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1906 से 1947 तक तिरंगे में हुए कई बदलाव, आखिर कब मिला देश के राष्ट्रीय ध्वज को अंतिम स्वरूप
इस साल देश 15 अगस्त 2024 को अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है।
नई दिल्ली, 14 अगस्त 2024 (यूटीएन)। इस साल देश 15 अगस्त 2024 को अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इसके साथ ही गुरुवार को औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन से आजादी के 77 साल पूरे हो जाएंगे। इस साल के स्वतंत्रता दिवस समारोह की थीम 'राष्ट्र प्रथम, हमेशा प्रथम है', जो आजादी का अमृत महोत्सव समारोह का एक हिस्सा है।
15 अगस्त 1947 से ही भारत का हर प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से तिरंगा झंडा फहराता आया है। लाल किले से पहली बार तिरंगा देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने फहराया था और वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले से 15 अगस्त 2024 लगातार 11वीं बार तिरंगा फहराएंगे।
*तिरंगे का हरेक रंग अर्थपूर्ण*
हमारे तिरंगे में खास बात यह है की इसका हरेक रंग अर्थपूर्ण है और इसके साथ ही अपने आप में आजादी के लड़ाई का इतिहास समेटे हुए है। हर देश के लिए उसका राष्ट्रीय ध्वज सर्वोपरि होता है और हमारा तिरंगा भी लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आत्मसम्मान का प्रतीक रहा है। यहां तक की हमारे तिरंगे के डिजाइन की कहानी ऐसे ही एक आजादी के मतवाले के आत्मसम्मान से जुड़ी हुई है।
*भारतीय स्वतंत्रता यात्रा का प्रतीक है तिरंगा*
हमारा राष्ट्रीय झंडा यानी तिरंगा भारतीय स्वतंत्रता यात्रा का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। तिरंगे में खास बात यह है की इसका हरेक रंग अर्थपूर्ण है और इसके साथ ही यह अपने आप में आजादी के लड़ाई का इतिहास समेटे हुए है। हर देश के लिए उसका राष्ट्रीय ध्वज सर्वोपरि होता है और हमारा तिरंगा भी लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आत्मसम्मान का प्रतीक रहा है। तिरंगा तीन रंगों- केसरिया, सफेद और हरे रंग से बना है और इसके केंद्र में नीले रंग से बना अशोक चक्र है। यहां हम आपको बताएंगे कि तिरंगे का वर्तमान स्वरूप कैसे विकसित हुआ। साथ ही हम इसके इतिहास के बारे में भी जानेंगे।
*साल 1906 में की गई थी राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना*
भारत के राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना साल 1906 में की गई थी। भारत का पहला गैर आधिकारिक ध्वज 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के पास बागान चौक में कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। यह ध्वज स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा तैयार किया गया था। इस ध्वज में हरे, पीले व लाल रंग की तीन आड़ी पट्टियां थीं।
*1917 में एनी बेसेंट और तिलक ने नया फहराया झंडा*
साल 1917 में होम रूल मूवमेंट के दौरान एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने एक और झंडा फहराया। इस झंडे में चार बारी-बारी से लाल और हरे रंग की पट्टियां थीं और सप्तऋषि के आकार में सात सितारे थे। ऊपरी दाएं कोने में एक सफेद अर्धचंद्र और सितारा था, जबकि बाएं कोने में यूनियन जैक था।
*पिंगली वैंकेया ने महात्मा गांधी को नया डिजाइन दिखाया*
असहयोग आंदोलन के दौरान एक बार फिर राष्ट्रीय ध्वज पर विचार की जरूरत महसूस की गई। साल 1921 के कांग्रेस के विजयवाड़ा अधिवेशन में आंध्र प्रदेश के पिंगली वैंकेया ने महात्मा गांधी के सामने एक नए ध्वज का डिजाइन पेश किया। इस झंडे में लाल सफेद और हरे रंग की दो पट्टियां थीं, जोकि हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतीक मानी गईं। झंडे के बीच में एक चरखा रखा गया था, जो स्वराज और आत्मनिर्भरता के विचार का प्रतीक था।
*1947 में संविधान सभा ने वर्तमान झंडा अपनाया*
साल 1931 में पिंगली वेकैंया के झंडे में बदलाव किया और लाल रंग की जगह झंडे में केसरिया रंग ने ले ली। इसके साथ ही झंडे में कई बार बदलाव होने के बाद जुलाई 1947 में संविधान सभा ने औपचारिक रूप से स्वतंत्र भारत का नया झंडा अपना लिया। पिंगली वेकैया के 1931 के झंडे में बदलाव किया गया, जिसमें चरखे की जगह चक्र को शामिल किया गया। इसी झंडे का नाम तिरंगा रखा गया।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |
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