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भारतीय कला के संवाहक पद्मश्री वीरेंद्र प्रभाकर की याद में संपूर्ण रामलीला का मंचन
विशिष्ट योगदान को सम्मानित करते हुए भारत सरकार ने उन्हें १९८२ में पद्म के नागरिक सम्मान से सम्मानित किया
नई दिल्ली, 21 अक्टूबर 2024 (यूटीएन)। एक ऐसे भारतीय प्रेस फोटो जर्नलिस्ट जिन्हें लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स ने सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले प्रेस फोटो जर्नलिस्ट के रूप में दर्ज किया है। इतना ही नहीं फोटोग्राफी और भारतीय कला एवं संस्कृति के प्रति उनके जज्बे को देखकर हर किसी ने सलाम किया। भारत सरकार सहित अनेक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया। फोटोग्राफी के प्रति उनके विशिष्ट योगदान को सम्मानित करते हुए भारत सरकार ने उन्हें १९८२ में पद्म के नागरिक सम्मान से सम्मानित किया । इसके बाद दिल्ली राज्य पुरस्कार मिला। अखिल भारतीय ललित कला और शिल्प सोसायटी ने उन्हें २००० में मिलेनियम २००० कला विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया ।
उसी वर्ष उन्हें रोटरी इंटरनेशनल से मैन ऑफ द ईयर का पुरस्कार मिला २००६ में उन्हें आचार्य महाप्रज्ञ अहिंसा प्रशिक्षण सम्मान मिला। भारतीय कला और संस्कृति को समर्पित पद्मश्री वीरेंद्र प्रभाकर की याद में उनके परिजनों ने 18 अक्टूबर को श्रीराम भारतीय कला केन्द्र, मंडी हाउस में "युग युग की सत्य कथा" नामक रामलीला का आयोजन किया गया। आमंत्रित दर्शकों से खचाखच भरे श्री राम कला केंद्र में इस कार्यक्रम में श्रीराम भारतीय कला केन्द्र के कलाकारों दिल को छू लेने वाली अत्यंत कलात्मक प्रस्तुति दी। भगवान श्री राम को समर्पित श्रीराम भारतीय कला केंद्र की वो मशहूर नृत्य नाटिका है, जो हमेशा से दिल्लीवालों की पसंद रही है। 3 घंटे की इस प्रस्तुति में केंद्र के कलाकार पूरी रामलीला को दर्शकों को बांधे रखते हैं।
केंद्र की निदेशक शोभा दीपक सिंह ने इसका निर्देशन किया है। नृत्य नाटिका में युद्ध के दृश्यों में मयूरभंज छऊ, कलरिपयट्टु नृत्य शैली का इस्तेमाल किया है। इस प्रस्तुति में रामायण के कई दृष्यों को उनके भावों के साथ पेश किया गया है। संस्था के उपाध्यक्ष वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व पार्षद अशोक जैन एवं रवि जैन ने बताया कि पद्म वीरेन्द्र प्रभाकर का जन्म 15 अगस्त, 1928 को उत्तर प्रदेश के एक प्रतिष्ठित जैन और साहित्यिक परिवार में हुआ था। उन्होंने दून स्कूल में प्रख्यात कलाविद् सुधीर खास्तगीर से मूर्तिकला और फोटोग्राफी की शिक्षा प्राप्त की। वर्ष 1947 में उन्होंने पहली बार फोटो पत्रकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। उनकी खींची हुई 14,958 न्यूज़ फोटोज़ विभिन्न राष्ट्रीय समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ पर प्रकाशित हुईं, जिनमें हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं के समाचार पत्र शामिल हैं।
पद्म वीरेन्द्र प्रभाकर की कला और फोटोजर्नलिज्म में योगदान को सम्मानित करते हुए चित्र कला संगम प्रतिवर्ष इस रामलीला का आयोजन करता है, जिससे उनकी समृद्ध धरोहर और यादों को जीवित रखा जा सके। संपूर्ण रामलीला का मंचन कराया। चित्र कला संगम की पहल पर आयोजित इस रामलीला का काफी संख्या में लोगों ने आनंद लिया। चित्र कला संगम और यशपाल जैन स्मृति के मंत्री रवि जैन और पूर्व पार्षद अशोक जैन ने बताया कि संपूर्ण रामलीला दिल्लीवालों को काफी पसंद है। यह एक दिन में संपन्न हो जाती है। इसी के मद्देनजर वह हर साल पद्मश्री वीरेंद्र प्रभाकर की याद में इसका आयोजन करते हैं। गणमान्य व्यक्तियों के लिए खास व्यवस्था की जाती है। इस मौके पर धार्मिक लीला कमेटी के महासचिव धीरज धर गुप्श्री राम कला केंद्र की निदेशक शोभा दीपक सिंह सहित अनेक विशिष्ट लोगों का अभिनंदन किया गया।
*आजादी की पहले रोशनी के गवाह थे वीरेंद्र प्रभाकर*
वीरेंद्र प्रभाकर का जन्म उत्तर प्रदेश में 15 अगस्त 1928 को एक जैन परिवार में हुआ था और उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दून स्कूल से की, जहाँ उन्हें प्रसिद्ध मूर्तिकार सुधीर ख़स्तगीर से मूर्तिकला और फोटोग्राफी का प्रशिक्षण लेने का अवसर मिला, जो कला संकाय के सदस्य थे। बाद में, उन्होंने चित्रशाला, मसूरी में चित्रकला का प्रशिक्षण लिया । उनके करियर की शुरुआत 1947 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली अनंतिम सरकार द्वारा आयोजित एशियाई संबंध सम्मेलन की कवरेज से हुई, जब भारत स्वतंत्रता के संक्रमणकालीन चरण में था।प्रभाकर ने दिल्ली के पुराने किले में आयोजित सम्मेलन को कवर किया, जिसमें महात्मा गांधी और इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो ने भाग लिया था ।
प्रभाकर का करियर जिसमें कथित तौर पर 14,458 प्रकाशित समाचार तस्वीरें थीं और जो 1947 से लेकर 2015 में उनकी मृत्यु तक अनवरत जारी रही, उनकी तस्वीरें कई हिंदी और अंग्रेजी भाषा के दैनिक समाचार पत्रों द्वारा प्रकाशित की गई हैं और विभिन्न विषयों पर उनकी फोटो प्रदर्शनियां कई स्थानों पर आयोजित की गई हैं। वे कला और संस्कृति को बढ़ावा देने वाले दिल्ली स्थित संगठन चित्र कला संगम के संस्थापक सचिव थे। दिल्ली निगम द्वारा पद्म वीरेंद्र प्रभाकर के नाम पर पुरानी दिल्ली में एक सड़क का नामकरण किया गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. कर्ण सिंह ने पद्म वीरेंद्र प्रभाकर को याद करते हुए एक बार कहा था कि चित्र कला संगम के संस्थापक वीरेंद्र प्रभाकर बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। किसी भी सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक आयोजन में उनकी उपस्थिति रहती थी। वहीं प्रियंका गांधी ने भी उन्हें याद करते हुए कहा कि पद्म वीरेंद्र प्रभाकर ऐसे सौभाग्यशाली लोगों में से थे, जो हमारी आजादी की पहली रोशनी के गवाह थे। उन्होंने अपनी कलात्मक दृष्टि से दुनिया देखी, उसे दर्ज किया और कई पुरस्कारों से सम्मानित हुए।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
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