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अगर मोदी सरकार की हुई वापसी तो कौन होगा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार?

भाजपा सरकार की वापसी होती है, तो मोदी सरकार 3.0 में देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कौन होगा? 

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Fri, May 31, 2024 2:22 AM

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नई दिल्ली, 31 मई 2024  (यूटीएन)। देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल का कार्यकाल इस महीने के आखिर में 31 मई, 2024 को समाप्त हो रहा है। इस साल जनवरी में 79 वर्ष के हो चुके अजील डोभाल पिछले दस सालों से देश के एनएसए हैं। चार जून को  चुनाव परिणाम घोषित होने हैं, जिसके बाद नई सरकार के गठन का रास्ता साफ होगा। अगर इंडिया गठबंधन की सरकार बनती है, तो ऐसे में जाहिर है कि एनएसए के पद के लिए वह अपनी पसंद को प्राथमिकता देगी। नौकरशाही के हलकों में इस बात को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं कि अगर फिर से भाजपा सरकार की वापसी होती है, तो मोदी सरकार 3.0 में देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कौन होगा? 
 
*2019 में पांच साल के लिए एनएसए बने थे अजीत डोभाल*
1968 बैच के केरल कैडर के पूर्व आईपीएस अधिकारी अजीत डोभाल को साल 2019 में कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने 31-05-2019 को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर नियुक्ति को मंजूरी दी थी। उनका दूसरा कार्यकाल पांच साल के लिए बढ़ाया गया था। साथ ही उन्हें गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मामलों के मंत्री एस जयशंकर और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के समान कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया गया था। उस समय उनकी नियुक्ति के आदेश को लेकर कहा गया था कि उनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री के कार्यकाल के साथ-साथ या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो, समाप्त होगी। वहीं उनका कार्यकाल इस साल 31 मई को समाप्त हो रहा है। हालांकि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वे केवल राज्य मंत्री के रैंक के साथ केवल एनएसए ही नियुक्त किए गए थे। तब उन्होंने पांचवे एनएसए के तौर पर 30 मई, 2014 को पदभार संभाला था। 
 
*नए उत्तराधिकारी के नाम पर कयास जारी*
सरकार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, अजीत डोभाल ने अब रिटायर होने की इच्छा जताई है। चार जून के बाद नई सरकार के गठन के बाद उन्होंने पद छोड़ने के संकेत दिए हैं। उनके नजदीकी सूत्रों का कहना है कि अगर भाजपा सरकार लौट कर भी आती है, तो भी वे अपने तीसरे कार्यकाल को लेकर अनिच्छुक हैं। वहीं अब उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, इसे लेकर कयासों के दौर जारी हैं। सूत्रों का कहना है कि डोभाल के उत्तराधिकारी के तौर पर कुछ नाम कैबिनेट की नियुक्ति समिति को भेजे गए हैं। लगभग 10 साल तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में सबसे सीनियर 'मंत्री-नौकरशाह' का खिताब हासिल अजील डोभाल के उत्तराधिकारी को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि अगर तीसरी बार फिर भाजपा सत्ता में आती है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताजपोशी होती है, तो वे पहले से तय कर चुके होंगे कि वह अजीत डोभाल के स्थान पर किसे नया एनएसए नियुक्त करेंगे। 
 
*रॉ में लगातार चार साल रह चुके हैं चीफ*
वहीं नए एनएसए के नाम को लेकर फिलहाल कयास ही लगाए जा रहे हैं। नया एनएनए बनने की रेस में जो नाम सबसे आगे हैं, उनमें पूर्व रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) चीफ सामंत गोयल का नाम भी है। अजीत डोभाल के करीबी सामंत गोयल को पहले 2021 में बतौर रॉ चीफ एक वर्ष का एक्सटेंशन दिया गया। उसके बाद 2022 में भी कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने उनका कार्यकाल एक साल यानी 30 जून 2023 तक बढ़ा दिया था। गोयल को खुफिया मामलों का खास जानकार बताया जाता है। लंबे समय बाद रॉ में किसी चीफ को चार साल तक सेवा करने का अवसर मिला है। खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की अमेरिका में हत्या की साजिश मामले में तत्कालीन रॉ प्रमुख सामंत गोयल का सामने आया था, और कहा गया था कि उन्होंने ही इसे मंजूरी दी थी। हालांकि भारत-अमेरिकी संबंधों को देखते हुए उनके नाम पर कम ही सहमति बन सकती है। सामंत गोयल के बाद जो नाम चर्चा में है वह राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय में डिप्टी एनएसए आईपीएस पंकज सिंह है। पंकज सिंह पहले बीएसएफ के प्रमुख की निभा चुके हैं। वे अजीत डोभाल के करीबी भी हैं और उनके पास इंटरनल सिक्योरिटी का खासा अनुभव भी है। हालांकि उनके पास विदेश मामलों को लेकर ज्यादा अनुभव नहीं है, जो संभवतया उनके लिए वीक पॉइंट साबित हो सकता है।  
 
*गलवां घाटी में हिंसक संघर्ष के दौरान रहे चीन में राजदूत*
इसके अलावा भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय में उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार विक्रम मिसरी का नाम भी रेस में है। विक्रम मिसरी 1989 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे हैं। उनकी गिनती चीन मामलों के जानकार के तौर पर होती है। मिसरी को 2019 में बीजिंग में राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया था। जून 2020 में गलवां घाटी में भारत-चीनी सैनिकों के हिंसक संघर्ष के बाद मिसरी चीन के साथ हुईं कई वार्ताओं का हिस्सा रहे थे। उन्होंने विदेश मंत्रालय में, प्रधानमंत्री कार्यालय में, और यूरोप, अफ्रीका, एशिया और उत्तरी अमेरिका में कई भारतीय मिशनों में काम किया है। सूत्रों का कहना है कि उनके पास इंटरनल सिक्योरिटी को लेकर ज्यादा अनुभव नहीं है। इसलिए उनके नाम पर सहमति बनने के चांस कम ही हैं। 
 
*रूस में भारत के राजदूत रह चुके हैं पंकज सरन*
1982 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रह चुके पंकज सरन पूर्व डिप्टी एनएसए भी रह चुके हैं और चार साल पहले ही इस पद से रिटायर हुए हैं। सरन को नवंबर 2015 में रूस में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया था। वह भारत और विदेश में कई महत्वपूर्ण पद संभाल चुके हैं। पहले 1995 से 1997 तक उपसचिव, निदेशक के रूप में और फिर 2007 से 2012 तक संयुक्त सचिव के रूप में कार्यभार संभाल चुके हैं। उन्हें भी डोभाल का करीबी माना जाता है।
 
लेकिन आंतरिक मामलों को लेकर उनके पास भी ज्यादा अनुभव नहीं हैं। सूत्रों का कहना है कि उनके नाम पर कोई विवाद नहीं है। स्वच्छ छवि वाले अधिकारी रहे हैं। लेकिन वे कुछ साल पहले ही रिटायर हुए हैं। अगर वे एनएसए बन भी जाते हैं तो ब्यूरोक्रेसी पर कितनी लगाम लगा पाएंगे ये बड़ा सवाल है।
 
*उरी और बालाकोट जैसी सर्जिकल स्ट्राइक में अहम भूमिका*
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख अनिल धस्माना 1981 बैच के मध्यप्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। धस्माना को सितंबर 2020 में ही दो साल के लिए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ) प्रमुख नियुक्त किया गया था। एनटीआरओ देश की तकनीकी संस्था है जो भू-स्थानिक खुफिया और उपग्रह इमेजरी की देखभाल करती है। धस्माना की काबिलियत यह है कि उरी और बालाकोट जैसी सर्जिकल स्ट्राइक में अहम भूमिका निभा चुके हैं।
 
उन्हें बलूचिस्तान, आतंकवाद और इस्लामी मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है। उनके पास पाकिस्तान और अफगानिस्तान में काम करने का खासा अनुभव भी है। वे दुनिया भर के तमाम देशों की राजधानियों में सेवा भी दे चुके हैं, जिसमें लंदन और फ्रैंकफर्ट भी शामिल हैं और उन्होंने सार्क और यूरोप डेस्क भी संभाला है। माना जा रहा है कि मोदी 3.0 में धस्माना बतौर एनएसए पद के लिए पहली पसंद हो सकते हैं। खास बात यह है कि उन्हें अजीत डोभाल भी पसंद करते हैं, साथ ही वे उत्तराखंड से भी ताल्लुक रखते हैं। 
 
*खुद इनके सफल ऑपरेशनों की प्रधानमंत्री कर चुके हैं निगरानी*
हिमाचल प्रदेश 1998 बैच काडर के आईपीएस अफसर तपन डेका को जून 2022 में इंटेलिजेंस ब्यूरो का नया डायरेक्टर नियुक्त किया गया था। उनका कार्यकाल इस साल जून के आखिर तक है। तेजतर्रार अधिकारी तपन डेका ने अपना ज्यादातर करियर इंटेलिजेंस ब्यूरो में ही गुजारा है। वे केंद्र सरकार के सबसे भरोसेमंद अफसरों में से एक रहे हैं। उन्होंने जम्मू कश्मीर में आतंकवाद, खासकर टारगेटेड किलिंग के मामलों को संभाला है। वे कई एंटी टेररिस्ट अभियानों में भी शामिल रहे हैं।
 
जम्मू कश्मीर में इंटेलिजेंस से जुटा महत्वपूर्ण डाटा जुटाने में उनकी अहम भूमिका रही है। उनके कई सफल ऑपरेशनों की खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बारीकी से निगरानी की है। वे भी नए एनएसए के पद के लिए कैबिनेट की नियुक्ति समिति की पसंद बन सकते हैं। 
 
*क्या कोई कैबिनेट मंत्री बनेगा एनएसए?*
सूत्रों ने बताया कि नए एनएसए को लेकर एक अप्रत्याशित फेरबदल भी देखने को मिल सकता है। मोदी सरकार के सबसे खास मौजूदा कैबिनेट मंत्री और पूर्व ब्यूरोक्रेट को भी यह पद सौंपा जा सकता है। अगर चार जून को भाजपा सरकार की वापसी होती है और नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री का पद संभालते हैं, तो वे उनकी योग्य पसंद बन सकते हैं।
 
इसकी वजह है कि न केवल उनके बाहरी राष्ट्रों से भी अच्छे संबंध हैं, बल्कि अमेरिका और रूस से भी उनके अच्छे रिश्ते हैं। पूर्व नौकरशाह रह चुके हैं। उनके दो जूनियर अफसर इस बार भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ रहे हैं। संभव है कि नई सरकार में उनमें से एक को विदेश मंत्री का कार्यभार भी सौंपा जा सकता है। वहीं अगर वह पूर्व ब्यूरोक्रेट एनएसए बनते हैं, तो राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ विदेश मामलों पर भी उनकी गहरी नजर रहेगी और मार्गदर्शक की भूमिका भी बखूबी निभा सकेंगे।
 
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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