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छोटा कार्यकाल बड़ी चुनौतियां, दिल्ली में आसान नहीं है 'आतिशी' की डगर

अगले विधानसभा चुनाव के नतीजे अगर उम्मीद के मुताबिक नहीं आए तो उसकी जिम्मेदारी भी उन पर ही होगी

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Publised at

Mon, Sep 23, 2024 1:23 PM

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नई दिल्ली, 23 सितंबर 2024 (यूटीएन)। दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री आतिशी पूरे पांच साल के लिए नहीं, बल्कि महज पांच महीने के कार्यकाल के लिए पद संभालने के बाद चुनौतियों के अंबार से जूझने में लग गई हैं. मुख्यमंत्री कार्यलाय के सामने चुनौतियों के अग्निपथ को देखते हुए राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आतिशी के सिर पर कांटों भरा ताज रखा गया है. अरविंद केजरीवाल के बाद मुख्यमंत्री बनीं आतिशी का कार्यकाल भले ही छोटा रहे, लेकिन उनकी चुनौतियां बड़ी होंगी। उन्हें न सिर्फ विपक्षी पार्टियों की ओर से कई तरह के तंज झेलने होंगे, बल्कि उन्हें इस छोटे से कार्यकाल में ऐसे फैसले भी लेने होंगे, जिससे आगामी विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की राह आसान बने।
 
यही नहीं, अगले विधानसभा चुनाव के नतीजे अगर उम्मीद के मुताबिक नहीं आए तो उसकी जिम्मेदारी भी उन पर ही होगी। हालांकि आम आदमी पार्टी ये लगातार दावा करती रही है कि जमानत देने के साथ ही कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल पर कामकाज के लिए कोई रोक नहीं लगाई, इसके बावजूद केजरीवाल ने एक रणनीति के तहत आतिशी को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया। इसकी वजह ये थी कि केजरीवाल जानते थे कि चुनाव से ऐन पहले उनकी अगुवाई वाली कैबिनेट के फैसलों की वैधता को लेकर चुनौती दी जा सकती है, जिससे ऐसे फैसले लेना मुश्किल हो जाएगा, जो वे चुनाव से पहले लेना चाहते हैं। इसी वजह से आतिशी की अगुवाई में नई सरकार के गठन की तैयारी की गई।
 
*नाकाफी वक्त और केजरीवाल के साए में खुद को साबित करना*
10 साल बाद दिल्ली को मिली महिला मुख्यमंत्री आतिशी के पास काम करने और खुद को साबित करने के लिए पर्याप्त समय नहीं होगा. ये उनके लिए सबसे अहम चैलेंज है. शायद यही वजह है कि आतिशी ने दिल्ली का मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद अपने पहले बयान में ही साफ कर दिया कि अरविंद केजरीवाल ने ही उन्हें विधायक बनाया, मंत्री बनाया और मुख्यमंत्री बनने की जिम्मेदारी दी. इसलिए दिल्ली का एक ही मुख्यमंत्री है और उसका नाम अरविंद केजरीवाल है.
 
*सरकार और पार्टी स्तर पर दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी*
आतिशी के मंत्रिमंडल के साथी और आम आदमी पार्टी के सीनियर नेता गोपाल राय ने साफ किया था कि उनकी पार्टी दिल्ली में समय से पहले अक्तूबर-नवंबर में चुनाव करवाना चाहती है. हरियाणा चुनाव में प्रचार से पहले जमानत पर बाहर निकले अरविंद केजरीवाल ने भी जंतर मंतर पर जनता दरबार में इसके स्पष्ट संकेत दिए. अगर ऐसा नहीं भी हुआ तो भी आतिशी के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती सीमित समय में विधानसभा चुनाव की तैयारी करने की है. 
 
*आम आदमी पार्टी की इमेज को जल्दी दुरुस्त करने की चुनौती*
आतिशी के सामने तीसरी सबसे बड़ी चुनौती के रूप में आम आदमी पार्टी की इमेज को दुरुस्त करने की है. क्योंकि दिल्ली शराब घोटाले में ईडी और सीबीआई की जांच के दौरान भ्रष्टाचार का मामला पार्टी की पूरी टॉप लीडरशिप पर भारी पड़ रही है. अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह समेत आम आदमी पार्टी के कई नेता जमानत पर जेल से बाहर निकले हैं. सतेंद्र जैन समेत कुछ नेता दूसरे मामले में जेल जा चुके हैं. पार्टी अंदर-बाहर दोनों ओर से सियासी संकट में है.
 
*भ्रष्टाचार के बाद महिला सुरक्षा पर भी करना होगा डैमेज कंट्रोल*
शराब घोटाले में भले ही आतिशी का जिक्र नहीं है, लेकिन इसकी जांच उनकी सरकार और बतौर मुख्यमंत्री उनके निर्णय क्षमता पर जरूर असर डाल सकती है. इसके बाद आतिशी के सामने चौथी चुनौती महिला वोटर बैंक को साधना भी है. क्योंकि आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल के साथ सीएम आवास में मारपीट के केस के बाद पार्टी की महिला विरोधी छवि तो आतिशी को मुख्यमंत्री बनाए जाने से थोड़ा-बहुत कवर हो सकता है, लेकिन चुनाव से पहले डैमेज कंट्रोल की और भी कोशिशों की जरूरत होगी. 
 
*दिल्ली की सबसे युवा मुख्यमंत्री आतिशी के सामने पेंडिग फाइल्स*
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल के लंबे समय तक जेल में रहने के कारण दिल्ली सरकार में काफी पेंडिंग कामकाज को निपटाना आतिशी की पांचवी बड़ी चुनौती होगी. पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 156 दिन जेल में और 21 दिन अंतरिम जमानत पर रहने यानी 178 दिन बाद रिहा हुए. इस अवधि के पेडिंग फाइल्स को निपटाकर आतिशी को दिखाना होगा कि दिल्ली की सबसे युवा मुख्यमंत्री के तौर पर वह तेज स्पीड से काम को अंजाम दे सकती है.
 
*मुख्यमंत्री नई एलजी वही कैसे होगा कामकाज*
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सीएम केजरीवाल और एलजी के बीच लगातार टकराव की खबरें सामने आती रही हैं. यह बात भी सही है कि आतिशी बहुत ही नजदीक से दिल्ली के प्राशसनिक मामलों को देखती आई हैं लेकिन अब उनके सामने नई चुनौती है. वैसे भी केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच लगातार तकरार की प्रमुख वजहें राज्य के अधिकारों और संवैधानिक जिम्मेदारियों के विभाजन से जुड़ी हुई थीं. क्या आगे भी वही होने वाला है, इस पर सभी की निगाहें होंगी।
 
*उप राज्यपाल और प्रशासन के साथ भरोसे की बहाली का टास्क*
आतिशी को दिल्ली के उप राज्यपाल और प्रशासन में भरोसा बहाल करने का भी बड़ा टास्क पूरा करना होगा. चुनाव से पहले आतिशी को कुछ नई और बड़ी योजनाओं की घोषणा भी करनी होगी. अगर इन योजनाओं को एलजी ने रोका तो काम में देरी के अलावा लोगों के बीच ठीक संदेश भी नहीं जा पाएगा. ऐसे में आतिशी को केजरीवाल के सियासी स्टायल से अलग तरीके से उप राज्यपाल के साथ संबंध बेहतर करने होंगे. साथ ही दिल्ली प्रशासन में भी अपनी पैठ बनानी होगी.
 
*क्या दिल्ली की तकदीर बदल जाएगी?*
यह बात सही है कि आतिशी की सरकार कुछ ही महीनों की मेहमान है क्योंकि चुनाव बाद फिर सरकार बदल जाएगी. इसका ऐलान खुद आतिशी ने ही किया है. इधर आतिशी के सामने जो पहली बड़ी चुनौती तो वही होगी, जो चुनौती केजरीवाल के सामने बनी रही. पिछले लंबे समय से दिल्ली के सीएम और उपराज्यपाल के बीच अक्सर टकराव की स्थिति बनी रही. तो आतिशी के सीएम बनने से क्या दिल्ली की तकदीर बदल जाएगी, ये बड़ा सवाल होगा.
 
*अब आतिशी पर पूरी निगाहें*
अगर केजरीवाल सरकार पर नजर दौड़ाएं तो इसा कई बार हुआ कि केजरीवाल सरकार को कई फैसलों के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी की जरूरत रही, जैसे कि कुछ कानून लागू करना, फंड्स का आवंटन, या नियुक्तियों के मुद्दे. इस प्रक्रिया में देरी या असहमति की वजह से बार-बार प्रशासनिक बाधाएं उत्पन्न होती रहीं, जिससे केजरीवाल और वीके सक्सेना के बीच आरोप-प्रत्यारोप भी सामने आए. इन्हीं कारणों की वजह से केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच अक्सर टकराव की स्थिति बनी रही. अब आतिशी पर निगाहें रहेंगी कि क्या वे ऐसी स्थिति बदल पाएंगी. 
 
*दिल्ली में रोजमर्रा के कामकाज में लोगों की मदद करने की चुनौती*
दिल्ली में सार्वजनिक सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर की खराब हालत किसी से छिपी नहीं है. ओल्ड राजेंद्र नगर में जलजमाव से सिविल सेवा की तैयारी करने वाले दो स्टूडेंट की मौत हुई. राजधानी में कई इलाके की खराब सड़कें, बिजली बिल माफी में शर्त, गंदे पानी की सप्लाई, स्वच्छता, मोहल्ला क्लिनिक की दुर्दशा जैसे मुद्दों पर आतिशी को आतिशी पारी खेलनी होगी. क्योंकि आम आदमी पार्टी के पास ही दिल्ली एमसीडी भी है. वहीं, आतिशी के पास वित्त,शिक्षा और लोक निर्माण समेत 14 अहम विभाग हैं. 
 
*अफसरशाही के साथ तालमेल रहेगी चुनौती*
दिल्ली में विधानसभा चुनाव में बेहद कम वक्त बचा है। ऐसे में आतिशी पर ये जिम्मेदारी होगी कि वे वही सब काम करें, जो अरविंद केजरीवाल बतौर मुख्यमंत्री करना चाहते थे। हालांकि कानूनी बाधाओं की वजह से वे नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में आतिशी के लिए ये जरूरी होगा कि वे न सिर्फ वो फैसले लें बल्कि अफसरशाही के साथ इस तरह से तालमेल बिठाएं कि उन फैसलों को चुनाव से पहले जमीन पर उतारा भी जाए ताकि चुनाव में पार्टी को फायदा मिल सके।
 
*उम्मीदों के मुताबिक काम करने की जिम्मेदारी*
अब आतिशी के लिए केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की उम्मीदों के अनुरूप सरकार चलाने की जिम्मेदारी होगी। उन्हें न सिर्फ तेजी से फैसले लेने होंगे, बल्कि ये फैसले इस तरह से करने होंगे ताकि उन पर अमल करने में रोड़े न अटकाए जा सकें। खुद आम आदमी पार्टी आरोप लगाती रही है कि 'राजनिवास' बीजेपी के इशारे पर उन्हें काम नहीं करने दे रहा और अफसर भी उनकी राह में बाधा खड़ी करते हैं। इसके अलावा आने वाले दिनों में जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, आतिशी को विपक्षी पार्टियों के हमलों का भी सामना करना पड़ेगा।
 
*अरविंद केजरीवाल की ओर से किए वादों को पूरा करने का भी चैलेंज*
आतिशी को अपने पूर्ववर्ती अरविंद केजरीवाल की ओर से दिल्ली की जनता से किए वादों को पूरा करने का भी एक टफ टास्क है. इनमें 2025 तक यमुना साफ करने, मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के तहत महिलाओं को 1,000 रुपये मानदेय देने, सार्वजनिक सेवाओं को घर-घर पहुंचाने,
 
दिल्ली इलेक्ट्रिक वीकल नीति 2.0 और सौर नीति लागू करने जैसे बड़े वादे शामिल हैं. इसके अलावा आतिशी को नई मुख्यमंत्री सड़क, जलापूर्ति, सीवरेज, प्रदूषण, सब्सिडी के वितरण और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के वेतन संशोधन से जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के पेंडिंग काम को पूरा करने की चुनौती का भी सामना करना होगा.
 
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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