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कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में, अब 15 मई को होगी सुनवाई होगी

मंगलवार की सुनवाई में हिंदू पक्ष की ओर से कोर्ट में सिविल वाद को एक्सप्लेन किया गया

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Publised at

Thu, May 9, 2024 8:18 AM

by

Ujjwal Times News

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मथुरा, 09 मई 2024  (यूटीएन)।  कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में हिंदू पक्ष की ओर से रीना एन. सिंह ने मंगलवार को दलील दी कि किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण करना, उसकी प्रकृति बदलना और बिना स्वामित्व के उसे अपनी संपत्ति बताना वक्फ का चरित्र रहा है.  इस व्यवस्था की अनुमति नहीं दी जा सकती है। वाद की पोषणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा गया कि 1968 में एक समझौते के तहत यह संपत्ति उनके पक्ष में आई, लेकिन उस समझौते में स्वामी पक्षकार नहीं था। 

संपत्ति का स्वामी देवता हैं, लेकिन देवता को पक्षकार नहीं बनाया गया। पूजा स्थल अधिनियम और वक्फ अधिनियम के प्रावधान यहां लागू नहीं होते और यह वाद पोषणीय (सुनवाई योग्य) है। गैर पोषणीयता के संबंध में अर्जी पर साक्ष्यों को देखने के बाद ही निर्णय किया जा सकता है। इस मामले में सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अदालत द्वारा की जा रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में  बहस पूरी हो गई है। अब 15 मई को सुबह 11.30 बजे होगी मामले की सुनवाई होगी ।

अगली सुनवाई में हिंदू पक्ष बची हुई दलीलें पेश करेगा। मंगलवार की सुनवाई में हिंदू पक्ष की ओर से कोर्ट में सिविल वाद को एक्सप्लेन किया गया। दलील दी गई है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जमीन पर शाही ईदगाह मस्जिद का अवैध कब्जा चला आ रहा है। जमीन पर मस्जिद का कोई विधिक अधिकार नहीं है। कोर्ट में कहा गया कि साल 1669 से लगातार चली आ रही नमाज श्रद्धालुओं की आस्था पर चोट है। महिला अधिवक्ता रीना सिंह ने मंदिर पक्ष की तरफ से आने लाइन पक्ष रखा.कहा गया कि मंदिर तोड़कर उसी की दीवार पर मस्जिद बनाईं गई है।

वक्फ बोर्ड ने बिना स्वामित्व के वक्फ संपत्ति घोषित किया है। दलील में पूछा गया कि क्या प्रक्रिया अपनाई गई कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया जा रहा कि किस प्रक्रिया व कानून के तहत वक्फ घोषित किया गया? दलील दी जा रही है कि ए एस आई ने नजूल भूमि कहा है इसलिए इसे वक्फ संपत्ति नहीं घोषित कर सकते हैं। संपत्ति पर विरोधी पक्ष को कोई हक नहीं है विवादित स्थल ऐतिहासिक धरोहर घोषित है।राष्ट्रीय महत्व की है, वाद भी राष्ट्रीय महत्व का होगा।

कोर्ट में कहा गया कि संरक्षित क्षेत्र में किसी को  केंद्र सरकार की अनुमति बगैर किसी प्रकार का निर्माण करने का अधिकार नहीं है। दो पक्षों में इससे पहले हुए समझौते का संपत्ति अधिकार से कोई सरोकार नहीं है. समझौता संपत्ति के स्वामी के साथ नहीं किया गया है इसलिए समझौते का कोई मतलब नहीं है। दावा किया गया कि योगिनी माता मंदिर स्थल पर शाही ईदगाह मस्जिद है. दलील दी गई है भवन वास्तव में मस्जिद नहीं है और 15 वीं सदी में मस्जिद का ऐसा स्ट्रक्चर नहीं होता था। कोर्ट में कहा गया कि  हिंदू मंदिर पर कब्जा कर मस्जिद का रूप दिया गया। बज्रनाभ भगवान कृष्ण के प्रपौत्र ने मंदिर बनवायाऔर चार बीघा जमीन में मंदिर केशव देव‌ मंदिर का निर्माण हुआ।

पहले परिक्रमा होती थी, मंदिर ध्वस्त किया गया. कोर्ट में कहा गया कि विष्णु पुराण कहता है कृष्ण के जाने के बाद कलियुग शुरू हुआ।

मुस्लिम पक्ष ने क्या कहा?

मुस्लिम पक्ष ने इन याचिकाओं की पोषणीयता पर सवाल उठाते हुए इन्हें खारिज किए जाने की अपील की है। अदालत में अभी मुकदमों की पोषणीयता पर ही बहस चल रही है। मुस्लिम पक्ष ने ऑर्डर 7 रूल 11 के तहत याचिकाओं की पोषणीयता पर सवाल उठाते हुए इन्हें खारिज किए जाने की मांग की है।मुस्लिम पक्ष ने मुख्य रूप से प्लेसिस आफ वरशिप एक्ट, वक्फ एक्ट, लिमिटेशन एक्ट और स्पेसिफिक पजेशन रिलीफ एक्ट का हवाला देते हुए हिंदू पक्ष की याचिकाओं को खारिज किए जाने की दलील पेश की है। 

हिंदू पक्ष की याचिकाओं में शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन को हिंदुओं की बताकर वहां पूजा का अधिकार दिए जाने की मांग की गई है। इससे पूर्व, दो मई को, हिंदू पक्ष की ओर से दलील दी गई थी कि पूजा स्थल कानून, 1991 के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होंगे क्योंकि इस कानून में धार्मिक चरित्र परिभाषित नहीं किया गया है। उसने कहा कि किसी स्थान या ढांचे का धार्मिक चरित्र केवल साक्ष्य से ही निर्धारित किया जा सकता है जिसे दीवानी अदालत द्वारा ही तय किया जा सकता है।

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