीं बल्कि आजादी से पहले से होती आ रही हैं। आप कितना पिछड़ा एकीकरण करते हैं? रसोइया, सर्वर, उत्पादक को गैर अल्पसंख्यक होना चाहिए?'
सिंह ने कहा, 'कुछ लोग बिना प्याज या लहसुन के भी चाहते हैं।' सिंघवी ने कहा, 'लेकिन हम मालिक से नहीं पूछेंगे।' जस्टिस भाटी ने कहा, 'इस पर मैं आपके साथ पूरी तरह से सहमत हूं। शहर का नाम बताए बिना मैं आपके साथ साझा करूंगा। दो शाकाहारी होटल थे, एक हिंदू द्वारा और एक मुस्लिम द्वारा। मैं बाद वाले के पास गया, क्योंकि मुझे वहां की स्वच्छता पसंद आई। वह दुबई से लौटा था। लेकिन उसने बोर्ड पर सब कुछ प्रदर्शित किया।'
 
*'लाखों लोगों को बाहर नहीं निकाल सकते'*
 
सिंघवी ने कहा, 'मैं एक गैर-अभ्यास करने वाला जैन हूं, लेकिन मैं जानता हूं कि समुदाय के लोग प्याज लहसुन नहीं खाते हैं।' जस्टिस रॉय ने कहा, 'विमान आदि हिंदू भोजन परोसते हैं ...' सिंघवी ने कहा, 'इसे यहीं ठीक करना होगा। नियम कहते हैं कि आपको केवल कैलोरी मान और शाकाहारी मांसाहारी का उल्लेख करना होगा।' जस्टिस भाटी ने कहा, "और लाइसेंस भी।" सिंघवी ने कहा, 'आप इस तरह लाखों लोगों को बाहर नहीं निकाल सकते ... ये भारत है।' जस्टिस भाटी ने कहा, 'लेकिन मोटे तौर पर ये स्वच्छता मानकों के लिए भी हैं?' सिंघवी ने कहा, "जब यह मामला सामने आएगा तो अदालत उसका अलग से निपटारा कर सकती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में, लोगों के पास लाइसेंस भी नहीं होते हैं।'
 
'धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व को टारगेट करने वाला फैसला'
 
इस बीच सीनियर वकील हुजेफा अहमदी ने कहा, 'यह धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व को टारगेट करने वाला फैसला है। अहमदी डीयू प्रोफेसर अपूर्वानंद और आकर पटेल की ओर से पेश हो रहे थे। अहमदी ने कहा, 'यह कई कानूनों का उल्लंघन करता है। यह अस्पृश्यता का एक रूप है और व्यापार को प्रतिबंधित करता है।' जस्टिस रॉय ने कहा, 'क्या कोई दूसरी तरफ से पेश हो रहा है?' इसके बाद अदालत ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ताओं के वकीलों की बात सुनी। यहां चुनौती एसएसपी मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा जारी निर्देशों और उसके लिए कार्रवाई की धमकी को लेकर है। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इन सभी याचिकाओं पर नोटिस जारी किया जाए। अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी। तब तक इस आदेश पर रोक लगाई गई है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार से नोटिस पर जवाब मांगा है।
 
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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