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इंतजार में गुजर गए माता-पिता, पत्नी और बेटा भी, 56 साल बाद तिरंगे में लौटा मलखान
सात फरवरी 1968 का वह दिन याद है, जब बड़े भाई मलखान सिंह (23) की विमान हादसे में निधन की सूचना मिली
नई दिल्ली, 04 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। सात फरवरी 1968 का वह दिन याद है, जब बड़े भाई मलखान सिंह (23) की विमान हादसे में निधन की सूचना मिली. उस समय मेरी उम्र करीब 12 साल होगी, लेकिन परिवार के हालातों से वाकिफ था. देखता रहता था कि माता-पिता और भाभी समेत परिवार के अन्य सदस्य किस तरह कोने में जाकर रोते-बिलखते थे. क्योंकि अंतिम समय में परिवार का कोई सदस्य उनका चेहरा भी नहीं देख सका और न ही अंत्येष्टी कर सके.
56 साल बाद जब सेना के जवानों ने आकर पार्थिव शरीर मिलने के जानकारी दी तो दर्द ताजा हो गया. समझ ही नहीं आया कि आखिर भाई के निधन पर अब दुख जताऊं या फिर यह सब्र करूं कि कम से कम अब अंत्येष्टी तो कर सकेंगे. यह कहते-कहते मलखान सिंह के छोटे भाई इसमपाल सिंह की आंखों से आंसू छलक पड़े. ये सिर्फ आंसू नहीं हैं, बल्कि एक परिवार का दर्द है. जो अपने भाई, बेटे, पति, पत्नी का चेहरा देखने के इंतजार में मर गया. अब जब मलखान का शव गांव आया तो नहीं हैं वह लोग, जो उन्हें दे पाते आखिरी विदाई.
*आखिर कौन हैं मलखान सिंह, जिनका 56 साल बाद मिला है शव*
1968 में शहीद हुए जवान मलखान सिंह का पार्थिव देह 56 साल बाद मिला है. विमान के क्रेश होने से मलखान सिंह शहीद हो गए थे. तब उनके शव का कोई पता नहीं चल पाया था. 56 साल बाद मलखान सिंह का शव प्राप्त होने की जानकारी मिलने के बाद परिवार के लोग हैरान हैं. उन्हें यकीन नहीं हुआ कि आखिर इतने सालों के बाद कैसे शव मिल सकता है, लेकिन वायुसेना ने खुद अपनी तरफ से शव मिलने की आधिकारिक पुष्टि की है. परिजनों को यह समझ नहीं आया कि प्रतिक्रिया में क्या कहा जाए.
*परिवार में इंतजार करते हुए कई लोग मर गए*
मंगलवार को मलखान सिंह के छोटे भाई इसमपाल सिंह को शव मिलने की जानकारी दी गई. मलखान की पत्नी और इकलौते बेटे की मौत हो चुकी है. वहीं बहू, पौत्र गौतम व मनीष और एक पौत्री है. 56 बाद शव मिलने की जानकारी के बाद परिवार का वर्षों पुराना गम हरा हो गया.
*पोते हैं अब जिंदा*
पौते गौतम कुमार ने कहा, “हमें कल सुबह आठ-नौ बजे के करीब यह सूचना दी गई कि आपके दादाजी का शव मिल चुका है. मेरे दादाजी एयरफोर्स में थे. वो चंडीगढ़ से किसी मिशन के लिए निकले थे, तो उनका जहाज किसी बर्फ में समा गया, जिसके बाद उनका कोई पता नहीं चला. लेकिन, अब उनके शव मिलने की जानकारी मिली है. गांव में खुशी और गम दोनों का माहौल है.”
*पूरा गांव है गमगीन*
मलखान सिंह का पार्थिव शरीर गांव लाए जाने के बाद लोग देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत हैं. इस मौके पर गांव के हर शख्स की आंखें नम है. शहीद मलखान सिंह के परिवार की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं है. परिवार को पूरी उम्मीद है कि शायद सरकार की ओर से किसी प्रकार की सहायता दी जाए या कोई ढंग की नौकरी दी जाए.
*ऑटो चलाकर पोते करते हैं गुजारा*
मलखान सिंह के दोनों पोते सहारनपुर में ऑटो चलाकर जैसे-तैसे अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं. पोते ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि वायु सेना की ओर से कोई आर्थिक सहायता दी जाएगी, लेकिन अफसोस कोई मदद नहीं दी गई. पोते गौतम ने बताया कि मदद एक तरफ, लेकिन कहीं ना कहीं उनके दिल में इस बात की खुशी है कि उनके दादा जी का शव मिल चुका है.
*56 साल पहले हुए थे शहीद*
विश्व के सबसे ऊंचे तथा दुर्गम बर्फीले युद्ध क्षेत्र सियाचिन में 56 वर्ष पूर्व हवाई दुर्घटना में मौत का शिकार हुए जवान मलखान सिंह का पार्थिव शरीर लद्दाख से भारतीय वायुसेना के वायुयान से एयरफोर्स स्टेशन सरसावा लाया गया. जहां दोपहर सवा 12 बजे पार्थिव शरीर को वायुयान से उतार कर सशस्त्र जवानों ने अंतिम सलामी दी.
*अंतिम दर्शन के लिए उमड़ी भीड़*
इसके पश्चात पार्थिव शरीर को एक सैन्य वाहन में पूरे सम्मान के साथ रख कर शहीद सैनिक की अंतिम यात्रा काफिले के साथ वायुसेना स्टेशन से नानौता क्षेत्र में उनके पैतृक गांव फतेहपुर पहुंची. जहां भारत माता की जय और शहीद मलखान सिंह अमर रहे के नारों के बीच उनके पार्थिव शरीर को घर तक ले जाया गया. इस दौरान ग्रामीणों ने गांव के बाहर से घर तक पार्थिव श रीर पर पुष्प वर्षा की। बड़ी संख्या में लोग उनके अंतिम दर्शनों के लिए पहुंचे.
*2024 में बरामद हुआ शव*
अपर पुलिस अधीक्षक (देहात क्षेत्र) सागर जैन ने बुधवार को बताया कि नानौता थाना क्षेत्र के फतेहपुर गांव के निवासी मलखान सिंह वायु सेना में थे. वह सात फरवरी 1968 को हिमाचल प्रदेश के सियाचिन ग्लेशियर के पास सेना के विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने की घटना में शहीद हो गये थे. इस हादसे में 100 से अधिक जवान शहीद हुए थे. उन्होंने बताया कि बर्फीले पहाड़ होने के कारण घटना के फौरन बाद शवों की बरामदगी भी नहीं हो पाई थी. वर्ष 2019 तक पांच ही शव मिले थे और अभी हाल में चार शव और बरामद हुए थे. इन्हीं में एक जवान की पहचान मलखान सिंह के रूप मे हुई है.
*बर्फ में दबे होने की वजह से नहीं खराब हुआ शव*
बर्फ में दबे होने के कारण उनका शव अभी तक पूरी तरह क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है. मलखान का शव गुरुवार को उनके पैतृक गांव पहुंचेगा. मलखान के छोटे भाई ईसम सिंह ने न्यूज एजेंसी भाषा को बताया कि मलखान 20 साल की उम्र में वायुसेना में चयनित हुए थे और 23 साल की आयु में शहीद हो गये थे. उनके परिवार में पत्नी शीला देवी और डेढ़ साल का बेटा राम प्रसाद थे. जब मलखान का पार्थिव शरीर गांव पहुंचा तो उनकी पत्नी और बेटा दोनों ही उन्हें अंतिम बार देखने के लिए वहां नहीं थे क्योंकि दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं.
*पत्नी की करा दी गई देवर के साथ शादी*
छोटे भाई ने बताया कि मलखान की पत्नी शीला का दूसरा विवाह मलखान की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई चंद्रपाल से कर दिया गया था और उनसे उनके दो बेटे सतीश, सोमप्रसाद और एक बेटी शर्मिला है. ईसम ने कहा, ''गांव के बुजुर्ग मलखान के बारे में किस्से और कहानियाँ सुनाते थे लेकिन अब वे उसे अंतिम श्रद्धांजलि देने का इंतज़ार कर रहे हैं.
*मलखान सिंह अब 79 साल के होते*
यह भगवान का आशीर्वाद है कि हमें पितृ पक्ष में उनका शव बरामद होने की जानकारी मिली. पितृ पक्ष में दिवंगत आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान किए जाते हैं. अब जब हम अपनी धार्मिक परंपराओं का पालन करते हुए उनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं, तो उन्हें आखिरकार सच्ची मुक्ति मिलेगी.'' अपने बड़े भाई मलखान को याद करते हुए ईसम की आंखें नम हो जाती हैं.
उन्होंने कहा कि अगर मलखान जीवित होते तो अब 79 वर्ष के होते.
ईसम ने बताया कि मलखान के भाई सुल्तान सिंह और चंद्रपाल की भी मौत हो चुकी है. अब इस पीढ़ी में वह खुद और उनकी बहन चंद्रपाली जीवित हैं. उन्होंने बताया कि शहीद मलखान सिंह का अंतिम संस्कार परिवार द्वारा ही किया जाएगा. इसकी तैयारियां की जा रही हैं. पूरा परिवार, रिश्तेदार और उनके बच्चे जो अपने दादा-परदादाओं से मलखान की शहादत की कहानियां सुनते थे, उन्हें अब आखिरकार शहीद के दर्शन करने का मौका मिलेगा.
*1968 में विमान दुर्घटना में लापता हुए मलखान सिंह*
हिमाचल प्रदेश के रोहतांग क्षेत्र में बर्फ से ढके पहाड़ों पर 1968 में विमान दुर्घटना में लापता हुए मलखान सिंह का शव भारतीय सेना के डोगरा स्काउट्स और तिरंगा माउंटेन रेस्क्यू के कर्मियों की एक संयुक्त टीम ने हाल ही में बरामद किया है. एएन-12 विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के लगभग 56 साल बाद चार जवानों के पार्थिव अवशेष बरामद किए गए. यह 102 लोगों को ले जा रहा ट्विन-इंजन टर्बोप्रॉप परिवहन विमान सात फरवरी 1968 को चंडीगढ़ से लेह के लिए उड़ान भरते समय लापता हो गया था.
*सैनिकों के शव खोज रही सेना*
एक अधिकारी ने बताया, ''जवानों के शव और विमान का मलबा दशकों तक बर्फीले इलाके में दबा रहा. वर्ष 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान के पर्वतारोहियों ने मलबे की खोज की. इसके बाद भारतीय सेना, विशेष रूप से डोगरा स्काउट्स द्वारा कई वर्षों तक कई अभियान चलाए गए. खतरनाक परिस्थितियों और दुर्गम इलाका होने की वजह से साल 2019 तक केवल पांच शव ही बरामद किए गए थे.
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
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