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○ लगभग 80 करोड़ 92 लाख रुपये की लागत से 30 सड़को व चार नए ट्यूब्वैलों का किया उद्घाटन एवं शिलान्यास
○ पहली हाइड्रोजन ट्रेन इस साल आएगी; 2027 तक बुलेट ट्रेन चलने की संभावना: अनिल कुमार खंडेलवाल
○ क्या फिर पाला बदलने वाले हैं नीतीश कुमार? नीति आयोग की बैठक में न पहुंचने के बाद लगने लगे कयास
○ दिल्ली में हुआ फिल्म 'द यूपी फाइल्स' का प्रमोशन
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सूचना पर ही सीआरपीएफ ने सारा घटना क्रम समझकर आतंकियों को ढेर किया था
![news](https://ujjwaltimesnews.com/storage/278/conversions/01HYFT9A39BHRPMMDW00842PQV-watermark.jpg)
नई दिल्ली, 22 मई 2024 (यूटीएन)। देश का सबसे बड़ा केंद्रीय अर्धसैनिक बल 'सीआरपीएफ', जिसकी स्थापना आजादी से पहले 1939 में हो गई थी। सीआरपीएफ के पूर्व आईजी कमलकांत शर्मा, इस फोर्स को सभी बलों की 'गंगोत्री' बताते हैं। इसी बल का एक समूह, जिसे पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (पीडीजी) कहा जाता है, इसके जवान और अधिकारी, पिछले सप्ताह उदास हो गए। बलिदान और शौर्य के संग जब संसद भवन से पीडीजी जांबाजों की विदाई हुई, तो वे भावुक हो उठे। किसी का मन उदास था तो कुछ जवानों की आंखें भर आई थीं।
करीब डेढ़ दशक से संसद भवन की अचूक सुरक्षा करने वाले 'पीडीजी' को यूं अपनी विदाई रास नहीं आई। यहां बात 'पीस पोस्टिंग' की कतई नहीं है। सीआरपीएफ को हटाकर सीआईएसएफ को संसद की सुरक्षा सौंपना, ये भी एतराज की बात नहीं थी। भावुक पीडीजी के मन में कई सवाल उठ रहे थे कि 'बलिदान और शौर्य' के बावजूद, उन्हें इस तरह से क्यों हटाया गया। आखिर हमारी ड्यूटी में कहां पर कमी रह गई।
*संसद भवन की सुरक्षा से क्यों हटाया गया?*
पीडीजी के लिए पिछला सप्ताह बहुत अहम रहा। हालांकि उन्हें संसद भवन से विदाई का मैसेज कई दिन पहले ही मिल चुका था। पीडीजी के सभी जवानों और अधिकारियों ने संसद भवन के पुराने परिसर के सामने खड़े होकर आखिरी फोटो खिंचवाई। लंबे समय से इस बल का हिस्सा रहे एक जवान से जब पूछा गया, तो वह भावुक हो उठा। कुछ लोग, यह कह रहे हैं कि सीआरपीएफ के लिए ये 'पीस पोस्टिंग' थी, अब वह सहूलियत छीन गई है। ऐसा तो कतई नहीं है। ये बल तो कश्मीर, नक्सल प्रभावित क्षेत्र और उत्तर पूर्व में दशकों से तैनात है। ऐसे में ये बात तो कहीं से भी जायज नहीं है। हम दो तीन दिन से सो नहीं पा रहे थे। मन में एक ही सवाल था। आखिर हमें एकाएक संसद भवन की सुरक्षा से क्यों हटाया गया।
गत वर्ष 13 दिसंबर को संसद भवन की सुरक्षा में बड़ी चूक सामने आई थी। उस दिन संसद भवन पर हुए हमले की 22वीं बरसी थी। कुछ लोग संसद में घुस गए थे। उसमें पीडीजी की क्या चूक थी, ये किसी ने नहीं बताया। घटना की जांच के लिए जो कमेटी बनी थी, उसमें सामने आया था कि फ्रिस्किंग/चेकिंग का काम तो दिल्ली पुलिस का था। पास वेरिफिकेशन भी दिल्ली पुलिस के नियंत्रण में था। जांच रिपोर्ट में सीआरपीएफ की कोई कमी नहीं मिली। इसके बावजूद सरकार ने पीडीजी को हटाने का निर्णय ले लिया।
*सभी फोर्स की गंगोत्री है सीआरपीएफ*
बल के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ये सीआरपीएफ के जवानों और अफसरों के लिए निराशाजनक फैसला था। फोर्स के उत्साह को कमजोर करने वाला था। खास बात है कि पीडीजी को हटाने का फैसला, जिस कमेटी की रिपोर्ट पर हुआ है, उसके अध्यक्ष तो खुद सीआरपीएफ डीजी थे। सीआरपीएफ के पूर्व आईजी कमलकांत शर्मा के मुताबिक, देखिये वैसे तो सभी फोर्स की नेचर ऑफ ड्यूटी अलग रहती है। हर कोई अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता रखता है। लौह पुरुष सदार पटेल, इस फोर्स के जनक हैं। जब हम कहते हैं कि 1939 में स्थापित हुई सीआरपीएफ, सभी फोर्स की गंगोत्री है, तो उसमें कुछ गलत नहीं है। इस बल की अधिकांश नफरी तो पूरी तरह से ऑपरेशनल एरिया में रहती है।
लॉ एंड ऑर्डर में भी ये फोर्स अग्रणी है। कहीं भी कोई आपदा आती है तो सिर्फ यह कहा जाता है कि प्लेन तैयार है, आपके पास तीस मिनट हैं। किसी भी जगह पर जवान/अफसर को, तीन साल स्थायित्व के नहीं मिल पाते। 2001 के संसद हमले में इन जवानों ने आतंकियों को करारा जवाब दिया था। लोकतंत्र के मंदिर की रक्षा की थी। ऐसे में अब बिना किसी वजह के पीडीजी को हटाना, कई सवाल खड़े करता है। इस ड्यूटी के लिए अगर सीआरपीएफ और सीआईएसएफ का मर्जर करते तो ठीक रहता। दोनों बलों के पास अपनी एक विशेषता है। स्थायित्व और अनुभव, यह मेल एक बेहतर सुरक्षा दायरा स्थापित कर सकता था।
*हारी टीम बदली जाती है, जीती हुई नहीं*
सीआरपीएफ के पूर्व सहायक कमांडेंट सर्वेश त्रिपाठी कहते हैं, हर फोर्स में जवान बहादुर ही होते हैं। सभी बलों की अपने क्षेत्र में एक विशेज्ञता होती है। ऐसी कोई ड्यूटी नहीं होगी, जहां इस बल ने खुद को स्थापित न किया हो। श्रीनगर एयरपोर्ट से हटाया, इस बल को कोई दिक्कत नहीं हुई। संसद भवन की सुरक्षा से हटाना, ये बात कष्ट प्रदायक है। जांबाजों के मनोबल को कमजोर करने वाली है। अब 'राम मंदिर' की सुरक्षा से सीआरपीएफ को हटाने की चर्चा है। ऐसी जगहों की सुरक्षा के लिए इस बल ने शहादत दी है। असीम शौर्य का प्रदर्शन किया है। संसद भवन से क्यों हटाया जा रहा है, इसका कोई कारण तो बताएं। जवानों के मन में सवाल उठना लाजमी है।
आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर इस बल की कामयाबी किसी से छिपी नहीं है। हारी हुई टीम को बदला जाता है, जीती हुई को नहीं। पीडीजी के मामले में यह बात उलट हो रही है। पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप की ट्रेनिंग एवं उपकरणों पर पैसा खर्च हुआ है। ये एक स्पेशल फोर्स थी। ऐसे में यहां से पीडीजी को हटाए जाना, जवानों के लिए एक भावुक पल तो है ही। साल 2012 से लेकर अब तक पीडीजी, 16 सितंबर को बतौर स्थापना दिवस मनाता रहा है।
*संसद को किसी भी तरह के हमले से बचाना*
पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप, जिसकी नफरी करीब डेढ़ हजार बताई गई है, उसका एक ही मकसद था, किसी भी तरह के हमले से संसद को बचाना। पीडीजी के गठन से पहले भी सीआरपीएफ ने लोकतंत्र के मंदिर की रक्षा की है। 13 दिसंबर 2001 को संसद पर आतंकवादी हमला हुआ। पाकिस्तान के आतंकी संगठन 'लश्कर-ए-तैयबा' और 'जैश-ए-मोहम्मद' के पांच दहशतगर्द, संसद भवन परिसर में घुस गए थे। सीआरपीएफ की सिपाही कमलेश कुमारी ने आतंकियों की गाड़ी को रोकने का प्रयास किया।
उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। संसद भवन के दरवाजे बंद होने के बाद सीआरपीएफ जवानों ने मोर्चा संभाला। सभी आतंकवादी मारे गए। महिला सिपाही के अलावा दिल्ली पुलिस और पार्लियामेंट में तैनात दूसरी सेवाओं के कई लोग मारे गए थे। कांस्टेबल कमलेश कुमारी को अशोक चक्र (मरणोपरांत) प्रदान किया गया। हवलदार यम बहादुर थापा, कांस्टेबल डी संतोष कुमार, कांस्टेबल सुखविंदर सिंह और सिपाही श्याबीर सिंह को शौर्य चक्र से नवाजा गया।
*आतंकियों को संसद भवन में नहीं घुसने दिया*
आतंकियों की गोली से लहूलुहान हुए सीआरपीएफ के हवलदार वाईबी थापा और सिपाही सुखविंद्र सिंह ने मानव बम को संसद में प्रवेश नहीं करने दिया। आतंकियों में शामिल मानव बम, जो संसद के गेट नंबर एक से अंदर पहुंचने के प्रयास में था, को पहले ही ढेर कर दिया। अगर मानव बम बने आतंकी को तीस सेकेंड का समय मिल जाता, तो उसका संसद भवन के भीतर पहुंचना तय था। सुबह 11 बजकर 40 मिनट पर कमलेश कुमारी संसद भवन परिसर के गेट नंबर 12 के स्कैनर पर तैनात थी। उसने देखा कि विजय चौक से एक कार, जिस पर गृह मंत्रालय और संसद भवन का स्टीकर लगा हुआ था, गेट नंबर 12 की तरफ आ रही है। जैसे ही वह कार निकट पहुंची, तो उसमें से चार आतंकी बाहर निकले।
वह गेट बंद करने के लिए दौड़ी। हालांकि इस दौरान वह वायरलेस सेट पर कंट्रोल रूम को सूचना भी दे रही थी। दोबारा से अपनी पिकेट पर पहुंचने के बाद कमलेश ने आसपास के जवानों को चेताया। तभी उसकी नजर मानव बम पर पड़ी। जैसे ही उसने यह सूचना कंट्रोल रूम को दी, उसी वक्त गेट नंबर 11 की ओर से कई आतंकी उसकी तरफ आ रहे थे। हाथ में वायरलेस सेट लिए वह पिकेट से बाहर निकली। उसी दौरान आतंकियों ने उस पर लगातार गोलियों बौछार कर दी। उसकी सूचना पर ही सीआरपीएफ ने सारा घटना क्रम समझकर आतंकियों को ढेर किया था।
*इससे जवानों के मनोबल पर क्या असर पड़ेगा*
सीआरपीएफ के मौजूदा एवं पूर्व अधिकारियों का कहना है, संसद भवन से पीडीजी को हटाने के बारे में तर्क आधारित विचार विमर्श नहीं किया गया। न तो अतीत देखा गया और न ही भविष्य की सुरक्षा। सीआरपीएफ ने सुरक्षा के मोर्चे पर कितना कुछ किया है, मगर उसे एक झटके में किनारे कर दिया गया। इससे जवानों के मनोबल पर क्या असर पड़ेगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। श्रीनगर एयरपोर्ट की सुरक्षा करने में इस बल ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। वहां से भी हटा दिया गया।
जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने 5 जुलाई 2005 को अयोध्या के राम मंदिर परिसर में हथगोलों व राकेट लांचर से ताबड़तोड़ हमला किया था। मंदिर परिसर की सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ जवानों ने पांचों आतंकियों को मुख्य स्थल तक पहुंचने से पहले ही ढेर कर दिया था। अब वहां की सुरक्षा की समीक्षा चल रही है। सूत्रों का कहना है कि मंदिर परिसर से सीआरपीएफ को हटाया जा रहा है।
*जांबाजी के बारे में नहीं सोचा गया*
संसद भवन में गत वर्ष जो कुछ हुआ, कुछ हुआ उसके लिए सीआरपीएफ की तकनीकी तौर पर कोई जिम्मेवारी ही नही थी। जांच और रिव्यू कमेटी के मुखिया तो सीआरपीएफ के ही मौजूदा डीजी रहे हैं। जम्मू के रघुनाथ मंदिर या अयोध्या मंदिर का हमला हो, सीआरपीएफ ने अपना लोहा मनवाया है। कृष्ण जन्मभूमि मथुरा, बाबा विश्वनाथ वाराणसी जैसे कई बड़े धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सीआरपीएफ करती रही है।
बनिहाल-काजीकुंड टनल के बनने से पूर्व तक और अब भी भारत के शेष हिस्से को कश्मीर से जोड़ने वाली जवाहर टनल की सुरक्षा, सीआरपीएफ जवान कर रहे हैं। वीआईपी सुरक्षा मुहैया कराने वाला यह बल एक विशेष फोर्स का दर्जा पा चुका है। संसद भवन की सुरक्षा से हटाते वक्त इस बल की जांबाजी के बारे में नहीं सोचा गया।
*दो बटालियनों में विभाजित होगा पीडीजी दस्ता*
संसद भवन की पुख्ता सुरक्षा के लिए 'पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप' (पीडीजी) का गठन किया गया था। इस विशेष बल में लगभग 1600 जवानों को रखा गया। इसके अलावा एक डीआईजी, एक कमांडेंट, एक टूआईसी, छह डिप्टी कमांडेंट और 14 सहायक कमांडेंट को पीडीजी का हिस्सा बनाया गया।
अब पीडीजी दस्ते को दो बटालियनों में विभाजित कर उसे सीआरपीएफ की वीआईपी सुरक्षा में शामिल किया जाएगा। बल के सूत्रों का कहना है कि संसद भवन हो या राम मंदिर की सुरक्षा, यह बल तय सुरक्षा मानकों पर सदैव खरा उतरा है। इस तरह का निर्णय केंद्रीय गृह मंत्रालय के स्तर पर होता है।
*पीडीजी, कोई सामान्य बल नहीं था*
13 दिसंबर 2023 की घटना के बाद उच्च स्तरीय बैठक में कई अहम निर्णय लिए गए थे। सीआरपीएफ डीजी अनीश दयाल सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी भी गठित की गई थी। इन सबके बाद ही यह निर्णय लिया गया कि संसद भवन की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआईएसएफ को सौंप दी जाए। पीडीजी, कोई सामान्य बल नहीं था। इसे सुरक्षा के कड़े एवं उच्च मानकों के आधार पर प्रशिक्षित किया गया था। अब लगभग 1600 जवानों और अफसरों को यहां से हटाया जा रहा है।
भले ही ये पॉलिसी मैटर हो, लेकिन वर्षों से संसद भवन की सुरक्षा कर रहे पीडीजी को हटाने का औचित्य नजर नहीं आता। आतंकियों और नक्सलियों को खात्मा करने और सुरक्षा के अन्य मोर्चों पर अपना दमखम दिखाने वाले बल के अधिकारी एवं जवान, पीडीजी को हटाने के निर्णय से खुश नहीं हैं।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
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